व्यक्ति के जीवनकाल में सामाजिक व्यवस्थाओ के बीच अकेलापन एक तरह से अभिशाप है, जाने अनजाने व्यक्ति अपने आप में अकेला रह जाता है। कई परिवार ऐसे हैं जिन्होने बच्चे विदेश पढ़ने या रोजगार के लिए भेज दिये, बच्चे वही सेटल हो गये, कहने में बहुत अच्छा लगता था कि बच्चे विदेश में है लेकिन जैसे-जैसे समय गुजर रहा है अब उन्हें अकेलापन खा रहा, उनकी देखरेख वाला कोई नहीं, अब वे समाज में अपना अकेलापन दूर करने में लगे हैं। कई व्यक्ति अपने स्वभाव के कारण अकेले हो जाते हैं वह दूसरों से घुलते मिलते नहीं। वह अपनी धुन में रहते हैं, इसी स्वभाव के कारण वे अकेलापन झेलते है। बहुतो को अकेलापन बिल्कुल अच्छा नहीं लगता उनका खाना पीना, रहना, उठना बैठना सब कुछ परिवार के साथ, बच्चे, माता पिता, भाई बहन यानी संयुक्त परिवार मैं होता है। कई व्यक्ति मित्र बनाकर अकेलापन महसूस दूर करते हैं। एक चॉइस होती है कि हम अकेले रहे या सार्वजनिक रहे। अकेलापन में खर्च कम परंतु तन्हाई ज्यादा। सरल कोमल ह्रदय सदैव मुस्काने वाला व्यक्ति कभी अकेला नहीं होता उसके हर काम आसानी से होते है। स्वयं हिताय और रिजर्व नेचर व्यक्ति अकेलापन मैं रहते है। हमारा जीवन अकेलेपन के लिए नहीं है और ठेर सारी जनसंख्या, फिर भी अकेलापन यह बात विचारनिय है। कहावत भी है अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। फिर यहां तो पूरा जीवन व्यतीत करने की बात है
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वर्तमान समय में टूटते बिखरते समाज को पुनः संगठित करने के लिये जरूरत है उर्मिला जैसी आत्मबल और चारित्रिक गुणों से भरपूर महिलाओं की जो समाज को एकजुट रख राष्ट्र…