Select Date:

अपनी स्वर्ण भस्म से फिर जी उठी है भारतीय हाॅकी...!

Updated on 03-08-2021 05:18 PM
क्या तोक्यो अोलिम्पिक भारतीय हाॅकी के सुनहरे दिनों के लौटने का संदेश लेकर आया है ? न सिर्फ पुरूष बल्कि महिला हाॅकी खिलाडि़यों का सेमीफाइनल में पहुंचना यही साबित करता है कि भारतीय हाॅकी फिनिक्स पक्षी की तरह अपनी स्वर्ण भस्म से फिर जिंदा हो रही है। खासकर महिला हाॅकी के क्वार्टर फाइनल के यादगार मुकाबले में भारत की बेटियों ने धुरंधर आॅस्ट्रेलिया को हराने का कारनामा जिस जज्बे के साथ कर दिखाया, उसे लगा कि ये शेरनियां किसी और मिट्टी की बनी हैं। कुछ बेहतर कर दिखाने की भारत की पुरूष और महिला हाॅकी टीमों की यह जुगलबंदी पंडित रविशंकर के सितार और उस्ताद बिस्मिल्ला खान की शहनाई की माफिक है। भारत की दोनो हाॅकी टीमें मेडल लेकर लौटें या न भी लौटें, लेकिन इन दोनो टीमों के खेल और जज्बे ने देश को जो संदेश दिया है, वो यही है कि जिस हाॅकी को हम चालीस साल से डूबत खाते के रूप में देखने लगे थे, उसके बारे में हमे अपनी सोच अब बदल लेना चाहिए। इसलिए भी कि बीते चार दशकों से बाजारवाद की सीढ़ी पर चढ़कर क्रिकेट मानो हमारी रग-रग में समा गया है, जबकि खेलों की असल दुनिया तो यहां से शुरू होती है। हाॅकी को तो ‘गरीबों का खेल’ समझा जाने लगा था। वरना चार दशक पहले तक देश में हाॅकी क्रिकेट से ज्यादा लोकप्रिय थी और अोलिम्पिक की पदक तालिका में भारत की लाज रखने का जिम्मा भी वही निभाती आ रही थी। लेकिन पहली बार क्रिकेट का विश्वकप जीतने के बाद तो हम तमाम दूसरे खेलों ( जिनमें ज्यादा ताकत, कौशल और बेहद कड़ी प्रतिस्पर्द्धा है) को हम बिसरा बैठे थे। शायद इसलिए भी कि क्रिकेट हमारे मानस और जीवन शैली को ज्यादा सूट करता है। जबकि क्रिकेट और टेनिस से इतर तमाम खेल अभी भी पैसे से ज्यादा मनुष्य की जीतने की अदम्य आकांक्षा, हाड़ तोड़ मेहनत से संचालित और नियंत्रित होते हैं। अोलिम्पिक इसी मानवीय इच्छाशक्ति का यशोगान होता है।  
यूं तो  पुरूष हाॅकी टीम का 49 साल बाद अोलिम्पिक के सेमी फाइनल में पहुंचना भी बड़ी उपलब्धि है। लेकिन अोलिम्पिक्स में भारतीय वीमेन हाॅकी की उम्र तो 41 साल की है। उसमे भी अोलिम्पिक में हमारी महिला हाॅकी टीम तीसरी बार ही भाग ले रही है। हालांकि भारतीय महिला हाॅकी टीम ने पहली बार मास्को अोलिम्पिक में हिस्सा‍ लिया था और चौथे स्‍थान पर रही थी। तब गोल्ड मेडल जिम्बाब्वे की महिला हाॅकी टीम ने जीता था। लेकिन वो महिला हाॅकी का शुरूआती दौर था। इस बार भारतीय महिला हाॅकी टीम अगर फाइनल तक पहुंचती है तो महिला हाॅकी का इतिहास एक नई बुलंदी को छूएगा।

