मालवा-निमाड़ में आदिवासियों में भाजपा का आधार बढ़ाते "मामा
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05-12-2021 03:41 PM
2023 के विधानसभा चुनाव और 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए अभी से मध्यप्रदेश में भाजपा और कांग्रेस ने अपनी चुनावी बिसात बिछाना प्रारंभ कर दिया है। भाजपा की पूरी कोशिश आदिवासियों और दलित मतदाताओं को पूरी ताकत से अपने साथ जोड़ने की है । भाजपा ने राजधानी भोपाल में 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस का मेगा आयोजन कर पूरे प्रदेश के आदिवासियों को साधने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी का पूरा-पूरा फायदा उठाने की कोशिश की। स्वतंत्रता संग्राम के नायक टंट्या मामा के बलिदान दिवस पर जो भव्य आयोजन किए गए उनके द्वारा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने निमाड़-मालवा अंचल में आदिवासियों के बीच भाजपा का जनाधार और अधिक मजबूत करने की अपनी रणनीति को धरा पर उतारने का महती प्रयास किया है। इसके पूर्व इस अंचल में दो गौरव यात्रा भी निकाली गई जिनका भी आज 4 दिसंबर को ही इंदौर में समापन हुआ। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि मामा के रूप में अपनी विशिष्ट छवि पूरे प्रदेश में बना चुके शिवराज सिंह चौहान ने आदिवासी समाज के आराध्य नायक टंट्या मामा के योगदान को रेखांकित करते हुए जो आयोजन किए हैं उसका मकसद इस अंचल में भाजपा की पकड़ और अधिक मजबूत करना है।
टंट्या मामा के बलिदान दिवस पर आज 4 दिसंबर को पातालपानी में राज्यपाल मंगू भाई पटेल और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने टंट्या मामा की मूर्ति का अनावरण किया तथा इंदौर के नेहरू स्टेडियम में उन्होंने एक भव्य आयोजन में टंट्या मामा के वंशजनों तथा गौरव कलश यात्रा का सम्मान भी किया। इस अवसर पर शिवराज पूरी तरह से आदिवासी रंग में रंगे नजर आए। पातालपानी में राज्यपाल मंगू भाई पटेल और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 10 फीट ऊंची टंट्या मामा की कांस्य प्रतिमा का अनावरण किया और टंट्या भील मंदिर पहुंचकर पूजा की। शिवराज ने कहा कि टंट्या मामा के जन्मदिन को आज उनके बलिदान दिवस के रूप में मनाया जा रहा है । उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि यह आजादी के आंदोलन में आदिवासियों के योगदान को स्थापित करने का यज्ञ है। पिछले नवंबर माह के अंतिम सप्ताह है में खंडवा जिले के ग्राम बडोदा अहीर में गौरव कलश यात्रा की शुरुआत करते हुए शिवराज ने जब निमाडी बोली में यह कहा कि -उन बखत तुम्हरो मामो टंट्या मामो थो, न अभी हऊं शिवराज मामो छे (उस वक्त तुम्हारी मदद के लिए टंटया मामा था तो इस वक्त शिवराज मामा है)। शिवराज का यह वाक्य इस बात की ओर साफ इशारा करता है कि वे अपनी मामा की छवि का सहारा भील आदिवासियों के बीच अपनी पैठ बनाने के लिए कर रहे हैं। अंग्रेजों से लोहा लेने वाले जननायक टंट्या भील के नाम के साथ जुड़ा यह मामा के रिश्ते वाला संबोधन आज भी निमाड़-मालवा में भील आदिवासियों की चिरस्थाई पहचान बना हुआ है। टंट्या मामा अंग्रेजों के लिए भले ही लुटेरे या डकैत हों, लेकिन गरीबों के बीच उनकी पहचान रॉबिनहुड जैसी ही थी। मध्यप्रदेश की राजनीति के केन्द्र आदिवासी तो पहले थे ही, परंतु अब टंट्या मामा के जरिए निमाड़-मालवा की राजनीति बदलने की कोशिश नए सिरे से हो रही है।
