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इंटरव्यू: सलमान, अक्षय और रणबीर के साथ रोल ठुकरा कर अपने रिश्ते खराब कर चुकी हूं- कंगना रनोत

Updated on 24-08-2024 05:49 PM
सभी जानतें हैं कि कंगना रनोट कितनी प्रतिभावान हैं, मगर साथ -साथ उतनी ही बेबाक और बिंदास भी। अभिनय हो या निर्देशन अथवा अपना मत प्रकट करने की बात। वे हमेशा दृढ़ संकल्प रहीं हैं। लोग उन्हें कॉन्ट्रोवर्शियल क्वीन के नाम से भी जानते हैं, मगर वे अपनी शर्तों पर जीती हैं। कई राष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाली ये एक्ट्रेस इन दिनों चर्चा में हैं अपनी नई फिल्म 'इमरजेंसी' को लेकर। उनसे एक बेबाक मुलाकात।

अपनी भूमिकाओं के लिए चार-चार राष्ट्रीय पुरस्कार हों या आपका पॉलिटिकल करियर, गौरवान्वित पल तो कई हैं, मगर आपके करियर का सबसे मुश्किल दौर कौन-सा था?

- मुझे लगता है शुरू के साल बहुत मुश्किल थे मेरे लिए, खासकर तब जब मैं गैंगस्टर और वो लम्हे भी भी कर ली थी। उसके बाद मुझे काम मिलता नहीं था। फैशन भी हुई, मगर इक्का-दुक्का उम्मीद जगती थी फिर काम मिलना बंद हो जाता था। दो-दो साल का वक्फा ऐसा होता था, जब मेरे पास काम नहीं था। मैं काफी यंग थी। तो दिमाग में कई खयाल आते थे कि क्या मुझे अपने कॉलेज की पढ़ाई पूरी करनी चाहिए? कहीं ऐसा न हो कि न मैं यहां की रहूं न वहां की। मेरे जैसी लड़की, जो इस तरह से छोटे गांव से आती हो, जिसे इंग्लिश ना आती हो, जिसके पास कोई सर्टिफिकेट्स ना हो और वह इस इंडस्ट्री में अपनी जमीन तलाश रही हो, तो वह दौर मेरे लिए बहुत मुश्किल था। वो दौर सालों-साल चलता गया। आखिरकार मैंने डिसीजन ले लिया कि एक्टिंग में नहीं लग रहा है, कुछ होगा। बस उसी वक्त मैंने अपनी पहली फिल्म डायरेक्ट की थी, वह 23 की उम्र में।फिर मैंने छोटे-मोटे रोल्स करके थोड़े पैसे-वैसे कमाए, फिर मैं अमेरिका चली गई। वहां पर मैंने कुछ स्क्रीन राइटिंग का काम किया। मुझे हंड्रेड पर्सेंट कंफर्म लग रहा था कि एक्टिंग में मेरा कुछ होने नहीं वाला। उस समय टिपिकल फिल्में बनती थीं, जो मुझे अच्छी भी नहीं लगती थीं। फिर मैंने अपनी एक शॉर्ट फिल्म बनाई कैलिफोर्निया में। वहां मुझे एक एजेंसी ने फिल्मकार के रूप में हायर कर लिया। मैंने वहां काम कर रही थी,तो मेरे करियर का 7-8 साल का संघर्ष का लंबा वक्फा था। आप फोटोग्राफी सीख रहे हो, निर्देशन सीख रहे हो,स्क्रिप्ट लिख रहे हो। मैंने थोड़ा-बहुत पैसा कमाने के लिए एक फिल्म की क्वीन और देखिए वो फिल्म ऐसी चल पड़ी। मगर तब तक मैं उस जर्नी में आगे निकल चुकी थी। तब तक मुझे निर्देशन का कीड़ा काट चुका था। मेरा एक्टिंग में अच्छे से मन नहीं लगता था। निर्देशकों को लगने लगा कि ये वैल्यू नहीं करती, तो ये सच ही था। अब जब मैंने इमर्जेंसी फिल्म की तब मुझे चैन आया।

लोग अपने संघर्ष को काफी महिमा मंडित करते हैं

-मैं तो एक चीज मानती हूं कि आप सोचते हैं न कि मेरे साथ बुरा हो रहा, मगर उस बुराई के पीछे कोई अच्छाई जरूर होती है। आज की जनरेशन के लोगों को लगता है कि उन्हें सब कुछ आज ही मिल जाना चाहिए। आप अपना काम करें। आज की पीढ़ी को फल पहले चाहिए, कर्म करो चाहे न करो। इस तरह की सोच मैंने रखी होती, तो मैं जिंदगी में कभी यहां तक नहीं पहुंच पाती। कभी डिप्रेस नहीं होना चाहिए। मैं तो यही सोचती थी कि एक्टिंग नहीं मिल रही, तो डायरेक्शन करूंगी। वो भी नहीं, तो फोटोग्राफी करूंगी। अरे, कुछ नहीं तो मजदूरी करूंगी। मुझे ये चाहिए, मुझे वो चाहिए। हर दिन आप अपनी लिस्ट बना लेते हैं। ये एटीट्यू ही खराब हो गया है लोगों का।

आपको दृढ संकल्प लड़की होने के साथ-साथ रिबेल भी कहा जाता है, तो आपके जीवन में वो ट्रांसफॉर्मेशन कब आया?

