क्या सुप्रीम कोर्ट का निर्णय बदलेगा राज्य के सियासी समीकरण
Updated on
09-05-2022 02:57 PM
मध्यप्रदेश में ओबीसी आरक्षण मुद्दे को लेकर भाजपा-कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोपों के दौर के बाद अब सुप्रीम कोर्ट के 10 मई को होने वाले फैसले का राज्य के राजनीतिक हलकों में बड़ी बेसब्री से इंतजार किया जा रहा है। पंचायतों और नगरीय निकाय चुनावों में अन्य पिछड़े वर्गों को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के मामले पर लम्बे समय से कांग्रेस और भाजपा के बीच श्रेय लेने की होड़ मची है जिसको लेकर ही दोनों एक दूसरे पर परस्पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। आनन-फानन में मध्यप्रदेश अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक करते हुए उसे अदालत में पेश कर दिया गया है जिस पर निर्णय सुरक्षित है तथा 10 मई को इस पर फैसला आयेगा। इस पर शीर्ष अदालत ने कुछ गंभीर सवाल उठाये हैं। कमलनाथ सरकार ने इन वर्गों को मिलने वाला आरक्षण बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दिया था जिसे बाद में न्यायालय में इसे चुनौती दी गयी और मामला वहीं से उलझता गया। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले के विरुद्ध सरकार सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गयी। इस मामले में अदालत का निर्णय आने के बाद उसके परिप्रेक्ष्य में भाजपा और कांग्रेस अपनी-अपनी रणनीति बनायेंगे और उसके बाद फिर एक बार आरोप-प्रत्यारोप का दौर आरम्भ हो सकता है, लेकिन फिलहाल तो इंतजार अदालती फैसले और उसके बाद रंग लाती ओबीसी राजनीति का रहेगा।
मध्यप्रदेश में 15 साल बाद बनी कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने ओबीसी आरक्षण बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दिया था। अदालत ने इस आरक्षण के तहत होने वाली कुछ परीक्षाओं पर रोक लगा दी तब भाजपा का यह आरोप था कि अदालत मे कमलनाथ सरकार ने मजबूती से अपना पक्ष नहीं रखा जबकि कांग्रेस का भी यही आरोप था कि शिवराज सरकार ने मजबूती से सरकारी पक्ष नहीं रखा। इस प्रकार दोनों पार्टियों में इसका श्रेय लेने की होड़ लग गई कि कौन सबसे बड़ा अन्य पिछड़े वर्ग का हितैषी है। इसी बीच पंचायत चुनाव में 27 प्रतिशत आरक्षण देने पर अदालत ने रोक लगा दी तो सरकार ने उस रोक को हटाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और पंचायत चुनाव को टाल दिया। अब इस बात का इंतजार है कि सुप्रीम कोर्ट क्या निर्णय सुनाती है क्योंकि उसके बाद ही पंचायत चुनावों में क्या होगा यह परिदृश्य स्पष्ट हो सकेगा। सुप्रीम कोर्ट में मध्यप्रदेश सरकार ने अब 35 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण की मांग करते हुए आयोग की रिपोर्ट अदालत में पेश की, जिस पर कोर्ट ने तीन गंभीर सवाल उठाते हुए यह जानना चाहा कि आपने ग्रिवयांस सेल बनाई थी या नहीं, लोगों को आपके काम पर आपत्ति दर्ज कराने का मौका दिया था या नहीं और क्या राज्य स्तर पर अनुशंसा की गयी, चुनाव क्षेत्र के अनुसार अनुशंसा क्यों नहीं की गयीं। इससे अभी तक 27 प्रतिशत आरक्षण की बात थी अब 35 प्रतिशत आरक्षण की नई मांग कर दी गयी है जिससे मामला कुछ अधिक पेचीदा हो सकता है। यदि अदालत अपने फैसले में 27 प्रतिशत आरक्षण को हरी झंडी देती है तो यह निश्चित तौर पर शिवराज सरकार की बहुत बड़ी जीत होगी और सरकार निकाय व पंचायत चुनाव की तैयारी कर सकती है। यदि कोर्ट इस पर सहमत नहीं होती तो फिर 14 प्रतिशत आरक्षण पर ही चुनाव कराने को कह सकती है। अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति को मिलाकर 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण न होना ही ट्रिपल टेस्ट में है और यही 27 प्रतिशत आरक्षण में बाधा है। चूंकि सरकार ने 27 प्रतिशत आरक्षण लागू करने का वायदा किया है इसीलिए चुनाव स्थगित किए गए हैं तो वह इस फैसले के विरुद्ध डबल बेंच में अपील करने पर विचार कर सकती है।
