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भारतीय राजनीति में अनेक काल्पनिक वैचारिक द्वन्द

Updated on 17-06-2023 11:19 PM


विगत कई दशाब्दियो से भारत में अनेक काल्पनिक वैचारिक द्वन्द चलाये रहे है|

यथा भारत के लिये समाजवादी व्यवस्था ठीक है या पूंजी को प्राधान्य या समग्रता में समाहितवादी ?

राष्ट्र क्या है? प्रमुख आराध्य क्या है ? भारत माता या अपनी जाति/पार्टी या पांथिक टोली के प्रधान ?

राष्ट्र प्रधान है या वोट को खीचने के लिये आवश्यक समझौते व सन्धियां ?

जातियां, सम्प्रदाय के प्रति समर्पण सत्य हैं  या राष्ट्र के प्रति समर्पण ?

वोट बढाऊ तात्कालिकता आवश्यक है या राष्ट्र व मातृभूमि की प्रासंगिकता ?

इन सभी मुद्दों पर लिखा जा सकता है परन्तु आज का विषय यह नहीं | विषय है जनता को काल्पनिक वैचारिक द्वन्द में डाला जा रहा है | आज जनता के समक्ष अनेक प्रकार विचित्र मुद्दे उठाये जा रहे है, जिनका ना तो सामान्य जनता न ही राष्ट्र से कोई सरोकार है | विरोध के सुदृढ़ वास्तविक मुद्दों के अभाव में विपक्ष के लिये आवश्यक हो जाता है कि अपनी पार्टी या संस्था को जीवंत व जनसमर्थक तथा प्रखर शासक विरोधी दिखाने के लिये या तो शासन व शासक दल की कमजोरियों को उजागर करे या अन्यान्य मुद्दे उठाकर जनता को इतना भ्रमित करे कि वास्तविक मुद्दे गौण हो जावें और जनता शासक दल के विरोध को समर्थन देने लगे | जब शासक दल ने यह निश्चित कर दिया हो कि वे जनता का हित तथा अपने अनगिनत विकास कार्य जनता के समक्ष रखेंगे | तो विपक्ष की ओर से  राष्ट्र को प्रमुखता देकर राष्ट्र धर्म निभाने के बजाय, पान्थिकता को साम्प्रदायिकता का नाम देकर व जातिवाद को प्रमुखता देकर वोटर को आकर्षित करने का आख्यान (नैरेटिव) खडा करने का प्रयास किया जा रहा है | कहीँ भारत की सांस्कृतिक विविधता को हथियार बनाकर राष्ट्र की मूलभूत सांस्कृतिक राष्ट्रवाद व एकात्मता को खंडित करने के अंग्रेजी व मुग़ल षडयंत्रों जैसे अनेको षडयंत्र समानांतर रूप से चलाये जा रहे हैं |

साथ ही एक ऐसा आख्यान भी खड़ा करने का प्रयत्न है कि भारत सास्कृतिकता से समृद्ध एक प्राचीन राष्ट्र न होकर विभाजित संस्कृतियों का भूखण्ड मात्र रहा है जिसे अंग्रेजो ने एकसूत्र में बांधा और यह राष्ट्र उनके जाने के उपरांत उन्ही के या उन्हीं के वैचारिक शिष्यों के मार्गदर्शन से ही चल सकता है | तथा इसका इतिहास हजारों वर्षों पुराना नहीं बल्कि १९४७ में ही शुरू हुआ है |

इसी क्रम में महान हस्तियों की अवमानना करने का उपक्रम इक्कीसवीं शताब्दी में हम देख रहे हैं| श्रीराम व श्रीकृष्ण की अवमानना का प्रकल्प असफल हुआ यह कहने में कोई संकोच नहीं | अब सावरकर की बारी है | नेहरु जी की संयुक्त राष्ट्र, चीन व कश्मीर नीतियों को लेकर आलोचना उनके जीवनकाल से हो रही है | वीर सावरकर ने तो इसकी कड़ी आलोचना भी समय समय पर की थी |

इन्दिराजी ने पाकिस्तान से जीती हुई भूमि तथा ९३००० बंधक सैनिकों को बगैर पाकिस्तानी क्षमायाचना के ऐसे छोड़ा मानों अपराध पाकिस्तान ने नहीं बल्कि भारत ने किया हो | उनका आपातकाल देश के प्रजातान्त्रिक मूल्यों को बहुत घायल कर गया | अकाली दल के विरोध में खालिस्तानी आन्दोलन को पहले प्रश्रय, फिर निर्दयता पूर्वक क्रूर दमन का उदाहरण अपने आप में अकेला उदाहरण है | अत: इन्दिराजी की भी आलोचना स्वाभाविक है | राजीवजी ने जिस तरह इन्दिराजी द्वारा पोषित तमिल आन्दोलन को श्रीलंका में क्रूरता से दबाने में मदद की उसकी पूरे  विश्व में आलोचना हुई | आज भी नेहरूजी, इन्दिराजी, राजीवजी उनके बाद 21 दलों की कठपुतली मनमोहनसिंह सरकार की आलोचना उन दूरगामी गलतियों के कारण हो रही है जिन्होंने भारत को वर्षों पीछे कर दिया| मनमोहन सिंह / सोनिया सरकार के पेट्रोल डीजल बम से पूरा देश आज भी संकट में है | परन्तु परिवार की गलतियों से सबक सिखने के बजाय निर्लज्जता की पराकाष्ठा है कि कांग्रेस नेहरु इंदिरा राजीव के कृत्यों की आलोचना करने वालों को राष्ट्र द्रोही मानती है वहीँ सोनिया काल में कृत्रिम रूप से कम किये पेट्रोल के दामों का हवाला देकर दाम कम करने की मांग करती है |

