चेन्नई । मद्रास हाईकोर्ट के एक जज ने करंट लगने से बेटा खो चुके एक पिता की मदद के लिए उसे कानूनी तिकड़मों में उलझने से बचाते हुए जल्द न्याय दिलाने की अनूठी मिसाल पेश की है। हाईकोर्ट ने सोमवार को दिए एक फैसले में तमिलनाडु जनरेशन एंड डिस्ट्रीब्यूशन कॉरपोरेशन लिमिटेड को 22 साल के एक लड़के के माता-पिता को 13.86 लाख रु. का मुआवजा देने का आदेश दिया। आदेश इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि कोर्ट ने करंट से मौत के मामले में मुआवजे के संबंध में अनूठी विधि अपनाई है। जस्टिस स्वामीनाथन ने कोर्ट में मृत लड़के के पिता को देखकर स्वत: संज्ञान से मामला लिया। पिता कोर्ट में याचिका लेकर आया था। पूछताछ में पता चला कि उसने रजिस्ट्रार (न्यायिक), मदुरै बेंच, मद्रास हाईकोर्ट को पत्र भेजकर न्याय की मांग की थी। जस्टिस स्वामीनाथन ने कहा, उनके पास कलेजा नहीं था कि वह दुख में डूबे पिता से कहते कि वह एक वकील से सलाह ले और हाईकोर्ट में उचित तरीके से रिट याचिका दायर करे या सिविल कोर्ट के समक्ष मुआवजे के लिए मुकदमा दायर करे।
जज ने कहा- 2013 का एक फैसला याद आ गया
जस्टिस स्वामीनाथन ने कहा, मुझे 2013 के एक केस में दिए फैसले की याद आ गई, जिसमें यह आधिकारिक रूप से कहा गया था कि जब मृतक की गलती नहीं थी और बिजली के तार गिरने से मौत हुई थी तो आश्रित को सिविल कोर्ट में जाने की जरूरत नहीं है, रिट कार्यवाही में राहत दी जा सकती है। केस के मुताबिक 22 साल का सरवनन घर लौटते समय एक लटकते हुए तार के संपर्क में आया, जिसमें बिजली दौड़ रही थी। करंट के कारण उसकी मौके पर ही मौत हो गई। इस मामले में टैनजेडको ने कोर्ट को बताया कि दुर्घटना ईश्वरीय कार्य है। कारण यह है कि गिलहरी की आवाजाही के कारण तार टूट गया था। टूटा तार सीधे जमीन पर गिरा होगा, फीडर ट्रिप हो गया होगा और बिजली की आपूर्ति भी बंद हो गई होगी। लेकिन तब यह तार झाडिय़ों पर गिरा, जो नीचे उगी हुई थीं।