कानून का मतलब है नियम संहिता जिसके अंदर अंतर्गत कई प्रकार के जिम्मेदारी और कार्यप्रणाली समाहित होती है और जिम्मेदारी और कार्यप्रणाली से विमुख होने पर दंड संहिता बनाई गई है। भारत में केवल संसद को ही अधिकार दिया है कानून बनाने के लिए जो राष्ट्रपति की सहमति के बाद लागू होता है। संसद को कानून का मंदिर भी कहा जाता है। लोकतंत्र में हर क्षेत्र से एक प्रतिनिधि वहां रहता है जो अपने क्षेत्र के बारे में देश के बारे में अपनी बात रख सकता है और वही से सामूहिक निर्णय होते हैं। लोकतंत्र में जब से पार्टीवाद तब से यह महान भावना एक तरफा चली गई अब देश के अन्य क्षेत्रों से जो प्रतिनिधि आते हैं वह एक पार्टी की विचारधारा से जुडे हैं। विचारधारा सही हो या गलत हो संसद में उसी विचारधारा के अंतर्गत कार्य होते हैं। जो उस विचारधारा में यदि शामिल ना हो तो हमने देख लिया आपस में झगड़े, माराकुटी, कपड़े फाडना और शर्मनाक बातें करना जिसे देखकर कई बार तो चिड आने लगती है। कानून बनाने वाले खूद कानून की धज्जियां उड़ा देते हैं। चाहे जो मेजारिटी हो यदी विचारधारा अच्छी है तो निश्चित रूप से देश में काम अच्छा होता है। शासन प्रशासन ने कानून के पालन की जिम्मेदारी पुलिस विभाग को दी परन्तू इस विभाग पर कोई नजर रखने वाला नहीं दिखता हालात यह है कि भ्रष्ट अधिकारी अपनी मर्जी अनुसार अपराध दायर कर सकता हैं। देश मे कई कानून ऐसे हैं जिसका फायदा लेकर किसी को भी परेशान किया जा सकता है। अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्) ये लेखक के अपने विचार है I
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