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लोकडाउन बना प्रकृति के लिए वरदान

Updated on 30-05-2020 03:47 PM
प्रकृति को जैसा चाहिए वैसा वो करवा ही लेती है इससे हमें यह समझ जाना चाहिए की इस धरती पर प्रकृति ने हमें जो जीवन दिया है उस जीवन को प्राकृतिक तरीके से ही जीना है। यह भूल की प्रकृति से हम छेडछाड करे और प्रकृति हमें माफ  कर दे ये नहीं हो सकता। अभी के हालातों को देखें तो हमे दिख जाएगा की प्रकृति ने तो अपने आप को बैलेंस कर लिया है पर क्या हम पुन: अपने आप को इतनी जल्दी बैलेंस कर पाएंगे। बस अब यही सोच कर मनुष्य ने प्रकृति से प्रेम करना चाहिए और जितना अपने तरफ  से हो सके उतना प्रकृति से छेडछाड या नुक्सान नहीं पहुँचाना चाहिए। वैसे भी एक वायरस प्रकृति ने भेज ही दिया जिससे अब सभी को सभी जगह स्वचछता रखनी ही पडेगी। आलस का त्याग करना ही पडेगा क्योंकि ये वायरस उन्ही लोगों के लिए अभिश्राप बनकर आया है जो प्रकृति के अनुकूल कहीं न कहीं लापरवाह रहे। 
वहीँ पिछले २ महीनों में हमारी दुनिया एकदम बदल गई है। हज़ारों लोगों की जान चली गई। लाखों लोग बीमार पड़े हुए हैं। इन सब पर एक नए कोरोना वायरस का क़हर टूटा है और जो लोग इस वायरस के प्रकोप से बचे हुए हैं, उनका रहन-सहन भी एकदम बदल गया है। ये वायरस दिसंबर 2019 में चीन के वुहान शहर में पहली बार सामने आया था। उसके बाद से दुनिया में सब कुछ उलट पुलट हो गया। शुरुआत वुहान से ही हुई जहां पूरे शहर की तालाबंदी कर दी गई। इटली में इतनी बड़ी तादाद में वायरस से लोग मरे कि वहां दूसरे विश्व युद्ध के बाद से पहली बार लोगों की आवाजाही पर इतनी सख़्त पाबंदी लगानी पड़ी। भारत सहित ब्रिटेन की राजधानी लंदन में लोग अपने घरों में बंद हैं। दुनिया भर में उड़ानें रद्द कर दी गई हैं और बहुत से संबंध सोशल डिस्टेंसिंग के शिकार हो गए हैं। ये सारे क़दम इसलिए उठाए गए हैं, ताकि नए कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोका जा सके और इससे लगातार बढ़ती जा रही मौतों के सिलसिले को थामा जा सके।
प्रदूषण में भारी कमी
इन पाबंदियों का एक नतीजा ऐसा भी निकला है, जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी, अगर, आप राजधानी दिल्ली से पड़ोसी शहर नोएडा के लिए निकलें, तो पूरा मंजऱ बदला नजऱ आता है। सुबह अक्सर नींद अलार्म से नहीं, परिंदों के शोर से खुलती है। जिनकी आवाज़ भी हम भूल चुके थे। आज चाहे हम जिस भी शहर में रहते हों हर शहर में ऐसा ही वातावरण बन चुका है। चाय का मग लेकर जऱा देर के लिए बालकनी में जाएं,तो नजऱ ऐसे आसमान पर पड़ती है। जो अजनबी नजऱ आता है।  इतना नीला आसमान, दिल्ली-एनसीआर में रहने वाले बहुत से लोगों ने ़िंजदगी में शायद पहली बार देखा हो। फ ़लक पर उड़ते हुए सफ़ेद रूई जैसे बादल बेहद दिलकश लग रहे थे,सड़कें वीरान तो हैं, मगर मंजऱ साफ़  हो गया है। सड़क किनारे लगे पौधे एकदम साफ़ और फू लों से गुलज़ार। यमुना नदी तो इतनी साफ़ कि पूछिए ही मत,सरकार हज़ारों करोड़ ख़र्च करके भी जो काम नहीं कर पाई लॉकडाउन ने वो कर दिखाया।
प्रकृति के लिए वरदान
ऐसी ही तस्वीरें दुनिया के तमाम दूसरे शहरों में भी देखने को मिल रही हैं। इसमें शक नहीं कि नया कोरोना वायरस दुनिया के लिए काल बनकर आया है।् इस नन्हे से वायरस ने हज़ारों लोगों को अपना निवाला बना लिया है। अमरीका जैसी सुपरपावर की हालत खऱाब कर दी है। इन चुनौतियों के बीच एक बात सौ फ ़ीसद सच है कि दुनिया का ये लॉकडाउन प्रकृति के लिए बहुत मुफ ़ीद साबित हुआ है। वातावरण धुल कर साफ़ हो चुका है। हालांकि ये तमाम क़वायद कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए हैं। लॉकडाउन की वजह से तमाम फ़ैक्ट्रियां बंद हैं। यातायात के तमाम साधन बंद हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अर्थव्यवस्था को भारी धक्का लग रहा है। लाखों लोग बेरोजग़ार हुए हैं। शेयर बाज़ार ओंधे मुंह आ गिरा है। लेकिन अच्छी बात ये है कि कार्बन उत्सर्जन रुक गया है। 
प्रकृति के प्रति बने ईमानदार
कुल मिलाकर बात वही है कि  प्रकृति तो  अपने आपको व्यवस्थित कर ही लेगी पर हम जिस प्रकृति के दम पर धरती पर जी रहे है और प्रकृति के माध्यम से ही हवा,पानी और अन्न का उपयोग कर रहे  है यदि हमने प्रकृति  को हानि पहुंचाई तो हमें ऐसे ही वायरस का सामना आगे भी करना पड सकता है क्योंकि हमारे शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता प्रकृति  पर ही  निर्भर है। प्रकृति ने समय  चेताने के लिए दिया है,कि उसका संरक्षण पेड,पौधे, नदियाँ,तालाब, पहाड और उन सभी प्राकृतिक सम्पदाओं को ईमानदारी से बचाने और उपयोग का है जिससे प्रकृति को नुक्सान न होै। 

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