इन सभी से ऊपर भयानक संकट अल्पशिक्षित व सत्ताप्रेमी व्यक्तिवादी पार्टियों की कृतियों से है | प्रमुख विपक्षी दलों के सोनियाजी राहुलजी प्रियंका वढेराजी, लालूपुत्रों की शैक्षणिक योग्यता संदिग्ध है | ममताजी, पवारजी, मेहबूबाजी,अब्दुल्ला परिवार व् उद्धव परिवार, केजरीवाल, द्रविड़ मुनेत्र कळघम, कम्युनिस्ट आदि पार्टियाँ स्थानीय संकुचित राजनीती के बाहर देश को नहीं देखना नहीं चाहतीं | यह देश के लिये बहुत ही संकट की घडी है | केरल, बंगाल, कश्मीर, आन्ध्र, तेलंगाना में विशिष्ट पन्थावलम्बियों की हठवादिता के सामने राज्य व राजनीतिक दल बलहीन से खड़े हैं | हिमाचल कर्णाटक के चुनावों ने अपने स्वार्थ के लिये गोलबंद तथाकथित कट्टरवादियों को विजय का स्वाद भी चखा दिया है | इन गोलबंद कट्टरवादियों को अपने पाले में खींचना व बनाये सभी दलों के लिये भरी चुनौती है| जैसे कर्णाटक में जद(एस) इन्हें अपने पाले में नहीं रख सकी| ईएसआई मज़बूरी के चलते इन दलों की भाषा अत्यंत निकृष्ट व् नियन्त्रणहीन भी हो गई हो तो कोई आश्चर्य नहीं  | फिर दृश्यश्राव्य समाचार माध्यम भी प्रतिक्षण कुछ न कुछ गरमागरम परोसना चाहते है| अब कोई न कोई मुद्दा गरमागरम भाषा में जनता के सामने लाना विपक्षियों की मज़बूरी है और इसीलिये नई संसद, सावरकर, भाजपा संघ के  स्वतंत्रता संग्राम में सहभाग आदि मुद्दे उछलते रहते हैं|  वैसे तो विपक्षी दलों की वर्तमान व इसके पहले की पीढ़ियों ने भी कभी स्वतंत्रता संग्राम में भाग नहीं लिया | हद तो ये है कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, आजाद, भगतसिंह, आदि क्रांतिकारियों साथ ही, गुरु गोविन्दसिंह, महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी महाराज, रानी लक्ष्मीबाई, रानी दुर्गावती, १८५७ स्वतत्रता संग्राम के महानायकों के बारे में कांग्रेस की भूमिका कभी भी पूजकों की नहीं रही | बाकी विपक्षी दल भी कुछ अलग नहीं|

एक और ज्वलंत मुद्दा उन विपक्षी दलों के नेताओं के बारे में, जो सरकारों में रहे हैं या अभी हैं,  उनके विरुद्ध भ्रष्टाचार के अनेकों गंभीर प्रकरण चल रहे हैं | गिने चुने नेताओं को छोड़कर शेष नेता  या तो जमानत पर चल रहे हैं या लालू यादव जैसे पैरोल पर|  स्वयम राहुल गाँधी व सोनिया गाँधी  अपनी ही पार्टी की संस्था को हथियाने को लेकर जमानत पर हैं तथा वकीलों के प्रबंधन के कारण सुनवाई से बचे हुए हैं | न्यायपालिका पर भी प्रकरणों की अधिकता का इतना दबाव है कि सुनवाई में समय लगता है और अपराधी बच निकलते हैं | लालूयादव इसके उदहारण हैं | केजरीवाल सरकार के तो दो मंत्री भी जमानत पर हैं व एक रिमांड पर | भ्रष्टाचार के विरोध के मुद्दे पर बनी पार्टी व सरकार पर भ्रष्टाचार के  आरोप लगना उस पार्टी व सरकार पर एक बहुत बड़ा कलंक है जिसे धोने में न्यायपालिका में शीघ्र सुनवाई तथा निर्दोषिता का निर्णय ही मददगार हो सकता है जो तुरंत संभव नहीं | ऐसे में इन मंत्रियों के अपराधों से ध्यान हटाने के लिये कोई न कोई नैरेटिव गढ़ना उनकी मज़बूरी है |