-ट्रांसफॉर्मेशन जैसा कुछ नहीं था। मैं तो बचपन से ही ऐसी हूं।मेरी फिल्म गैंगस्टर जब रिलीज हुई, तो मुझे शबाना आजमी जी का कॉल आया। जावेद साहब (अख्तर) ने मुझसे 15 मिनट बात की। उन्होंने कहा कि इतने उम्दा कलाकार और वो भी इतनी छोटी उम्र में हमने नहीं देखे। एक तरफ लोग आपकी तारीफ़ करते हैं और दूसरी तरफ आपके पास सालों-साल काम नहीं होता, तो मेरी जगह कोई और होता, तो डिप्रेशन में चला जाता। मगर मैंने उस स्थिति को अपनाया और उसे स्वीकार करने के लिए आपको विनम्रता चाहिए होती है कि थी है, ये नहीं हो रहा। जो मेरे लिए बेस्ट होगा, वो मैं करूंगी।

आपकी फिल्म इमरजेंसी की बात करूं, कौन-सी वह चीज थी जिसने आपको इंदिरा गांधी के जीवन का यह दौर कैप्चर करने के लिए प्रेरित किया?

मैंने यह फिल्म इस तरह से नहीं बनाई कि मुझे इमरजेंसी पर एक फिल्म बनानी है, तो बना लेती हूं। अगर आप मुझसे पूछें कि वह क्या थी और उससे क्या हुआ? इमरजेंसी एक तरह से कर्फ्यू ही समझ लीजिए। कुछ नहीं हुआ, वही तो इमरजेंसी थी। क्या हुआ? कुछ हुआ ही नहीं। तो उस चीज पर आप क्या फिल्म बनाएंगे जिसमें कुछ हुआ ही नहीं। इसलिए इस पर फिल्म नहीं बनी। इसी वजह से मेरी रुचि इसमें जगी। मैंने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी की बायोग्राफी पढ़ी, जिसमें उनके गुरु ने कहा, ये खत्म कर दीजिए, अच्छी चीज हीं है, इसने देश को जेल बना दिया है।' इसके जवाब में श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने जो कहा, उनकी ईमानदारी बहुत प्रभावित कर गई। उन्होंने कहा, 'मैं एक भयानक राक्षस की सवारी कर रही हूं और अगर अब मं इससे उतरी, तो ये मुझे खा जाएगा। इमरजेंसी के क्या कारण थे? उसका आफ्टर इफेक्ट क्या था, इन सारी चीजों को कल्मिनेट किया है इस फिल्म में, तो इमरजेंसी इसका सेंट्रल प्वाइंट है, फिल्म में। मच मोर देन दैट, मिसेज गांधी की जो मिस्ट्री है, उसने मुझे बहुत प्रेरित किया।

उनके समर्थकों का कहना है कि उनका गोल्डन पहलू भी दिखाया जा सकता था, इमरजेंसी में उनका डार्क साइड दिखाया गया?

-आप किसी को नेगेटिव तभी बना सकते हैं जब वह पॉजिटिव होता है। इमरजेंसी महत्वपूर्ण फिल्म है, क्योंकि यह दिखाती है कि आप मिसेज गांधी की तरह आप कितने ही महान लीडर क्यों न हों, फिर भी घमंड किसी को नहीं छोड़ता। वह शिकार बना सकता है। और मुझे इस फिल्म से बहुत कुछ सीखने को मिला है। पता नहीं लोग क्यों अनुमान लगा रहे हैं कि इसमें मिसेज गांधी के अच्छे साइड क्यों नहीं दिखा रहे हैं। यह लोगों की आदत है जज करना। मुझे लगता है, लोगों को फिल्म के प्रदर्शन का इंतजार करना चाहिए।

आपने कहा है कि आपने कभी किसी कपूर या खान्स का सहारा नहीं लिया, तो उन भूमिकाओं के लिए मना करने की हिम्मत भी चाहिए होती है?

