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जाने कहां चले जाते हैं,दुनिया से जानेवाले कैसे ढूंढे कोई उनको, नहीं है कोई कदमों के निशा

Updated on 11-05-2021 12:38 PM
जाने कहां चले जाते हैं , 
       दुनिया से जानेवाले,   
       कैसे ढूंढे कोई उनको, 
             नहीं है कोई 
          कदमों के निशा ।। 
भोपाल नगर निगम के जांबाज़ फायरमैन विनोद वर्मा को श्रद्धांजलि,विनोद तुम जिंदगी से लड़ते रहे,नगर निगम के उच्च अधिकारी देखते रहें,तुम तड़पते रहें,पहले निगम के उच्च अधिकारी देखते रहें, कुछ दिन पहले तुम्हारी पत्नी गई,आज तुम भी चले गए,तुम तड़पते रहें,उच्च अधिकारी देखते रहें,जब तुम्हारा विवाह हो रहा था,तुमने अग्नि के सामने अपनी पत्नी का हाथ पकड़कर सात जन्मों तक साथ निभाने की सौगंध खाई थी,वाकई तुमने सौगंध पूरी की,पत्नी के साथ तुम भी चले गए,जाने से पहले एक बार भी तुमने अपने 13 वर्षीय इकलौते बेटे के बारे में नहीं सोचा,अपने वृद्ध माता-पिता के बारे में नहीं सोचा,तुम्हारी माँ घर के बाहर दरवाज़े पर खड़ी तुम्हारा इंतज़ार कर रही थी,हर गाड़ी के गुज़रने की आवाज़ पर भागते हुए दरवाज़े पर आ जाती थी,उनको लगता था,तुम स्वस्थ होकर घर वापस आ गए हो पर तुम तो नहीं आए,तुम्हारा मृत शरीर जरूर आया, जिसको देखकर तुम्हारे बुजुर्ग माता पिता,तुम्हारे बेटा का क्या हाल हुआ,तुम्हें क्या बताएं !  तुम तो चले गए अपनी पत्नी के साथ, छोड़ गए अपने 13 वर्ष के बेटे को और वृद्ध माता पिता को ।
विनोद तुम्हें मालूम है,तुम्हारी माँ रात भर तुम्हारी वर्दी जिसको पहनकर तुम काम पर जाते थे, उसको सीने से लगा कर बैठी रही,कभी वर्दी पर हाथ फेरती, कभी उसको सीने से लगा लेती, उसको ऐसा लग रहा था,वह वर्दी को नहीं तुम को गले लगा रही है, तुम्हारा बेटा तुम्हारे जूतों पर पॉलिश कर रहा था और दादी से कह रहा था दादी मैं पापा के जूतों पर पॉलिश कर दूं ,पापा को सुबह ऑफिस जाना है । 
तुम भी अपनी विरासत में छोड़कर गए तो क्या ? एक बेटा, बुजुर्ग माँ-बाप और ढ़ेर सारा कर्ज़ा । यह कर्ज़ा वह है,जो  इलाज के दौरान तुम्हारे ऊपर और तुम्हारी पत्नी के ऊपर ख़र्च हुआ था, तुम नगर निगम में विनिमित्त कर्मचारी थे,और तुम्हारी पगार मात्र दस हज़ार रुपए महीना थी, हफ़्ते के सातों दिन तुमको नौकरी पर जाना पड़ता था,छुट्टी नाम की कोई चीज़ नहीं थी,तुम्हारा बेटा तुमसे ज़िद करता था,पापा आज घुमाने ले चलो मगर तुम मजबूर थे, तुमको छुट्टी नहीं मिलती थी और तुमने अपनी जान हथेली पर रखकर नौकरी बखूबी निभाई, जब किसी के घर या दुकान पर आग लग जाती थी,तुम फायरमैन थे, तुम को सबसे आगे रहना पड़ता था,आग बुझाने के लिए और तुमने कई लोगों की जिंदगियां बचाई थी,तुमने लोगों के कीमती सामान बचाए थे,पर अफसोस तुम अपनी जान नहीं बचा पाए, तुम कोरोना की लड़ाई में हार गए, कोरोना रूपी अजगर ने तुमको भी निगल लिया । 
