राजगढ़ का सिद्धपीठ माँ जालपा देवी मंदिर अपनी अलौकिक दिव्यता के लिए देश भर में हैं प्रसिद्ध
Updated on
10-10-2022 01:31 AM
भोपाल संभाग के राजगढ़ जिले का प्रसिद्ध सिद्धपीठ माँ जालपा देवी मंदिर भी अपनी भव्यता, अलौकिक दिव्यता के लिए देश भर में ख्याति प्राप्त है। देश-विदेश से कई श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर माता रानी के दरबार आते हैं।
मध्यप्रदेश के राजगढ़ में सिद्धपीठ जालपा माता मंदिर घने जंगलों के बीच विशाल टेकरी पर विराजित हैं। माता के दर्शन को मध्यप्रदेश के साथ ही राजस्थान और गुजरात से भी भक्त आते हैं। मान्यता है कि जब किसी के शादी-विवाह के लिए मुहूर्त नहीं निकलता तो वह जालपा मंदिर आते हैं यहां पर पुजारी से मुहूर्त निकलवाते हैं। यहां की पाती बिना किसी मुहूर्त का शुभ मुहूर्त होता है। माता की मूर्ति के बारे में मान्यता है कि करीब 1100 साल पहले भक्त ज्वालानाथ की तपस्या से खुश होकर माता ने दर्शन दिए थे। इसके बाद यहीं पर पीपल के पेड़ के नीचे माता की मूर्ति मिली थी, बाद में जालपा पहाड़ी पर पाषण निर्मित माता की सिंह सवार प्रतिमा की चबूतरे पर स्थापना की गई थी।
जानकारी के अनुसार राजगढ़ जिले में भील राजाओं का राज हुआ करता था। भील राजाओं की माता रानी में अपार श्रद्घा थी, उसी समय यहां पर उन्होंने मातारानी की स्थापना की थी। पहा़ड़ी पर करीब 550 साल पहले भील राजाओं द्वारा सिद्धपीठ माँ जालपा माता की स्थापना की गई थी। उस समय उनके द्वारा ही पूजन अर्चना की जाती थी लेकिन बाद में यहां पर सेवा करने वाले बदलते रहे। सिद्धपीठ जालपा माता मंदिर पर नवरात्र के दौरान हजारों की संख्या में भक्तों का सैलाब उमडता है।
*घने जंगल के बीच में था स्थान*
जंगल के बीच में मातारानी की स्थापना की गई थी। उस समय रास्ता नहीं होने के चलते खराब रास्तों, पत्थरों से होकर लोगों को मंदिर तक जाना होता था। 1990 से यहां पर सड़क, बिजली व पानी के इंतजाम हुए। मंदिर पर नवरात्रि के दौरान भीड़ भाड़ रहती है। हजारों की संख्या में लोग दर्शन करने के लिए यहां आते हैं।
सिद्धपीठ जालपा माता मंदिर की सिद्धी इतनी है कि जब भी किसी के शादी-विवाह के लिए मुहुर्त नहीं निकलते हैं तो माता रानी के दरबार में पांती रखने के साथ विवाह संपन्न किए जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां की पांती बिना किसी मुहूर्त के शुभ मुहूर्त होता है।
प्रतिमा की स्थापना के बाद मंदिर की देखरेख राजगढ़ स्टेट के उमठवंशीय राजाओं और बाद में प्रशासन और मंदिर ट्रस्ट की जिम्मेदारी में आ गई। मंदिर और पहुंचने के लिए दो मार्ग हैं। यहां पर सड़क मार्ग के साथ सीढ़ियों से भी जाया जा सकता है। सुरक्षा के लिए यहां पर पुलिस चौकी भी स्थापित की गई है। मंदिर पहुंचने के लिए भक्तों को करीब एक किलोमीटर की चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। आज भी मंदिर के मुख्य सेवक भीलवंशीय ही हैं। यूं तो सालभर मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, लेकिन नवरात्रि में यहां लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। नवरात्रि में राजगढ़ और आसपास के क्षेत्र के भक्त पदयात्रा कर माता को चुनरी चढ़ाते हैं।
जालपा देवी मंदिर में भक्तों द्वारा अपने काम पूरे करवाने के लिए माता रानी के दरबार में स्वास्तिक बनाने के साथ ही पत्थरों के मकान भी बनाए जाते हैं। भक्तों द्वारा मंदिर की दीवारों पर हजारों की संख्या में स्वास्तिक बना रखे हैं। जबकि मंदिर के आसपास व पहा़ड़ी पर ब़डी संख्या में कार्य सिद्ध होने की मांग को लेकर स्वस्तिक भी बनाए जाते हैं। यहाँ हर साल शारदीय एवं चैत्र नवरात्री के दौरान भारी संख्या में देश - विदेश से भक्तों का आगमन होता है और यहाँ बड़ा मेला भी लगता है।
*उल्टा स्वास्तिक बनाने से पूरी होती है मनोकामना*
विशेष लग्न मुर्हूत के साथ ही माँ जालपा का यह अति प्राचीन मंदिर अपनी एक और खास मान्यता के लिए जाना जाता है। यहां आने वाले श्रद्धालु उल्टा स्वास्तिक (सातिया) बनाकर माता से अपनी मुराद मांगते हैं। इन श्रद्धालुओं की मुराद पूरी होने पर दोबारा मंदिर पहुंचकर गोबर का सातिया बनाया जाता है। इसी के साथ श्रद्धालु मंदिर में भंडारा, माता का विशेष श्रृंगार ओर अन्य दान-पुण्य कर माता का आभार जताते हैं। खास बात तो यह है कि मंदिर में सिंदूर से अधिक गोबर के सातिया बने हैं। जो माता द्वारा श्रद्धालुओं के मुराद पूरी होने की जानकारी देते हैं।
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