क्षणिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए, ये कैसा दौर आ गया ऐ दुनिया वालों, समाज को दिशा देने वाले लोगों का भी, सच बोलने में अब मन कांपता हैं यारों।
“एक चुप सौ को हराए, एक चुप सौ को सुख दे जाए” यह कहावत हम हमेशा से सुनते चले आ रहे हैं और इसी सोच के चलते हम ना चाहते हुए भी अपने आसपास कुछ गलत होते हुए देखकर आवाज उठाने की बजाय चुप्पी साध जाते हैं , मौन ओढ़ लेते हैं या यूं भी कहा जा सकता है की सच से मुंह छुपा लेते हैं। परंतु यह भी सत्य है कि इस जीवन में सदैव चुप रहना भी उचित नहीं होता है, गीता में कहा गया है कि – “जहां पाप का बल बढ़ रहा हो, जहां छल-कपट हो रहा हो वहां पर मौन रहने से अधिक गंभीर अपराध और कुछ नहीं हो सकता” अगर किसी व्यक्ति पर कोई दुराचारी अन्याय करता है तो वो गलत है परंतु उसे उसे देखकर उसका विरोध ना करना और चुप्पी लगा जाना भी पाप है। अन्याय के विरुद्ध लड़ना मानव धर्म है।
कहते हैं कि यदि हम चुपचाप किसी अन्याय को सहन करते हैं तो हम भी उस जुर्म के भागीदार बन जाते हैं, मौन रहना अन्याय का दायरा बढ़ाना है, रोज़मर्रा के जीवन में हम लोग अपनी आंखो के सामने गलत कार्य होता हुआ देख कर चुप्पी साध लेते हैं, जैसे हम अक्सर लोगों को सड़कों पर यातायत नियमों को तोड़ते हुए देखते है लेकिन “हमें क्या” सोचकर चुप रहते है, लोग सार्वजनिक संपत्ती को नुकसान पहुचाते है, हम चुपचाप देखते रहते है, बस या ट्रेन में यात्रा करते समय हम मनचलो को महिला यात्री को परेशान करते हुए देखते है हम चुप रहते है, टिकट लेने या अन्य कार्यों के लिए लगी लाईन में लोग आगे घुस जाते है हम चुप रहते है , घर में नई बहू को तंग किया जाता है हम चुप रहते है, बच्चो के लालन-पालन में लिंग आधारित भेदभाव होता हुआ देखते है और हम चुप रहते है, वाट्सएप ग्रुप पर अवांछित पोस्ट आती है लेकिन हम चुप रहते है, एक लंबी लिस्ट है ऐसे कार्यों की जिनके खिलाफ बोलना चाहिए लेकिन हम चुप रहते है।
हम सबके जीवन में कभी ना कभी यह समस्या अवश्य आती है जब हम सोचते है कि यह गलत हो रहा है और हमें इसके विरुद्द बोलना चाहिए लेकिन हम रिश्ते बचाने के चक्कर में या किसी ताकतवर की ताकत से डरकर मौन रह जाते हैं। ऐसा क्यों होता है, क्यों प्राय: किसीकी नाराजगी से बचने के लिए हम मौन रह जाते हैं। हम मानते हैं कि ऐसा करने से हम एक विवाद से बच जाते हैं। हो सकता है कि एक संघर्ष से भी बच जाते हों। परंतु ऐसा बचाव देर-सबेर एक बड़े विवाद को बड़े संघर्ष को जन्म देता है। सही समय पर हमारा मौन रह जाना अनजाने में उस व्यक्ति का समर्थन बन जाता है, ताकत बन जाता है , और वह अपने आपको सही और अधिक शक्तिशाली अनुभव करने लगता है। यहीं से हमारा दमन प्रारंभ हो जाता है। एक के बाद एक, हम उसके द्वारा किए जा रहे अन्याय में अनचाहे रूप से सम्मिलित होते चले जाते हैं , आज समाज में यही तो हो रहा है, अन्याय होता देख हम चुप रहकर बच निकलते हैं, कन्नी काट लेते है, मुंह छुपा लेते है । जहां विरोध करना चाहिए वहां कोई बोलता नहीं है, ऐसा व्यवहार करके क्या हम निरंतर अपराध के भागीदार नहीं बन रहे, विचार करके देखिए।