-वो तब आया, जब मैं सफल हो गई थोड़ी -बहुत। 8-9 साल के संघर्ष के बाद मैंने खुद को सशक्त महसूस किया। जहां तक हीरोज की बात है, तो मैंने हमेशा कहा है। जब बजरंगी भाईजान में सलमान ने मुझे रोल ऑफर किया, तो मैंने उनसे कहा, अब क्वीन के डबल रोल के बाद आप मुझे ऐसी भूमिका दोगे? सुलतान के लिए जब उन्होंने कॉल किया, तो मैंने मना कर दिया। उन्होंने हंसते हुए कहा कि अब तुझे और क्या चाहिए? वो तो मेरे दोस्त हैं। उन्होंने अच्छे से ही कहा। रणबीर कपूर मेरे घर आए थे। उन्होंने कहा, संजू के लिए मैंने राजू (निर्देशक राजकुमार हिरानी) से बात की है। मैंने कहा, मुझे नहीं करनी है। वे बोले, आपको मेरे साथ फिल्म नहीं करनी है? मैंने कहा, आपको मुझे लेकर गलतफहमी हो रही है। इनफैक्ट इंडस्ट्री के लोग मेरे दुश्मन बन गए। मैं ये अपने लिए नहीं कर रही थी। अक्षय कुमार जी ने मुझे सिंग इज ब्लिंग का ऑफर दिया था। उसके बाद एक-दो और फिल्मों का, मगर मैंने नहीं की, तो वे बोले, तुम्हें मुझसे प्रॉब्लम है कंगना। मैंने कहा, सर मुझे प्रॉब्लम नहीं है। तो वे बोले, फिर क्या? मैंने कहा, औरत की भी गरिमा होती है। आपकी भी बेटी है। आप प्लीज समझें। मैंने अपने रिश्ते खराब कर लिए। हालांकि सभी ऐसे नहीं हैं। सलमान मेरे दोस्त है। वो बुरा नहीं मानते। मैंने ये फैसले औरतों के लिए लिए, कॉज के लिए लिए। कई लोग मुझे ही नेगेटिव दर्शाते हैं, मुझे बुरा भी लगता है, मगर इसमें मेरा व्यक्तिगत नुकसान ही रहा है।

अब तो आप पावर में हैं। पहले कोलकाता की वीभत्स घटना फिर बदलापुर का मोलेस्टेशन, आपको क्या लगता है, क्या होना चाहिए?

-सोच कर ही मैं सुन्न पड़ जाती हूं। एक लड़की जिसने सब छोड़कर जन सेवा में काम किया, पढ़ाई करने के लिए जाती है और उसके साथ ऐसा हो जाता है, तो इंसानियत की भी रूह कांप जाती है। इस तरह की राक्षसी घटनाएं देश में हर लेवल पर होती हैं। मोदी जी ने 2014 में लाल किले से स्पीच दी थी और कहा था, "जब बेटियां घर से निकलती हैं, तो दस प्रश्न पूछे जाते हैं: कहां जा रही हो? कितने बजे आवोगी? किससे मिलोगी? किस जगह पर जा रही हो?' अगर ये प्रश्न अपने बेटों से पूछें और उन्हें घर में रखें, बेटियों को नहीं, तो बेटों से पूछना चाहिए। ये प्रश्न बहुत सही हैं। बेटे किससे मिल रहे हैं, किससे मित्रता कर रहे हैं, वे क्या कॉन्टेंट देख रहे हैं, किस चीज में इन्वॉल्व हैं, वे लोग शराब पी रहे हैं, ये सब आपके हाथों से निकल जाता है। लेकिन बेटी ने आज शॉर्ट्स या डीप नेक पहन लिया, तो उसकी खबर पूरे मोहल्ले को हो जाती है। तो हमारा जो कल्चर और सोसाइटी है, जो इंडस्ट्री वाले भी लापरवाही से कॉन्टेंट बनाते हैं, अब देख लीजिए। मुझे संजय लीला भंसाली जी ने रामलीला के आइटम नंबर के लिए बुलाया था। मैंने कहा, 'मैं नहीं कर सकती। चाहे भंसाली बुला लें, चाहे कोई भी, मैं नहीं कर सकती।
आइटम नंबर' लोगों ने कहा, ये पागल है, जो भंसाली को मना कर रही है। बहुत जरूरी है कि हम औरत को कैसे पोट्रे करते हैं। आमिर खान जी के साथ मैंने बहुत अहम एपिसोड किया था 'सत्यमेव जयते' का 10 साल पहले। हम यही बात कर रहे थे और आज भी वही बात कर रहे हैं। 'तंदूरी मुर्गी हूं यार, गटका ले सैया अल्कोहल से। जैसे गानों से हम क्या बता रहे हैं? जिस तरह की पैट्रियाकल फिल्में बॉक्स ऑफिस पर बवाल मचाती हैं, देखकर लगता है कि कहां से निकल रहा है? तालियां, सीटियां, लड़के कुल्हाड़ी, गन लेकर स्कूल में लेकर निकल रहे हैं ना, तो उन्हें कोई कुछ बोल रहा है, ना रोक रहा है। जैसे कि पुलिस है ही नहीं। लॉ एंड ऑर्डर सब मर गया है। लाशों के ढेर छाए हुए हैं। क्यों? मस्ती! ना वो किसी का भला है, ना जनकल्याण। बस मस्ती और जनता निकलती है इसे देखने के लिए। जनता को भी देखिए, क्या बोल सकते हैं ऐसी सोसाइटी के लिए? ये चिंता का विषय है। इस तरह की फिल्मों की निंदा होनी चाहिए। जो ऐसे लोगों को सराहना मिलती है, मीडिया भी उसकी जिम्मेदार है। उनकी निंदा होनी चाहिए, उन्हें आलोचना मिलनी चाहिए।

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