आइटम नंबर' लोगों ने कहा, ये पागल है, जो भंसाली को मना कर रही है। बहुत जरूरी है कि हम औरत को कैसे पोट्रे करते हैं। आमिर खान जी के साथ मैंने बहुत अहम एपिसोड किया था 'सत्यमेव जयते' का 10 साल पहले। हम यही बात कर रहे थे और आज भी वही बात कर रहे हैं। 'तंदूरी मुर्गी हूं यार, गटका ले सैया अल्कोहल से। जैसे गानों से हम क्या बता रहे हैं? जिस तरह की पैट्रियाकल फिल्में बॉक्स ऑफिस पर बवाल मचाती हैं, देखकर लगता है कि कहां से निकल रहा है? तालियां, सीटियां, लड़के कुल्हाड़ी, गन लेकर स्कूल में लेकर निकल रहे हैं ना, तो उन्हें कोई कुछ बोल रहा है, ना रोक रहा है। जैसे कि पुलिस है ही नहीं। लॉ एंड ऑर्डर सब मर गया है। लाशों के ढेर छाए हुए हैं। क्यों? मस्ती! ना वो किसी का भला है, ना जनकल्याण। बस मस्ती और जनता निकलती है इसे देखने के लिए। जनता को भी देखिए, क्या बोल सकते हैं ऐसी सोसाइटी के लिए? ये चिंता का विषय है। इस तरह की फिल्मों की निंदा होनी चाहिए। जो ऐसे लोगों को सराहना मिलती है, मीडिया भी उसकी जिम्मेदार है। उनकी निंदा होनी चाहिए, उन्हें आलोचना मिलनी चाहिए।