भारतवर्ष रीति-रिवाजों से भरा पूरा देश है हमारे यहां विभिन्न भाषा, धर्म, जाति, संस्कृति, सभ्यता के व्यक्ति साथ साथ जनता मिलजुल कर रहते हैं। सब ने अपने अपने समाज, खानदान और घर परिवार के अनुरूप विभिन्न रीति रिवाजो को अपनाया। जितने भी वार त्यौहार, सूर्य और चंद्रग्रहण, शादी ब्याह, जनम मरण आदी कार्यक्रम है उनके लिए कई रीति रिवाज है। रीति रिवाजो को लेकर बहुत ज्यादा गलतफहमीया है कोई एक पैटर्न की रीति रिवाज नहीं है जहां जिसके जो समझ में आ गया, किसी बुजुर्ग ने जो कह दिया बस वह रिती रिवाज बन गए, यदि कोई खिलापत करें तो परिजन, रिश्तेदार उसे कह सुनाकर मजबूर कर देगे। व्यक्ति की स्थिति सुबह शाम रोटी खाने की है पर उनके यहा यदि कोई गमी हो जाए तो मृत्यु भोज के नाम पर दूर-दूर तक के रिश्तेदार और मोहल्ले वाले को रसोई देगे, पास में पैसे नहीं कर्जा लेगे, कई बार तो उसको को चुकाने के लिए बहुत ऊंची ब्याज दर पर पैसा उठाते हैं। सालो तक मेहनत की कमाई ब्याज भरने में चली जाती है। कई घरों में शादी मे तीन-चार दिन के कार्यक्रम रखेंगे। पैसा हो तो आप सब करो लेकिन कर्जा लेकर करना समझदारी नही है, किस ग्रंथ में लिखा है कर्ज लेकर कार्यक्रम करो। करीबी रिश्तेदार पाच पाच दिन रुकते हैं, पाच दिन की मजदूरी तो गई जेब का पैसा भी खर्च, छठे दिन वही फटेहाल और कर्जदार भी। आजकल मोबाइल, टीवी, कार, स्कूटर, कूलर, ज्वेलरी जिनकी जरूरत ना भी हो, हर आदमी उसको किस्तों पर ले रहा है। कर्ज लेना खतरनाक वायरस की तरह है, फिलहाल घर घर लोगों ने कर्ज ले रखा है। चिंतन हो व्यर्थ के बनाए रिती रिवाजों से बचे। अशोक मेहता, (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्) (ये लेखक के अपने
विचार है)
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