पृथ्वी पर एकेंद्री से लेकर पचेद्री तक के जीव है। पेड़ पौधे और वनस्पति है। जल भूमि पहाड़ पत्थर रेती सब कुछ यहां है। रात दिन गर्मी सर्दी बरसात सब प्रकृति से जुड़े हैं। नदी नाले तालाब समुंदर यह सब भी है। ये सब विद्यमान है और ये कभी भी स्वयं को नष्ट नहीं करते हैं। सिर्फ एक इंसान ही ऐसा जीव है जो सब को और स्वयं को भी नष्ट करने की ताकत रखता है। इंसानी दिमाग को जानना मुश्किल है क्योंकि अरबों की तादाद में इंसान है और कुदरत का करिश्मा है कि सबके हुलीये और सबके दिमाग भी अलग-अलग है। कोई एक बंदा जो पावर में है यदी उसके दिमाग में युद्ध है तो वह लाखों को मरवा देता है। मानव एक दूसरे की जमीन पर कब्जा कर एक दूसरे को गुलाम बनाकर क्या पा लेगा, खुद उसकी जिंदगी एक लिमिटेड समय के लिए है, पर अपने स्वार्थ के लिए कितने लोगों की जान, कितने लोगों को धोखा, लूटपाट, लोगों के घर बार जमीन और महिलाओं पर कब्जा करने की कोशिश करता है। यह सब इंसान की फितरत है इसको सुधारने के लिए धर्म नाम का डंडा बना है एक आदर्श नागरिकता बनी हुई है अपने समाज और देश में रहने के लिए। यदि कोई अनाचार कार्य करते हैं तो उसके लिए दण्ड का प्रावधान है। यहां अच्छे इंसान भी है अच्छे इंसान बहुतायत मे है इसलिए इंसानियत टिकी हुई है। पर कहते हैं ना कि जहाज डुबाने के लिए एक छेद ही काफी है बस वही बात है एक इंसान पूरी कौम को खराब करता है।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्) ये लेखक के अपने विचार है I
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