देश में इस तरह के हालात हमारे सभ्य समाज के अस्तित्व के लिए एक बहुत बड़ा खतरा बन रहे है, “मुझे क्या पड़ी है” इस सोच के चलते देश में अपराध व भ्रष्टाचार अपने चरम पर पहुंच गया है। इंसान का तेजी से पतन हो रहा है, इंसानियत व मानवीय संवेदनाओं की आये दिन सरेआम सड़कों पर हत्या हो रही है। तो फिर इसका निदान क्या है, यह समझने के लिए यह जानना आवश्यक है कि ऐसी कौन सी बात है जो विरोध करने से रोकती है। यह सामने वाले की शक्ति तो नहीं हो सकती। यह तो हमारा खुद का डर होता है जो हमें मौन रहने को विवश करता है। क्या हम मन से इस डर को, इस भय को निकाल कर अन्याय का विरोध नहीं कर सकते, आखिर वह हमारा क्या और कितना बिगाड़ सकता है, सोचिए, ऐसा करने से हमारा मन कितना मुक्त, कितना हल्का अनुभव करेगा। गीता में भी कहा गया है, अन्याय सहना अन्याय करने से ज्यादा बड़ा पाप है।
इतिहास साक्षी है कि पापियों की उद्दंडता ने संसार को उतनी हानि नहीं पहुंचाई जितनी कि सज्जनों के मौन ने पहुंचाई। यदि कोई मूर्ख बोल रहा है तो मौन रहना उचित है, परंतु यदि कहीं छल हो रहा है, अपराध हो रहा है, असामाजिक कार्य हो रहा है, मानवता के विरुद्ध कर्म हो रहा है, पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया जा रहा है, सड्को पर कचरा फैलाया जा रहा है, भ्र्ष्टाचार हो रहा है, गलत बात छापी जा रही है, यातायात नियमों का उल्ल्ङ्घन किया जा रहा है, अपनी बारी से पहले सुविधा का उपयोग किया जा रहा है, स्त्री अपराध हो रहा है, किसीसे उसका हक छीना जा रहा है, विदेशी पर्यटक को मूर्ख बनाया जा रहा है, सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाई जा रही है, मिलावट की जा रही है, महंगा सामान बेचा जा रहा है आदि इत्यादि हो रहा है तो चुपचाप मूक दर्शक मत बने रहिए, उठिए और विरोध कीजिए, आप कितने भी लाचार क्यों ना हों कुछ तो आप कर ही सकते है, आपके लिए न सही लेकिन आने वाली पीढ़ी के लिए यह मौन घातक सिद्ध हो सकता है।
चुप रहना समझदारी हो सकती है पर मौन रहकर अन्याय सहना बहुत बड़ा अपराध है, न्याय हमारे जीवन का एक ऐसा हिस्सा है जिससे गरीब, कमजोर और लाचारों की रक्षा की जा सकती है जबकि सबसे बड़ा अपराध अन्याय सहना और गलत के सा़थ समझोता करना है, अन्याय के विरूद बोलना भी एक बहुत बड़ा न्याय करना ही होता है।
विश्व में कई वायरस हैं जिनका कोई सफल इलाज नहीं है जैसे पाखंड, अंधविश्वास, अन्याय आदि अगर हम इनके प्रति मौन धारण कर लेंगे तो गरीब, कमजोर या बेसहारा लोगों की रक्षा करना नमुमकिन है कहने का मतलब यह है कि अच्छा और सक्षम समाज तभी बनेगा जब हम सब अन्याय के प्रति चुप्पी तोड़ेंगे, एक अच्छा समाज एक सुदृढ़ देश का निर्माण करता है और देश को सुदृढ़ बनाने में अपना योगदान देना ही सच्ची देशभक्ती है। “जय भारत”
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