कभी नरम तो कभी गरम तेवर दिखाने वाली पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बेनर्जी और दिल्ली के मुख्यमंत्री आम आदमी पार्टी सुप्रीमो अरविन्द केजरीवाल को क्या विपक्ष के गठबंधन में कांग्रेस के साथ शामिल कराने में बिहार के मुख्यमंत्री और अब बिहार की सीमाओं से निकल कर राष्ट्रीय फलक पर सक्रिय हुए नीतीश कुमार सफल हो पायेंगे या नहीं। यह सवाल इसलिए मौजू है क्योंकि ममता बेनर्जी का रुख अभी कांग्रेस को लेकर दूरी बनाये रखने वाला नजर आ रहा है तो केजरीवाल उन राज्यों में ही अपना विशेष असर दिखा पा रहे हैं जहां भाजपा और कांग्रेस में सीधी टक्कर है तथा अन्य क्षेत्रीय दल वहां अपनी अहमियत नहीं रखते। केजरीवाल प्रधानमंत्री मोदी के साथ कांग्रेस पर भी आक्रामक हैं ऐसे में नीतीश कुमार का कौशल कसौटी पर कसा जाना है कि क्या इन दूरियों के रहते हुए न्यूनतम साझा कार्यक्रम के आधार पर सभी विपक्षी दलों को एक छाते के नीचे लाने में नीतीश बाबू कोई अहम् भूमिका निभा पायेंगे या नहीं। ममता को साधने की जुगत में नीतीश कुमार जल्द ही प. बंगाल भी जाने वाले हैं। हालांकि बंगाल जाने की अभी कोई तारीखें तय नहीं हुई हैं लेकिन जल्द ही इसका ऐलान होगा। अपनी इस यात्रा के दौरान नीतीश ममता से मुलाकात करेंगे। नीतीश सभी विपक्षी दलों को एक साथ लाने के लिए ममता से मिलने वहां जा रहे हैं। उल्लेखनीय है कि नीतीश कुमार ने जब महागठबंधन के साथ पुनः जाने का ऐलान किया तो ममता ने उन्हें फोन किया था। अब उनसे नीतीश मुलाकात करने वाले हैं। अपने 48 घंटे के नई दिल्ली प्रवास के दौरान वह राहुल गांधी, सीताराम येचुरी, डी. राजा, अरविन्द केजरीवाल, ओमप्रकाश चौटाला, मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव, शरद पवार, शरद यादव, दीपांकर भट्टाचार्य और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एच.डी. कुमारस्वामी से मुलाकात कर चुके हैं। वह तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चन्द्रशेखर राव से पूर्व में मिल चुके हैं और उस मुलाकात में राजद नेता और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव भी शमिल थे। दरअसल 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए नीतीश इन दलों को एकजुट करते तो दिख रहे हैं लेकिन राहुल गांधी, ममता बेनर्जी और अरविन्द केजरीवाल सरीखे दावेदारों के बीच क्या नीतीश की अगुवाई में विपक्षी दल एकजुट हो पायेंगे यह देखने वाली बात होगी। यदि विपक्ष की तरफ से नीतीश कुमार को नरेंद्र मोदी के मुकाबले प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनना है तो उन्हें ममता बेनर्जी, राहुल गांधी और अरविन्द केजरीवाल को एकजुट करना होगा। 2019 में केसीआर ऐसा प्रयास कर चुके हैं लेकिन उन्हें अधिक सफलता नहीं मिली क्योंकि वह कांग्रेस से दूरी बनाकर अलग मोर्चा बनाना चाहते थे। जबकि नीतीश कुमार चाहते हैं कि कोई दूसरा या तीसरा मोर्चा न बने बल्कि एक ही प्रमुख मोर्चा बने। केसीआर ने अपने पटना दौरे के दौरान कांग्रेस के प्रति कोई तल्खी नहीं दिखाई, इससे लगता है कि वे नरम रुख अपनाने के लिए तैयार हैं क्योंकि उनके सामने भी भाजपा बड़ी चुनौती बनकर तेलंगाना में उभर रही है। जदयू के अध्यक्ष लल्लन सिंह भी यह दावा कर चुके हैं कि अगर बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में अधिक सीटें जीतने में सफल हुए तो बीजेपी सत्ता से बेदखल हो जायेगी। इन राज्यों में लोकसभा की कुल 96 सीटें हैं और इनमें से बंगाल की 42 सीटों पर भी नीतीश की निगाहें टिकी हुई हैं। ममता बेनर्जी भी विपक्ष की एक बड़ी नेता हैं और एक दशक से मुख्यमंत्री भी हैं, बिना उनको साथ लाये विपक्ष को एकजुट करना नीतीश के लिए आसान नहीं होगा। चूंकि झारखंड एवं बिहार की सरकारों में कांग्रेस भी शामिल है इसलिए कोई मजबूत गठबंधन बनाना है तो उसे दरकिनार कर कोई प्रभावी मोर्चा बनाने का कोई विशेष अर्थ नहीं रहेगा। ममता ने भी तृणमूल कांग्रेस के ब्लाक स्तर से लेकर राज्य स्तरीय नेताओं के साथ बैठक में कहा कि 2024 में हम एक खेल खेलेंगे जो बंगाल से शुरु होगा, हेमंत सोरेन, अखिलेश यादव, नीतीश कुमार, मैं और अन्य दोस्त सभी एकजुट होंगे तब फिर भाजपा कैसे सरकार बनायेगी। भाजपा को चुनौती देते हुए उन्होंने कहा कि केंद्रीय एजेंसियों से कुछ नहीं होगा आकर राजनीतिक मुकाबला करें।
अरुण पटेल, संपादक, लेखक (ये लेखक के अपने विचार है)
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