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लामबंदी पर आकर टिकी सियासत: चाहे वर्चस्व बना लें या अस्तित्व बचा लें

Updated on 01-05-2022 12:48 PM
मिशन 2023 में भाजपा द्वारा मध्यप्रदेश की राजनीति में अपना वर्चस्व स्थापित करने और कांग्रेस द्वारा अपना अस्तित्व बचाने की जंग तेज होने के संकेत इस बात से मिलते हैं कि दोनों के ही हाईकमान ने अपने-अपने प्रदेश नेतृत्व को लामबंद कर दिया है। नई दिल्ली में हुई भाजपा कोर कमेटी के मंथन से यह बात उभर कर सामने आई है कि अब भाजपा उन वर्गों का भरोसा जीतने की कोशिश करेगी जिनके कारण 2018 का चुनाव हार गई थी। आदिवासियों, दलितों और अन्य ऐसे समूहों जो पार्टी से छिटक गए थे उनका फिर से भरोसा जीतने के  साथ ही कट्टर हिंदुत्व की राह पर चलने का निर्देश सत्ता व संगठन को देते हुए  नसीहतें भी दी गईं। इसी प्रकार छत्तीसगढ़ भाजपा के नेताओं को भी प्रदेश संगठन को चुस्त-दुरुस्त करने के निर्देश दिए गए और इसके साथ ही इस बात के संकेत मिले हैं संगठन के साथ ही विधायक दल के नेतृत्व में भी परिवर्तन किया जा सकता है इसका कारण यह बताया जा रहा है कि  भाजपा नेतृत्व को भरोसा हो गया है कि मौजूदा नेतृत्व के चलते 2023 के विधानसभा चुनाव में किसी चमत्कार की उम्मीद नहीं की जा सकती  है। भाजपा राज्य में फिर से सत्तारूढ़ होना चाहती है इसलिए वह असरकारक परिवर्तन करने के मूड में है। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस हाईकमान भी अब फैसले करने लगा है और उसने नेता प्रतिपक्ष के पद से पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का त्यागपत्र मंजूर करते हुए तीखे समाजवादी तेवरों वाले जुझारु, लड़ाकू तथा सात विधानसभा चुनाव लगातार जीतने वाले भिण्ड के लहार क्षेत्र के विधायक डॉ. गोविंद सिंह को नेता प्रतिपक्ष का दायित्व सौंप दिया है। एक बात यह भी साफ हो गयी है कि आगामी विधानसभा चुनाव होने तक पार्टी की कमान कमलनाथ के हाथों में ही रहेगी और अन्य जो भी जरुरी बदलाव होंगे वे किए जायेंगे। प्रदेश के वरिष्ठ कांग्रेस नेता भी अपनी सहमति दे चुके हैं कि अगला विधानसभा चुनाव कमलनाथ की अगुवाई में ही लड़ा जाएगा। सभी कांग्रेस नेता अब मैदानी संघर्ष के लिए भी कमर कस रहे हैं। कार्यकर्ताओं में फिर से उत्साह बढ़ाकर उन्हें  सक्रिय करने के लिए उनके ऊपर जो कथित झूठे मुकदमें दाखिल किए गए हैं कांग्रेस उनका खुलकर प्रतिरोध करेगी और इसकी शुरुआत गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा के विधानसभा क्षेत्र दतिया से करने का ऐलान किया गया है। कांग्रेस के जमीनी आंदोलन की कमान पूर्व मुख्यमंत्री सांसद दिग्विजय सिंह स्वयं संभालेंगे, क्योंकि यह निर्णय उनकी अध्यक्षता में प्रदेश कांग्रेस कमेटी की प्रशासनिक अत्याचार प्रतिरोध समिति की बैठक में लिया गया था और इस कमेटी के अध्यक्ष वे स्वयं हैं। 
   मिशन 2023 की तैयारियों में जुटी मध्य प्रदेश भाजपा के कोर ग्रुप व राष्ट्रीय नेताओं की दिल्ली में हुई बैठक में सत्ता विरोधी लहर पर चिंता जताने के साथ ही अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग को साध कर अपने पाले मे लाने के लिए समुचित प्रयास न किए जाने पर भी राष्ट्रीय नेताओं ने नाराजगी जताई। आने वाले समय में सत्ता व संगठन दोनों में कुछ बदलाव लाने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता, जिसमें कुछ मंत्रियों को बाहर का रास्ता भी दिखाया जा सकता है। संगठन