बेशक हाॅकी का वास्तविक जश्न मनाने की घडि़यां अभी दूर हैं, लेकिन यह समय अपने सुनहरे अतीत पर निगाहें डालने का तो है ही। भारत की पुरूष हाॅकी टीम ने अोलिम्पिक्स में ग्रास कोर्ट पर 1928 से अपना विजय अभियान शुरू किया। मेजर ध्यानचंद बरसों तक उस विजय अभियान का चेहरा बने रहे। अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारतीय खेल को सम्मान दिलाने का महती श्रेय उन्हीं को है। यह बात अलग है कि उन्हें भारत रत्न देने के बारे में ‍िकसी ने नहीं सोचा। जब भारतीय टीम अोलिम्पिक में हाॅकी के गोल्ड मेडल अपने नाम कर रही थी, उस वक्त में भारत की आजादी का यह संकल्प वैश्विक खेल मंच पर केवल हाॅकी की वैश्विक जीत के जरिए ही उद्घोषित हो रहा था। यह समीकरण बन गया था कि हाॅकी का स्वर्णपदक यानी भारत। यह स्वर्णिम सिलसिला 1959 तक चला। उसके बाद भारतीय हाॅकी का मिजान नरम गरम रहा। 1980 में  मास्को अोलिम्पिक में भारतीय पुरूष हाॅकी टीम ने आखिरी गोल्ड मेडल जीता। उसके बाद हाॅकी तो दूर ( 2008 के बीजिंग अोलिम्पिक को छोड़ दें) तो अोलिम्पिक स्टेडियम में स्वर्ण विजेता के रूप में भारत का राष्ट्रगान एक बार भी नहीं बजा। उधर एस्ट्रो टर्फ की टफ हाॅकी ने भारत में  हाॅकी को पीछे ठेल दिया। अोलिम्पिक को छोड़ दूसरी अंतरराष्ट्रीय स्पर्द्‍धाअो में मिली सफलताअों पर ही हम संतोष करने लगे, जबकि अोलिम्पिक का कोहिनूर हमसे बहुत दूर जा चुका था। भारत में गुजरे जमाने का खेल बना दिया। लेकिन वो सही नहीं था। 21 वीं सदी के इस छठे अोलिम्पिक ने इसे सिद्ध कर दिया है। हाॅकी टीम अब जीत की जिद के साथ खेलने लगी है।  
बहरहाल सबसे शानदार रूपातंरण भारतीय महिला हाॅकी टीम का है। कोरोना काल के  दर्शकविहीन तोक्यो अोलिम्पिक में अपने ग्रुप के तीन मैच लगातार हारने के बाद उदार खेल प्रेमियों ने भी मान लिया था कि यह टीम तफरीह के लिए ज्यादा गई लगती है। खुद हाॅकी टीम की लड़कियां भी हताशा में डूब गई थीं। कहीं कोई जीत का तारा नहीं दिख रहा। लेकिन टीम के मुख्य हाॅकी कोच सोर्ड मारिने की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने जामवंत की तरह टीम को एक ‍सकारात्मक फिल्म दिखाकर उसकी सही ताकत का एहसास कराया। लड़कियों ने भी निराशा का चोला उतार फेंका और शेरनी बनकर मैदान में भिड़ने लगीं। कोच सोर्ड मारिने का यह वाक्य उल्लेखनीय है कि ‘अगर आकाश का लक्ष्य रखोगे तो पहाड़ पर ‍िगरोगे और पहाड़ का लक्ष्य रखोगे तो मैदान में गिरोगे।‘ लड़कियों ने आकाश का  लक्ष्य रखा और मैदान मार लिया। अब नजर आकाश की बुलंदी पर है।  
यकीनन दोनो हाॅकी टीमों के इस मुकाम तक पहुंचने के पीछे खुद कोच और खिलाडि़यों की अथक मेहनत, भारतीय खेल प्र‍ाधिकरण (साई) की भूमिका और सरकारों का प्रोत्साहन भी है। मैदान से बाहर एक और चर्चा अोडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की भी हो रही है। नवीन अकेले मुख्यमंत्री हैं, जिनकी सरकार मुश्किल दिनो में भी भारतीय हाॅकी टीम को प्रायोजित करने का खर्च उठाती आ रही है। वरना विजेता खिलाडि़यों के साथ श्रेय शेयर करने में तो कई सरकारें आगे आती दिखेंगी।  
लेकिन कामयाबी के इस अध्याय के पहले  विवाद न हो तो हिंदुस्तान ही क्या। कम ही लोगों को पता होगा कि भारतीय पुरूष टीम के मुख्य कोच ग्राहम रीड और महिला टीम के मुख्य कोच सोर्ड मारिने की तनख्वाह को लेकर भी लोगों ने आपत्तियां ली थीं। कहा गया कि इन विदेशी कोचों किस बात के इतने पैसे दिए जा रहे हैं? जबकि भारतीय कोचों को कम तनख्वाह पर रखा जाता है। बता दें कि साई ने ग्राहम रीड को 11 लाख रू. प्रति माह व मारिने को साढ़े 7 लाख रू. प्रति माह के अनुबंध पर ‍नियुक्त किया है। रीड आॅस्ट्रेलिया के हैं और मारिने हालैंड के। बीते तीन सालों में इन दो कोचो ने जो मेहनत की है, उसका नतीजा सामने ही है। भारतीय हाॅकी की फिर तेज होती लौ के मौके पर दो लोगों को स्मरणांजलि बनती है। जब ये टीमें जीत की तरफ बढ़ रही थीं, तब भारतीय रेडियो कमेंट्री के आदर्श पुरूष रहे जसदेव सिंह की याद आती रही। वो आज यदि कमेंट्री कर रहे होते तो कैसे करते? हाॅकी टीमों की सफलता का यह रस उनकी वाणी से कैसे टपकता? जसदेव स्वर और वाणी और सुंदर अनोखा संगम थे। गेंद की रफ्तार के हिसाब से हाॅकी की कमेंट्री करना उनकी बेमिसाल खूबी थी। जिस जमाने में टीवी नहीं था, वो हाॅकी प्रेमियों को उनके कानो से लाइव मैच दिखाते थे। दूसरे हैं हाॅकी के आंकड़ों के संग्राहक बी.जी.जोशी। जोशीजी को इस साल कोरोना ने हमसे छीन लिया। हाॅकी की सांख्यिकी का उनके पास ऐसा अद्भुत संग्रह था कि कई विदेशी हाॅकी विशेषज्ञ भी उनसे जानकारी मांगते थे। वो होते तो यकीनन हाॅकी टीमों की उस उपलब्‍धि पर इतरा रहे होते और आंकड़ो की दुनिया से कुछ नया खोज कर ला रहे होते। अच्छा लगा जब सोनी स्पोर्ट्स के हिंदी कमेंटटरों ने एक मैच के दौरान बीजी जोशी को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि दी।
बदलती हाॅकी साथ-साथ आज  सोशल मीडिया ने भी काफी कुछ बदल दिया है। एक जमाना था, जब भोपाल में किसी भी अंतरराष्ट्रीय हाॅकी मैच में खेलने वाली टीमे ‘भोपाली कमेंट्स’ का प्रसाद अपने साथ लेकर जरूर जाती थीं। अब लोग सोशल मीडिया पर अपनी टीमों की जीत के जज्बे से एकाकार होने लगे हैं। इसका अंदाज अलग है। इन के मैसेजेस में चु‍टकियां भी हैं और फनी कमेंट्स भी। मशहूर फिल्म ‘चक दे इंडिया’ में महिला टीम में जोश भरने वाले कोच कबीर खान यानी ‍अभिनेता शाहरूख ने अपने भारतीय महिला टीम की कामयाबी से खुश होकर अपने ट्वीट में  हाॅकी कोच मारिने की डी में गेंद यह कहकर सरकाई कि ‘लौटते वक्त थोड़ा सोना भी लेते आना’ ! मारिने ने भी जवाबी गोल दागा- यकीनन..एक ‘असली कोच’ !   
अजय बोकिल, लेखक  
वरिष्ठ संपादक, ‘राइट क्लिक’                                ये लेखक के अपने विचार है I 

