देश प्रेम वह शब्द है जिसे इंसान जैसे ही समझदारी पर कदम रखे उसके रग रग मे समा जाना चाहिए। हमारे यहां दुर्भाग्यवश देश प्रेम के लिए दिखावा बहुत होता है, भाषण भी बहुत अच्छे होते हैं। पर बहुत कम व्यक्ति उसे अपने आचरण में उतारते हैं चाहे सत्ताधारी या विपक्ष, कर्मचारी या अधिकारी, व्यापारी या इंडस्ट्रियलिस्ट इनमें से कई ऐसे हैं जो देश प्रेम का भरपूर दिखावा करेंगे पर जैसे ही स्वार्थ सिद्धि की बात होगी देश प्रेम को एक कोने में रख देगे। 15 अगस्त और 26 जनवरी दो राष्ट्रीय पर्व पर हम सुबह से लेकर शाम तक राष्ट्रगान, राष्ट्रीय गीत सुनते रहते हैं। युवा से लेकर बुजुर्ग, अनपढ़ से लेकर पढ़े-लिखे तक झंडा फहराने की धुन में रहते हैं। कई युवाओं का खर्चा चंदा इकट्ठा करके निकल जाता हैं। दो दिन राष्ट्रीयता दिखाने के बाद साल के बाकी दिन सब अपनी अपनी राह। सरकार की ओर से परेड होती है अच्छे काम करने वालों को सम्मानित किया जाता है ताकि बाकी अन्य लोग के मन में भी देश प्रेम जागे। ये दो दिन छोड कर कई लोगो की अंतरात्मा जानती है की उनमें कितना देश प्रेम है। जब तक स्वार्थ से आदमी मुक्त नहीं होगा देश प्रेम नहीं जागेगा। देश के लिए देशवासी के दिल में मानवता, इमानदारी, शौर्य, त्याग, कुर्बानी यह सब भावना का होना जरूरी है। कई महान पुरुषों ने देश के लिए कई कुर्बानियां दी, उनका सोच था कि भारतवासी स्वतंत्र माहौल में रहे। अतः भ्रष्ट और रिश्वतखोरी को देश प्रेम का पाठ कदम कदम पर सिखाना होगा। अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्) (ये लेखक के अपने
विचार है)
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