साधु संत आपके मार्गदर्शक होते हैं और आपके ईश्वर भगवान के धर्म प्रचारक होते हैं वे समाज को धर्म नीति से जीवन यापन सिखाते हैं और यही उनका काम है। लेकिन वक्त के चलते हैं अब दौर बदल रहा है अब कई साधु संत अपने आप को तांत्रिक चमत्कारिक और सबसे महान ज्ञाता बुद्धिजीवी बताना चाहते हैं। और वे प्रॉपर्टी खड़ी करवाने में भी रूचि ले रहे हैं कि मेरे बुढ़ापे मैं यहीं रह लूंगा। कई महान संत भी है और उनका उद्देश्य स्वयं का एवं अपने भक्तों का जीवन उत्थान का रहता है वह अच्छी शिक्षा देते हैं जीवन जीने की शिक्षा देते हैं प्रकृति से जुड़े रहने की शिक्षा देते हैं। भक्तों की भावना का आदर करते हैं स्त्रियों को मां की नजर से देखते हैं। और जो नाम के संत बने होते हैं वह भक्तों का शोषण करें उन्हें उल्लू समझेंगे स्त्रियों को गलत निगाह से देखते रहते हैं। भक्तों को अच्छे और बुरे संत की पहचान करना होगी। किसी भी संत में यदि कमी दिखती है तो जो समाज के प्रमुख लोग हैं उनकी निगाह में यह बात लाना चाहिए। सिर्फ संत के कपड़े पहनने से कोई संत नहीं हो जाता कपड़ों की आड़ में कई अपराधी पनाह ले रहे होगे। प्रशासन भी संत का चोला देखकर एकदम कुछ कार्रवाई नहीं करते और जब तक कार्रवाई करने की सोचते हैं जब तक वह व्यक्ति जाने क्या कर जाता है। जब भी सिंहस्त या कुंभ मे कई संतों का समावेश होता है तब समाज और प्रशासन को यह मौका रहता है कि कौन संत असली और कौन नकली यह जान सकते हैं। अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्) ये लेखक के अपने विचार है I
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