में भी कुछ न कुछ बदलाव अवश्य होगा और जो बदलाव होंगे वे केवल कास्मेटिक सर्जरी नहीं बल्कि ऐसे होंगे जिन्हें महसूस किया जाए और जिन वर्गों के बीच अपनी पैठ बढ़ाना है उनमें सकारात्मक का संकेत भी जाये। संघ नेताओं ने आदिवासी वर्गों के बीच वैमनस्य पैदा करने का काम कर रहे जय युवा आदिवासी शक्ति संगठन जयस और अनुसूचित जाति वर्ग के बीच भी ऐसा ही माहौल बनाने वाले भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद  रावण की प्रदेश में बढ़ती हुई गतिविधियों के मद्देनजर उन पर विशेष ध्यान देने पर सर्वोच्च प्राथमिकता से अमल करने की आवश्यकता रेखांकित की। इसको लेकर एक व्यापक रणनीति भी बनाने पर जोर दिया गया। इस पर राज्य में तत्काल ही अमल भी करने की दिशा में कदम उठाना प्रारंभ हो गया है। ऐसे भी संकेत मिले हैं कि संघ यह महसूस करता है कि इन दोनों संगठनों से निपटना एक बड़ी चुनौती होगी क्योंकि दोनों के ही पीछे कांग्रेस खड़ी हुई है और राज्य में कांग्रेस से भाजपा की सीधी राजनीतिक लड़ाई है। सत्ता विरोधी लहर से चौकन्ना व सावधान रहने की हिदायतें देने के साथ ही उनकी गतिविधियों पर लगाम कसने के निर्देश भी दिए गए हैं। 
        भाजपा की इस बैठक में राष्ट्रीय नेताओं ने संगठन व सत्ता के बीच समन्वय बढ़ाने पर जोर देते हुए संकेत दिया है कि अब इस प्रकार की बैठकें निरन्तर होना चाहिये। कुछ मंत्रियों की छवि खराब होने और उनका कमजोर प्रदर्शन तथा भ्रष्टाचार पर नियंत्रण नहीं होने पर भी चर्चा हुई। लगभग चार घंटे तक चली इस बैठक में अन्य कई समस्याओं पर भी लम्बा विचार-विमर्श किया गया। इसका महत्व इसलिए बढ़ जाता है क्योंकि इसमें मध्यभारत, महाकौशल और मालवा अंचल में प्रान्त प्रचारक, प्रान्त कार्यवाह और मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ क्षेत्र के प्रचारक दीपक विस्पुते, क्षेत्र कार्यवाह अशोक अग्रवाल के अलावा सह-सरकार्यवाह अरुण कुमार भी मौजूद थे। इसमें इस बात पर विशेष जोर दिया गया कि मौजूदा चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार के स्तर पर कसावट लाई जाए और निर्णय सामूहिक हों। इसके बाद छत्तीसगढ़ के भाजपा नेताओं की भी बैठक हुई जिसमें खैरागढ़ उपचुनाव में पार्टी की पराजय सहित अन्य मुद्दों पर चर्चा करते हुए पार्टी नेताओं को और अधिक आक्रामक तेवर अपनाने की हिदायतें दी गयीं। छत्तीसगढ़ के प्रमुख नेताओं में नेता प्रतिपक्ष धर्मलाल कौशिक, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु देव साय, डेढ़ दशक तक लगातार मुख्यमंत्री रहने वाले डॉ. रमन सिंह आदि नेता भी मौजूद थे। 

सिंधिया को घेरने की जवाबदारी अब गोविंद सिंह पर
       प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष दोनों की 2018 से लगातार जिम्मेदारी एक साथ निभाने वाले कमलनाथ ने अंततः नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ दिया और यह जिम्मेदारी वरिष्ठ विधायक डॉ. गोविंद सिंह को इस उम्मीद के साथ सौंपी गयी है कि वे ग्वालियर-चम्बल अंचल में कांग्रेस की जड़ें नये सिरे से मजबूत करेंगे। यही कारण है कि उनका कद बढ़ाया गया है। डॉ. गोविंद सिंह ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत समाजवादी नेता के रुप में की और पहली बार 1990 में वह जनता दल के टिकट पर चुनाव जीते। उसके बाद वह कांग्रेस पार्टी में आ गए और तबसे लगातार एक प्रखर व मुखर विधायक के रुप में उनकी छवि में निखार आता गया। जैसा कि