निमाड़-मालवा अंचल में विधानसभा की कुल 65 सीटें हैं। इनमें 21 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। यह भील आदिवासी बाहुल्य इलाका है। गैर आरक्षित सीटों पर भी आदिवासी मतदाताओं की भूमिका निर्णायक मानी जाती रही है। निमाड़- मालवा अंचल में आदिवासी वोटरों को अपने पक्ष में करने के लिए भाजपा, उसके पूर्व घटक जनसंघ और संघ परिवार की महती भूमिका रही है, लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में इलाके की कई परंपरागत सीटें भाजपा के हाथ से फसल गईं थीं। इसका ही नतीजा था कि राज्य में पंद्रह साल के लंबे अंतराल के बाद कांग्रेस की सत्ता में वापसी संभव हो पाई। युवा आदिवासी संगठन जयस भी इस इलाके में सक्रिय है। इस संगठन को कांग्रेस की बी टीम के तौर पर देखा जाता है। इसका कारण यह है कि जयस के एक प्रमुख स्तम्भ रहे हीरालाल अलावा कांग्रेस विधायक हैं और इस संगठन के नेताओं के दिग्विजय सिंह से अच्छे संबंध हैं। हाल ही में खंडवा लोकसभा सीट के उपचुनाव में जयस ने अपना कोई उम्मीदवार खड़ा नहीं किया। इसके चलते भाजपा को मिले वोट कम हो गए। लोकसभा के आम चुनाव में भाजपा ने यह सीट लगभग पौने तीन लाख वोटों से जीती थी। उपचुनाव में हार-जीत का अंतर घटकर एक लाख से काफी नीचे आ गया है। निमाड़-मालवा इलाके में भाजपा के पास फिलहाल कोई ऐसा चेहरा भी नहीं है जिसके सहारे वह आदिवासियों को अपनी तरफ खींच सके। वैसे प्रदेश के अन्य अंचलों में भी एकाध अपवाद को छोड़कर कोई बड़ा आदिवासी चेहरा फिलहाल भाजपा के पास नहीं है। लोकसभा के आमचुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर झाबुआ की लोकसभा सीट भाजपा को मिली है। इससे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में पूर्व कांग्रेसी नेता दिलीप सिंह भूरिया भाजपा के टिकट पर जीत गए थे लेकिन उनके निधन के बाद फिर से सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया ने कब्जा कर लिया था। अब भाजपा में उम्मीद इस कारण भी जगी है कि यहां की संसदीय सीट के साथ ही साथ हाल ही में जोबट विधानसभा उपचुनाव के नतीजे भी भाजपा के पक्ष में गए। हालांकि यह बात अलग है कि चुनाव जीतने वाली सुलोचना रावत की पृष्ठभूमि कांग्रेस की है। उपचुनाव से पहले उन्होंने दलबदल किया था। जोबट की जीत में यह साफ संदेश भाजपा को मिला कि जीत के लिए आदिवासियों के बीच लोकप्रिय चेहरा भी जरूरी है। भील आदिवासियों को कांग्रेस का परंपरागत वोटर माना जाता है और उसके उसके पास आदिवासी चेहरे भी कई हैं। लेकिन भाजपा लगभग पिछले डेढ़ दशक से हर वर्ग में शिवराज सिंह चौहान का चेहरा ही आगे रखकर चुनाव लड़ती रहती है। इसका कारण यह है कि शिवराज का अपना आभामंडल है और हर वर्ग में लोकप्रिय भी हैं। टंट्या भील के नाम का आक्रामक ढंग से राजनीतिक उपयोग भाजपा पहली बार कर रही है।
मामा छवि का लाभ मिलेगा?
राज्य में लाडली लक्ष्मी योजना की सफलता के बाद शिवराज सिंह चौहान मामा के रूप में लोकप्रिय हुए हैं। आदिवासियों के बीच टंट्या भील मामा के रूप में लोकप्रिय रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी मामा की छवि को टंट्या मामा से जोड़कर आदिवासियों के बीच पेश कर रहे हैं। टंट्या की जन्म स्थली से शुरू हुई गौरव कलश यात्रा को आरंभ करते हुए मुख्यमंत्री चौहान ने आदिवासियों से निमाड़ी बोली में कहा कि उन्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है। पहले टंट्या मामा थे, अब शिवराज मामा है। टंट्या मामा की जन्मस्थली बडोदा अहीर की मिट्टी लेकर कलश यात्रा निकली और समापन भी चार दिसंबर को इंदौर में हुआ। टंटया के बलिदान दिवस पर पातालपानी के साथ ही इंदौर में बड़ा आयोजन हुआ। टंट्या मामा के बलिदान स्थल पातालपानी को नव-तीर्थ के रूप में विकसित किया जाएगा और वहां पर उनकी विशाल प्रतिमा का अनावरण मुख्यमंत्री और राज्यपाल ने किया किया । सरकार ने पातालपानी रेलवे स्टेशन का नामकरण टंट्या मामा रेलवे स्टेशन रखने के लिए केन्द्र सरकार को प्रस्ताव भेजा है। इससे पहले सरकार भोपाल के हबीबगंज स्टेशन का नाम बदलकर रानी कमलापति कर चुकी है। रानी कमलापति गौंड आदिवासी थीं। निमाड़-मालवा की आदिवासी राजनीति के केन्द्र में इंदौर भी है। इसलिए भंवर कुआं चौराहा और आईएसबीटी बस स्टैण्ड का नाम टंट्या मामा के नाम पर किया गया है।आदिवासियों द्वारा साहूकारों से लिए गए कर्ज को भी मुख्यमंत्री चौहान ने माफ करने की घोषणा की है।
और यह भी
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