हमने अक्सर श्मशान घाट में दिवंगत आत्मा के बारे में सभा होती देखी है वहा हर आदमी उसके गुणगान और आदर्श की बात करता है पर उस आत्मा के जीते जी कितने लोग उसकी कद्र करते रहे। हमने अक्सर यह भी कहते सुना कि यार तेरे लिए जान दे दूंगा, भैया कोई भी काम हो तो एक आवाज देना लेकिन जब आवाज देते हैं तो वादा करने वाले नदारद। कई बड़े ज्ञानी और हुनरबाज व्यक्ति होते हैं जो अपने स्वयं की तारीफ नहीं करते तो जनता भी उन्हें कम ही याद रखती है। जनता हमेशा उस और ज्यादा ध्यान देती है जिनका बड़ा ज्यादा प्रचार हो, ज्यादा दबंगता हो चाहे वह अच्छाई में हो चाहे बुराई में हो। असली तारीफ तो उस परिवार के व्यक्ति की होना चाहिए जो तमाम गरीबी के बाद भी अपने स्वाभिमान के साथ जीते हैं और कोई गलत काम नहीं करते है। लेकिन यहां समाज में आजकल बोलबाला जिसके पास ज्यादा पैसा हो चाहे जिस तरीके से कमाया हो, जिसके पास बाहुबल हो। सीधे-साधे अच्छे और सरल इंसान की कदर कम होते जा रही है यह दौर नेता अभिनेता और बड़े नामचीन (जीन के अखबारों में खूब विज्ञापन हो) व्यक्तियों का हो गया है। पर हां समाज का एक पक्ष आज भी हर अच्छे व्यक्ति की कदर करता है उनका मान सम्मान रखता है। व्यक्ति ने अपने जीवन के शुरुआती दौर से ही तय कर लेना चाहिए कि उसे अपनी कदर किस दिशा में बनानी है। अशोक मेहता, इंदौर (लेखक वास्तु एवं पर्यावरणविद्) ये लेखक के अपने विचार है I
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वर्तमान समय में टूटते बिखरते समाज को पुनः संगठित करने के लिये जरूरत है उर्मिला जैसी आत्मबल और चारित्रिक गुणों से भरपूर महिलाओं की जो समाज को एकजुट रख राष्ट्र…