पुलिस विभाग, रेलवे विभाग, हेल्थ व शिक्षा विभाग, आबकारी एवं रेवेन्यू विभाग और कई सारे सरकारी डिपार्टमेंट मे कई अधिकारी कर्मचारी वह यह मानकर चलते हैं कि हमारी ड्यूटी हमारे को भ्रष्टाचार करने का लाइसेंस हो गया। आदमी खुद हमारे पास आएगा पैसे हमको देगा तो उसका काम हो जाएगा। आपने सड़कों कई ट्रैफिक पुलिस को पैसे लेते हुए देखते होंगा, कलेक्टोरेट, पंजीयन, नगर निगम, विकास प्राधिकरण, लोक निर्माण या कौन सा ऐसा सरकारी विभाग है कि जहां सभी शरीफ है आजकल तो अदालतों में भी कई रिश्वतखोर हो गए। स्थिति यह है कि उनके सुपीरियर को यह सब पता हैता है पर उन पर कभी भी एक्शन नहीं लेते हैं। हालत यह है कि अधिकांश कर्मचारी अफसर बेखौफ रिश्वतखोरी में लगे हैं। अपने पद को अपनी अवैध कमाई का जरिया बना लेते हैं। यदि सरकार ऐसे में एक बार हजारों की तादाद में ऐसे सभी कर्मचारियों पर कार्रवाई करें और उन्हें सस्पेंड करें तब जाकर कर्मचारी अधिकारियों में डर बैठेगा पर बस यह है कि सरकार भी ईमानदार होना चाहिए। कई बार तो नेता और अधिकारी की सांठगांठ ने जनता को पूरा नीचो लेती है। रिश्वतखोर संख्या में कम है पीड़ित जनता की संख्या बहुत अधिक है बावजूद इसके जनता ने कभी विरोध नहीं दिखाया और रिश्वत को सेवा शुल्क मान लिया। क्योंकि उसके पास शिकायत और कोर्ट कचेरी करने के लिए समय नहीं होता, उसकी रोजी-रोटी पहले जरूरी है।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्) ये लेखक के अपने विचार है I
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