06 मई को मध्यप्रदेश पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग की रिपोर्ट को राज्य सरकार ने शीर्ष कोर्ट में रख दिया जिसमें 35 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण देने की दलील दी गयी। इस रिपोर्ट पर कुछ गंभीर सवाल उठाते हुए अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया। इस पर नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने कहा है कि अब कोर्ट के फैसले के आधार पर ही कदम उठाये जायेंगे। सरकार ने आरक्षण को लेकर आगे उठाये जाने वाले कदमों पर भी विचार मंथन प्रारंभ कर दिया है। ओबीसी आरक्षण के मुद्दे को लेकर मंत्री भूपेन्द्र सिंह का यह भी कहना था कि आयोग की 600 पृष्ठों से अधिक की विस्तृत रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में पेश कर दी गयी है। उन्होंने कहा कि आयोग के अधिवक्ता पी.एस. पटवालिया, निखिल जैन और सालीसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपनी ओर से पर्याप्त तर्क व आंकडों के साथ मजबूती से पक्ष रखा है। उनके अनुसार आयोग की रिपोर्ट में प्रत्येक जिले व निकायों में अन्य पिछड़ा वर्ग की स्थिति का अध्ययन कर प्रदेश में 46 फीसदी मतदाता अन्य पिछड़ा वर्ग के आंकलित किए गए हैं। हमने त्रिस्तरीय ग्रामीण व शहरी निकाय चुनावों में 35 फीसदी आरक्षण मांगा है। भूपेन्द्र सिंह ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि वह पिछड़ा वर्ग का कल्याण नहीं चाहती और महज दिखावा करती है, उनका कहना है कि कांग्रेस को तो धन्यवाद देना चाहिए कि उनकी सरकार ने जो काम नहीं किया वह हमारी सरकार ने किया है। इस पर पलट वार करने के लिए मोर्चा संभाला पिछड़े वर्ग के नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री व पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव ने। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकार ने जिस तरह के असंगत आंकड़े कोर्ट में पेश किए उससे साफ है कि शिवराज सरकार पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण समाप्त करने का षड्यंत्र रच रही है। गौरीशंकर बिसेन की अध्यक्षता वाले आयोग ने 6 प्रमुख सिफारिशें की हैं जिसके अनुसार राज्य सरकार त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के सभी स्तरों पर ओबीसी के लिए 35 प्रतिशत स्थान सुरक्षित रखे और सभी नगरीय निकाय चुनावों में भी सभी स्तर पर ऐसे स्थान आरक्षित करे। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव व निकाय चुनाव में आरक्षण किए जाने के लिए संविधान में संशोधन के लिए भारत सरकार को प्रस्ताव भेजने की भी अनुशंसा की गयी है। राज्य सरकार सर्वे के बाद चिन्हित जनसंख्या के आधार पर ओबीसी बहुल क्षेत्र घोषित करे और उन क्षेत्रों में विकास की योजनायें लागू की जायें। अन्य पिछड़ा वर्ग की सूची में जो जातियां केंद्र की सूची में शामिल नहीं हैं उन्हें सूची में शामिल करने के लिए प्रस्ताव केंद्र को भेजा जाए। केन्द्र की अन्य पिछ़ड़ा वर्ग की सूची में से मध्यप्रदेश की सूची में जो जातियां शामिल नहीं हैं उन्हें भी शामिल किया जाए। कमलनाथ सरकार द्वारा नियुक्त किए गए पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष जे पी धनोपिया का दावा है कि वह आयोग के अध्यक्ष हैं लेकिन मुझसे सुझाव नहीं लिए गए तथा मनगढंत आधार पर आंकड़े पेश किए गए हैं। 27 प्रतिशत आरक्षण तो कमलनाथ सरकार ने दिया था।
और यह भी
अन्य पिछड़े वर्गों को अपने साथ जोड़ने का अभियान जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आयेंगे वैसे-वैसे जोर पकड़ेगा और भाजपा तथा कांग्रेस में से कोई भी इस मामले में कोर-कसर बाकी नहीं रखेंगे। फिलहाल कांग्रेस ने इन वर्गों के अन्तर्गत आने वाली जातियों के सामाजिक सम्मेलन आयोजित करने की रणनीति बनाई है जिसके अन्दर वह यह रेखांकित करने की कोशिश करेगी कि पिछड़े वर्गों को आरक्षण की शुरुआत उसकी पार्टी के काल में हुई और अर्जुन सिंह ने इसे लागू करने का फैसला किया। कमलनाथ ने फिर कांग्रेस सरकार बनने पर बढ़ाकर पिछड़े वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का निर्णय किया। कमलनाथ का आरोप है कि पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा है। सरकार की ओर से कमजोर पैरवी के कारण मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग की सिविल सर्विसेज परीक्षा में ओबीसी वर्ग को इसका लाभ नहीं मिला, जबकि हमारी सरकार ने 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत आरक्षण करने का काम किया था। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार नहीं चाहती कि इन वर्गों को इसका लाभ मिले। जबकि हमने सत्ता में रहते हुए इसके लिए प्रावधान किए थे। इस पर पलट वार करते हुए भूपेन्द्र सिंह ने कहा कि अन्य पिछड़ा वर्ग को धोखा देने का काम कांग्रेस ने किया है। कमलनाथ सरकार के समय गलत आंकड़े पेश किए गए जिसके कारण जबलपुर उच्च न्यायालय ने स्थगन लगाया था। इस वर्ग से जुड़े तथ्यात्मक आंकड़े न्यायालय के समक्ष रखने के लिए पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग गठित किया गया था जिसने अपनी रिपोर्ट दी और वह रिपोर्ट सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत की गयी है।
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