समाजवादियों का स्वभाव होता है वे जमीनी संघर्ष में सिद्धहस्त होने के साथ ही आक्रामक तेवर लिए रहते हैं और आज कांग्रेस को उन्हीं तेवरों की जरुरत है। ग्वालियर-चम्बल अंचल में ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने और कमलनाथ सरकार के धराशायी हो जाने के बाद वहां एक कमी आई थी उसे पूरा करने के लिए डॉ. सिंह को आगे किया गया है और देखने वाली बात यही होगी कि आने वाले समय में वे कितने प्रभावी होंगे और क्या ज्योतिरादित्य के प्रभाव में कुछ सेंध लगाते हुए कांग्रेस की मजबूती में कारगर भूमिका अदा कर पाएंगे। नेता प्रतिपक्ष के रुप में उन्हें कांग्रेस की गुटीय कर्कशता व खींचतान का सामना शायद ही करना पड़े क्योंकि वह पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खासमखास हैं और कमलनाथ का भी उन पर पूरा भरोसा है। लेकिन वहां की राजनीतिक जमीन कांग्रेस के लिए अब खुरदुरी हो गयी है और उसे उपजाऊ बनाना ही उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती है। डॉ. गोविंद सिंह को कांग्रेस के हैवीवेट राजनेता रहे अर्जुन सिंह भी पसंद करते थे और उनके पुत्र पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह से भी उनके मधुर रिश्ते हैं। क्षेत्रीय संतुलन की दृष्टि से यह परिवर्तन काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि सत्ता पर वह दल काबिज हो जाता है जिसे इन क्षेत्रों में अच्छा-खासा समर्थन मिल जाता है। पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव भी इस निर्णय से खुश बताये जाते हैं। डॉ. गोविंद सिंह ने कांग्रेस विधायक दल के नेता का पद मिलते ही कमलनाथ से मुलाकात कर उनका आभार व्यक्त किया, इस अवसर पर अरुण यादव भी साथ थे। अरुण यादव की बॉडी लैंग्वेज को देखकर यह संकेत मिलता है कि वह भी इस निर्णय से खुश हैं। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के निवास पर जाकर भी गोविंद सिंह ने मुलाकात की और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें दूरभाष पर बधाई दी ।
और यह भी
     2018 के विधानसभा चुनाव में डेढ़ दशक की भाजपा की भगवाई सत्ता को उखाड़ फेंकने के बाद कांग्रेस को सत्ता सिंहासन तक पहुंचाने में ग्वालियर-चंबल क्षेत्र का महत्वपूर्ण योगदान रहा जबकि यह भाजपा का गढ़ रहा है लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाये जाने से कांग्रेस को यहां अत्याधिक सफलता मिली। ग्वालियर-चम्बल संभाग के चुने गये कांग्रेस के अनेक विधायकों के पाला बदल लेने के कारण अब भाजपा के लिए यह इलाका काफी जनाधार वाला हो गया है और उसमें ही सेंध लगाने के लिए डॉ. गोविंद सिंह को आगे किया गया है जबकि स्वयं दिग्विजय सिंह, उनके बेटे पूर्व मंत्री विधायक जयवर्द्धन सिंह, दिग्विजय सिंह के भ्राता विधायक लक्ष्मण सिंह, वरिष्ठ विधायक के.पी. सिंह भी इस अभियान में उनकी भरपूर मदद करेंगे। ग्वालियर-चम्बल संभाग में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव क्षेत्र में डॉ. सिंह कितनी सेंध लगा पाते हैं उसके बाद ही यह पता चल सकेगा कि कांग्रेस की उम्मीदों पर वे कितने खरे उतरे हैं। अब कमलनाथ का समूचा फोकस चुनावी रणनीति बनाने व मैदानी जमावट करने पर होगा जबकि मैदानी स्तर पर मोर्चा गोविंद सिंह के साथ ही दिग्विजय सिंह, अजय सिंह और अरुण यादव संभालते नजर आयेंगे।
अरुण पटेल, लेखक,   प्रबंध संपादक, सुबह सवेरे

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