अन्य महत्वपुर्ण खबरें

 16 November 2024
महाराष्ट्र में भाजपानीत महायुति और कांग्रेसनीत महाविकास आघाडी के लिए इस बार का विधानसभा चुनाव जीतना राजनीतिक  जीवन मरण का प्रश्न बन गया है। भाजपा ने शुरू में यूपी के…
 07 November 2024
एक ही साल में यह तीसरी बार है, जब भारत निर्वाचन आयोग ने मतदान और मतगणना की तारीखें चुनाव कार्यक्रम घोषित हो जाने के बाद बदली हैं। एक बार मतगणना…
 05 November 2024
लोकसभा विधानसभा चुनाव के परिणाम घोषित हो चुके हैं।अमरवाड़ा उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी कमलेश शाह को विजयश्री का आशीर्वाद जनता ने दिया है। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 29 की 29 …
 05 November 2024
चिंताजनक पक्ष यह है कि डिजिटल अरेस्ट का शिकार ज्यादातर वो लोग हो रहे हैं, जो बुजुर्ग हैं और आमतौर पर कानून और व्यवस्था का सम्मान करने वाले हैं। ये…
 04 November 2024
छत्तीसगढ़ के नीति निर्धारकों को दो कारकों पर विशेष ध्यान रखना पड़ता है एक तो यहां की आदिवासी बहुल आबादी और दूसरी यहां की कृषि प्रधान अर्थव्यस्था। राज्य की नीतियां…
 03 November 2024
भाजपा के राष्ट्रव्यापी संगठन पर्व सदस्यता अभियान में सदस्य संख्या दस करोड़ से अधिक हो गई है।पूर्व की 18 करोड़ की सदस्य संख्या में दस करोड़ नए सदस्य जोड़ने का…
 01 November 2024
छत्तीसगढ़ राज्य ने सरकार की योजनाओं और कार्यों को पारदर्शी और कुशल बनाने के लिए डिजिटल तकनीक को अपना प्रमुख साधन बनाया है। जनता की सुविधाओं को ध्यान में रखते…
 01 November 2024
संत कंवर रामजी का जन्म 13 अप्रैल सन् 1885 ईस्वी को बैसाखी के दिन सिंध प्रांत में सक्खर जिले के मीरपुर माथेलो तहसील के जरवार ग्राम में हुआ था। उनके…
 22 October 2024
वर्तमान समय में टूटते बिखरते समाज को पुनः संगठित करने के लिये जरूरत है उर्मिला जैसी आत्मबल और चारित्रिक गुणों से भरपूर महिलाओं की जो समाज को एकजुट रख राष्ट्र…
Advertisement