केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लागू किए गए नए कृषि कानूनों के विरोध में तथा दिल्ली की सीमा पर आंदोलनरत किसानों के समर्थन में देर से ही सही लेकिन अंततः मध्यप्रदेश में भी कांग्रेस मैदान में उतर गई है। जगह-जगह किसान सम्मेलन, आंदोलनों, धरना चक्का जाम आदि हो रहे हैं तथा इनमें और 15 जनवरी को प्रदेश भर में 500 स्थानों पर चक्का जाम की सफलता को लेकर कांग्रेस नेतृत्व काफी उत्साहित है। पार्टी अब इसे और व्यापक बनाने के लिए ग्राम पंचायत स्तर तक ले जाने की रणनीति बना रही है और इस संबंध में अंतिम निर्णय होने के बाद कांग्रेस इसकी रूपरेखा घोषित करेगी। प्रदेश कांग्रेस में लंबे समय से व्यापक बदलाव की चर्चा चल रही है और कांग्रेस जन बड़ी ही बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं इसलिए किसान सम्मेलनों के बहाने पार्टी में एक प्रकार से वर्चस्व की राजनीति तेज हो गई है।
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने जो अपनी नई टीम बनाई है उसमें अधिकांश नए चेहरों को मौका दिया गया है और लगभग दो दशक से जो चेहरे संगठन की पहचान बन चुके थे उन्हें स्थान न देकर नए लोगों को मौका दिया गया है। भाजपा ने नई पीढ़ी तैयार कर आगामी कुछ वर्षों के लिए एक झटके में ही बदलाव कर दिया है। कांग्रेस भी क्या अपने संगठनात्मक ढांचे में इस प्रकार का बदलाव करेगी ताकि नए खून को मौका मिल सके और वह जोश खरोश के साथ संगठन को आगे बढ़ा सके। भाजपा संगठन में दो बार पीढ़ी परिवर्तन हो चुका है लेकिन कांग्रेस में वही चेहरे नेतृत्व के नाम पर आगे हैं जिन्होंने 70 और 80 दशक में अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत की थी। देखने वाली बात यही होगी कि क्या कांग्रेस भी ऐसा साहस दिखा पाएगी जिसमें संगठन और विधायक दल की बागडोर अपेक्षाकृत युवा और ऊर्जावान चेहरों के हाथों में होगी। किसान आंदोलन के जरिए जहां एक ओर कांगेस नगरीय निकायों के चुनावों की तैयारी कर रही है तो वहीं दूसरी ओर अनेक कांग्रेस नेता शक्ति प्रदर्शन कर रहे हैं ताकि उनकी विभिन्न पदों के लिए दावेदारी मजबूत हो सके। किसान आंदोलन को लेकर अभी तक जो बात देखने में सामने आई है उसमें कमलनाथ समर्थकों के प्रदर्शन की तुलना में पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे अजय सिंह, डॉ गोविंद सिंह, जयवर्धन सिंह, प्रियव्रत सिंह, सुरेंद्र सिंह हनी बघेल आदि नेताओं के आयोजन अधिक प्रभावी रहे हैं।
कांग्रेस में कौन होगा किसान नेता
कांग्रेस को प्रदेश में एक किसान नेता की तलाश है क्योंकि उसके पास ऐसा कोई बड़ा चेहरा नहीं है जो पूरे प्रदेश में जाना पहचाना जाता हो और जिसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि किसान की हो। इस दृष्टि से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने पूर्व केंद्रीय मंत्री तथा पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव को आगे बढ़ाया है। दिग्विजय ने यादव से अपेक्षा की है कि वह अपने पिता पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष तथा पूर्व उपमुख्यमंत्री स्व. सुभाष यादव की तरह किसानों के नेतृत्व को बढ़ाते हुए आगे आएं। प्रदेश के एक बड़े किसान नेता व प्रदेश में सहकारिता क्षेत्र के दिग्गज स्तंभ रहे सुभाष यादव के बेटे अरुण यादव उनकी राजनीतिक विरासत के उत्तराधिकारी होने के साथ ही भारत कृषक समाज के अध्यक्ष भी हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष होने के नाते अरुण यादव का आधार भी प्रदेशव्यापी हो गया है और वह अनजान चेहरा नहीं हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद के प्रमुख दावेदारों में उनका नाम भी चल रहा है। विधानसभा सत्र टल जाने के बाद भी यादव विधानसभा का घेराव करना चाहते थे तथा किसान ट्रैक्टर पर इस प्रदर्शन में भाग देने वाले थे। लेकिन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने 27 दिसंबर 2020 को ऐलान कर दिया कि विधानसभा परिसर के अंदर कांग्रेस विधायक 28 दिसंबर को गांधी प्रतिमा के सामने धरना देंगे। इससे यह हुआ कि उस प्रदर्शन में सुरेश पचौरी, अजय सिंह, अरुण यादव आदि अनेक कांग्रेस नेता भाग नहीं ले पाए क्योंकि वह विधायकों का धरना था। विधायक अपने हाथ में ट्रैक्टर खिलौना लिए हुए थे जिससे यह प्रदर्शन उपहास का विषय अधिक बन गया। इससे भले अरुण यादव के हाथ से किसानों का नेतृत्व करने का अवसर निकल गया हो, लेकिन उन्होंने अपना अभियान जारी रखा और उनके साथ दिग्विजय सिंह जयवर्धन सिंह सहित कई कांग्रेस नेताओं ने भाग लिया, इसमें एकाध अपवाद को छोड़कर हर जगह प्रभावी प्रदर्शन हुए।
इसी दौरान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने विधिवत चरणबद्ध ढंग से किसान सम्मेलन चक्का जाम आदि करने का कार्यक्रम घोषित कर दिया। स्थानीय स्तर पर कांग्रेस के सम्मेलन और आयोजन होते रहे। चंबल संभाग में गोविंद सिंह और विंध्य अंचल में अजय सिंह ने मोर्चा संभाला। कमलनाथ की घोषणा के अनुसार प्रदेश में 500 स्थानों पर चक्का जाम 15 जनवरी को किया गया। 16 जनवरी को छिंदवाड़ा में किसान सम्मेलन का आगाज कमलनाथ ने किया। 20 जनवरी को मुरैना में एक बड़ा किसान सम्मेलन होने जा रहा है जिसमें प्रदेश के सभी बड़े कांग्रेस नेता भाग लेंगे। 23 जनवरी को भोपाल में कांग्रेस इस सिलसिले में प्रदेश स्तरीय प्रदर्शन करने जा रही है तथा उस दिन राजभवन का घेराव किया जाएगा। मुरैना और भोपाल में होने वाला कांग्रेस का आयोजन कितना प्रभावी रहता है इससे ही पता चल सकेगा कि किसानों को कांग्रेस द्वारा कानून में बताई गई खामियां प्रभावित करती हैं या फिर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा और कृषि मंत्री कमल पटेल द्वारा लगातार किसानों को कानून के फायदे समझाए जा रहे हैं वह उनके ज्यादा गले उतरा है। फिलहाल तो यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस में किसान आंदोलन के साथ ही एक दूसरे पर बढ़त लेने की राजनीति भी चल रही है क्योंकि कांग्रेस के संगठनात्मक ढांचे में प्रदेश से लेकर ब्लॉक स्तर तक बदलाव होने वाले हैं।
और अंत में..........
एक तरफ महीनों बीतने के बाद भी वक्त है बदलाव का नारे के साथ सत्ता में आई कांग्रेस पार्टी संगठन में कोई फेरबदल नहीं कर पाई और बमुश्किल केवल युवा कांग्रेस अध्यक्ष विक्रांत भूरिया की नवनिर्वाचित टीम कि अपना कार्यभार संभाल पाई ।प्रदेश कांग्रेस में अभी बदलाव का इंतजार है। इसके उलट भाजपा में न केवल विष्णु दत्त शर्मा की नई टीम का ऐलान हो गया बल्कि नवनियुक्त पदाधिकारियों ने आज 17 जनवरी को अपना कार्यभार भी संभाल लिया है। पदाधिकारियों को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान दो-टूक नसीहत दी कि अब जश्न फटाके, होर्डिंग, स्वागत सत्कार ज्यादा नहीं चलना चाहिए बल्कि तुरंत काम पर लग जाएं।
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