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लॉकडाउन अमीरों के लिए वेकेशन और गरीबों के लिए सज़ा है या नहीं

Updated on 25-05-2021 04:02 PM
हमने रोड़ पर मारी एंट्रियां, 
 पुलिस ने भांझी लाठियां, 
       टन टना टन टन ।।
लॉकडाउन एवं जनता कर्फ्यू में एक दृश्य अक्सर देखने को मिलता है,पुलिसकर्मी अपनी लाठियों से किसी राहगीर को पीटते हैं,पुलिसकर्मी भी मजबूर है और बाहर निकलने वाले भी मजबूर,यह दृश्य देखकर ना चाहते हुए भी हमारे होठों पर मुस्कुराहट आ जाती हैं,बेचारा पीटने वाले राहगीर से पूछो वह घर से बाहर क्यों निकला था, पुलिस वालों का टारगेट होता हैं राहगीर के तशरीफ़ पर,और तशरीफ़ पर जमकर लठ बरसाए जाते हैं,पुलिस वालों का लठ चलाने का अंदाज बिल्कुल ऐसा होता है,जैसे सचिन तेंदुलकर किसी कमज़ोर गेंदबाज के खिलाफ जमकर चौके छक्के मार रहा हो,बेचारे ग़रीब राहगीर से पूछो तशरीफ़ पर लठ पड़ने से ना ही बैठ पाता हैं,ना ही लेट पाता हैं, ना घर वालों को कुछ बता पाता हैं। जब वह पुलिस की मार खाकर घर पहुंचता है तो उसकी पत्नी पूछती है क्या हो गया ऐसे क्यों चल रहे हो तो बेचारा झूठ बोलता हैं,सड़क पर पैर फिसल गया था, पैर में मोच आ गई है, इसलिए पैर दुख रहा है,वह क्या बताए कि पुलिसकर्मियों ने उसे जानवरों की तरह पीटा है।
इस लॉक डाउन में कुछ ऐसी घटनाएं घटी है,जिसको देखकर या सुनकर आपके होठों पर मुस्कुराहट आ जाएगी I
एक भोपाली इस लॉक डाउन में बड़े सज धज के,आँखों में सुरमा लगा कर,मुंह में पान दबाए हुए, हाथों में मछली पकड़ने वाली बंसी,बंसी का मतलब होता है फिशिंग रॉड,उनकी बेगम ने टोका मियां कहां जा रहे हो,बाहर लॉक डाउन लगा हुआ है,पुलिस वालों के हत्थे चढ़े गए तो पुलिस वाले मार मार के भुर्ता बना देंगे,अरे बेगम तुमने कर दी ना मामू जैसी बात तुम्हें नहीं मालूम मेरी पुलिस वालों से खूब छनती है,जब भी पुलिस वाले मुझे देखते हैं, तो मुझसे कहते हैं क्यों चाचा कहां जा रहे हो जरा पान तो खिला दो।
बेगम बोलती है जाओ मियां ऊपरवाला तुम्हारा निगेहबान,बेगम मसाला भून के रखना अभी मैं मछली पकड़ कर लाता हूँ, थोड़ी देर तालाब किनारे बैठूंगा ठंडी हवा का मज़ा लूंगा और तुम्हारे लिए मछली पकड़ कर लाऊंगा फिर अपन दोनों बैठकर मज़े से मछली खाएंगे,यह बोलकर हुजूरे वाला घर से निकल गए जैसे ही चौराहे पर पहुंचे पुलिस वाले ने चच्चा की लाठियों से ऐसी ख़ातिरदारी की,चच्चा को दौड़ा-दौड़ा कर तशरीफ़ पर लठो की बरसात कर दी‌ जब चच्चा घर वापस आए,बेगम को आवाज दी बेगम मसाला छोड़ो जल्दी से हल्दी चूना लेकर आ जाओ मर्दुतो ने  दौड़ा-दौड़ा कर बहुत मारा ।
आपके मन में यह विचार आ रहा होगा लॉक डाउन में घर से बाहर यह लोग क्यों निकलते हैं,कभी आपने किसी ग़रीब का घर देखा है,यह लोग एक कमरे में रहते हैं उसी कमरे में खाना भी बनता है और उसी कमरे में सोते भी हैं,एक कमरे में पांच पांच लोग रहते हैं, अगर यह पांचो एक साथ कमरे में लेट जाएं,किसी का पैर दूसरे के सिर से टकराता है ।
  गर्मी का मौसम छत पर लोहे की चादर दिन में कमरा ऐसा तपता मानो किसी भट्टी में आ गए हो, कूलर पंखा चला नहीं सकते अगर  कूलर पंखा चलाएंगे,तो बिजली का बिल ज्यादा आएगा और बिजली के पैसे कैसे जमा करेंगे, क्योंकि एक महीने से पान की दुकान नहीं खुली है । 
यह लॉकडाउन अमीर लोगों के लिए आराम करने का समय हैं, अमीर लोगों को ना राशन की चिंता ना पैसे की फिक्र,गर्मी के मौसम में ऐसा लगता है,जैसे किसी हिल स्टेशन पर आ गए हो, शौचालय से लेकर कमरों तक एयर कंडीशनर लगे हुए हैं,शाम को चाय अपने बगीचे में बैठकर पीते हैं,ना इन लोगों को इस बात की चिंता है,लॉकडाउन बढ़ेगा या नहीं । वही हम बात करें एक ग़रीब इंसान की जिन का कमरा जेल से बदतर होता है,जेल के कमरो पर पक्की छत तो होती है और दिन भर पंखा भी चलता है, सुबह से लेकर शाम तक इन मुजरिमों को खुले मैदान में छोड़ दिया जाता है,जहां पर यह मुजरिम  खुली हवा का आनंद तो लेते हैं,पर ग़रीबों से पूछें इनके जो कमरे होते हैं, वह पतली सी गलियों में, इनके कमरों में ना हवा आती है,ना रोशनी, इनके कमरे दिन में भट्टी की तरह तपते हैं, अगर यह लोग घर के बाहर सड़क पर आ जाएं तो पुलिसकर्मी इनको जानवरों की तरह पीटते हैं इस लॉकडाउन में इन गरीबों पर दोहरी मार पड़ रही है,इनकी छोटी-छोटी दुकानें बंद है,घर में राशन खत्म हो रहा है,पैसे के नाम पर कुछ सिक्के बचे हुए हैं । सरकार द्वारा दिया गया महीने का पांच किलो ज्वार,इस ज्वार को पिसवाने के लिए के लिए चकिया भी बंद है,अगर कोई चक्की चोरी चुपके खुली मिल जाए तो चक्की वाले साफ मना कर देते हैं हमारे यहां गेहूं पीसा जाता है, ज्वार नहीं ।
आप ही फैसला करें क्या यह लॉकडाउन अमीरों के लिए वेकेशन और गरीबों के लिए सज़ा है या नहीं ।
     जिंदगी यह तो बता, 
     तेरा इरादा क्या है। 
     तेरे दामन में बता, 
     मौत से ज्यादा क्या है।। 
मोहम्मद जावेद खान,लेखक                                                        ये लेखक के अपने विचार है I 
संपादक, भोपाल मेट्रो न्यूज़

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