अब नरेन्द्र मोदी व उनकी सरकार के विरुद्ध भ्रष्टाचार या विकास में अवरोध का मुद्दा तो कोई बन नहीं रहा, विगत ९ वर्षों में विकास की गति चौतरफा बहुत तेज और सर्वस्पर्शी रही है | डायरेक्ट बेनिफिट ट्रान्सफर, डिजिटल भुगतान, शौचालय, अति गरीबों को मकान व सुविधाएँ, तीन वर्षों से अतिगरीबों को राशन आदि जनजन की लाभदायक योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन ने उन्हें व भाजपा को बहुत लोकप्रिय बना दिया है जिसका तोड़ विरोधी दलों को नहीं मिल रहा | इसलिए चित्र विचित्र आख्यान अर्थात नैरेटिव गढ़ना विपक्ष की मज़बूरी है | हिमाचल व कर्णाटक चुनाव से विशिष्ट पन्थों के वोटों के ध्रुवीकरण ने विपक्ष को बहुत बल दिया है | इसके साथ ही उनकी महत्वाकांक्षा के चलते अनेकों काल्पनिक  मुद्दों को उछालने की इच्छा भी बहुत बलवती हो गई है |

अडानी का मुद्दा उदाहरण है जिसमें सुप्रीम कोर्ट की समिति ने ही उसे मनगढ़ंत बता दिया था|

अब नवीनतम उदाहरण नवीन संसद भवन का लोकार्पण है| नवीन संसद भवन का लोकार्पण राष्ट्रपति द्वारा नहीं कराना विपक्ष द्वारा खेला गया कपोलकल्पित असफल मुद्दा है | इसे आठ बार सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई और हर बार कोर्ट ने उसे सुनवाई लायक भी नहीं समझा | यदि विपक्ष को आदिवासी महिला राष्ट्रपति के सम्मान की इतनी ही चिंता थी तो गत वर्ष उनके विरुद्ध यशवंत सिन्हा को उम्मीदवार ही नहीं बनाना था |

पुराने संसद भवन के जर्जर होने के चलते नये संसद भवन के निर्माण हेतु मनमोहन सिंह सरकार ने २०११ में प्रस्ताव दिया था इसे जनता भूली नहीं है| नया भवन भारतीय मान्यताओं के अनुरूप बना है तथा भारतीय धर्मदण्ड की स्थापना सुयोग्य स्थान पर करके संसद की सर्वोच्चता दर्शाने के सत्कृत्य ने मोदी सरकार को जनता की दृष्टि में बहुत ऊँचे स्थान पर बैठा दिया है | भारतीय संस्कृति को नई ऊँचाई देना अन्य विदेशी पन्थों के पंथाचार्यों को कैसे सुहायेगा ? तो क्या देश इन स्वार्थी पंथाचार्यों के इशारे पर चलना चाहिये? यह प्रश्न तो देश की जनता को ही सुलझाना होगा | लेकिन उससे बड़ी बात यह है कि विपक्षी दलों को अपनी दृष्टि सही करनी होगी व आत्मानुशासन रखना होगा | असहमति या विरोध के मुद्दे सैकड़ों हो सकते हैं परन्तु राष्ट्र की अखंडता, सर्वपंथ समभाव या राष्ट्र में पांथिक सौहार्द्र को धक्का लगे ऐसे मुद्दों से बचना ही पड़ेगा | मनगढ़ंत मुद्दे उछालकर विदेशों में भारत की प्रतिमा धूमिल न हो यह प्रत्येक विदेशगामी नेता को ध्यान रखना होगा |

आज़ादी के अमृतकाल में देश की जनसँख्या में जबरदस्त बढ़ोतरी, कई जिलों में जनसांख्यिकी (Demography) में भरी बदलाव, बढती जनसँख्या को मूलभूत सुविधाओं का प्रभावी वितरण, पर्यावरण तथा नदियों की बिगडती दशा ये ऐसे मुद्दे हैं जिनपर विपक्ष को तत्काल विचार विमर्श करना चाहिये तथा समाजकार्य हाथ में लेना चाहिये|

देश में  पिछले 9 वर्षों में विकास की गति जबरदस्त बढ़ी है | जनजन के आर्थिक स्थिति में जबरदस्त सुधार हुआ है | अगले २४ वर्षों में देश पूर्ण विकसित देश बने तथा विश्वपटल पर नेतृत्व करे व विश्वगुरू का स्थान पुन: प्राप्त करे इस हेतु सकारात्मक दृष्टिकोण व कार्य तथा सकारात्मक मुद्दे आधारित विरोध, समीक्षा व समालोचना हो यह आवश्यक है| 

अनिल चन्द्रशेखर सप्रे, लेखक 

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