ऊपरवाला तुम्हारे बुजुर्ग माँ-बाप और बेटे को इस दुख को सहन करने की शक्ति दे । 
कोरोना काल में सबसे ज्यादा काम और जिम्मेदारी नगर निगम के कर्मचारियों के कंधों पर हैं, विशेषकर ऐसे कर्मचारी जो 29 दिवसीय में कार्य कर रहे हैं, यह वह कर्मचारी जो विनिमित्त में है,  29 दिवसीय कर्मचारियों की पगार मात्र 7 हज़ार रुपए,अर्ध कुशल एवं कुशल कर्मचारियों की पगार मात्र 8 से लेकर 12 हजार रुपए तक महीना और काम दिन रात,हफ़्ते के सातों दिन,अगर कोई कर्मचारी काम के दौरान कोरोना से ग्रस्त हो जाए तो वह 7 हज़ार रुपये में अपना इलाज करवाएगा या अपने परिवार के लिए भरण पोषण करें,ना कोई इलाज़ की व्यवस्था,नाही कोई बीमा,और काम शव वाहन चलाना, कोरोना से मरने वालों के शवों की अंत्येष्टि करवाना,अस्पतालों से शवों को उठाना,घरों से शवों को उठाना, खेतों में,दुकानों में,घरो में आग लग जाए तो आग बुझाना,  अतिक्रमण हटवाना,नालों की सफाई करना,डूबने वालों के शवों को तालाब से निकालना,जो आत्महत्या के लिए तालाबों में कूदते उन को बचाना,घरो से कचरा उठाना,पानी की टंकियों के वाल्व खोलना,टूटी हुई पाइप लाइनों को दुरुस्त करना, सड़कों पर गली मोहल्लों में झाड़ू देना,नालिया साफ़ करना,गटरों र्में उतर कर सफाई करना,पार्किंग की व्यवस्था देखना,पानी के टैंकरों से झुग्गी बस्तियों में पानी पहुंचाना,अधिकारियों एवं मंत्रियों के बंगलों पर टैंकरों से पानी पहुंचाना,अधिकारियों एवं मंत्रियों के घरों पर झाड़ू पोछा करना, साहबो के घरो के लिए सब्जी लाना,उनके कुत्तों को घुमाना । अगर इन कर्मचारियों को निगम की रीढ़ की हड्डी बोला जाए तो ग़लत नहीं होगा । 
कम पगार, सुविधाओं का अभाव के कारण यह निगम की रीढ़ की हड्डी टूटने के कगार पर है,इतना काम और पगार मुट्ठी भर,यह कर्मचारियों को नरकिये जीवन गुज़ारने के लिए मजबूर है । इस उम्र में इनको कोई दूसरा काम नहीं मिलेगा, इसी बात का फ़ायदा उठा रहे हैं,निगम के आला अधिकारी,एक बार आला अधिकारी इनके बारे में जरूर सोचे,यह भी इंसान है, इनकी भी ख्वाहिशें है, इनकी भी जरूरत है, इनकी भी छोटे-छोटे बच्चे हैं, बुजुर्ग माँ-बाप हैं, इतने कम पगार में अगर बीमार हो जाए तो इलाज तो नहीं करवा पाएंगे,मौत को जरूर गले लगा लेंगे । 
       कब तक रोना है, 
        कब तक सहना है, 
       कब तक आँखों पर 
   पट्टी बांधकर जीते रहना है। 
      अब उठाओ आवाज़ 
    अब तुमको भी सम्मान 
       की जिंदगी जीना है।।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
मोहम्मद जावेद खान,लेखक                                                        ये लेखक के अपने विचार है I 
संपादक, भोपाल मेट्रो न्यूज़

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