छल कपट मोह माया ने शुरू से ही पृथ्वी पर मानव स्वभाव के साथ अपनी जगह बनाये रखी। कुछ जागरूक इंसान ने कई संस्कृतिया निर्धारित की जिसके तहत एक उत्कृष्ट जीवन शैली, बिगड़े से बिगड़े माहौल में कैसे मिले ऐसा उन्होंने फैसला किया। जिसमें भारतीय संस्कृति ने रीति रिवाज, हर्ष महोत्सव, धार्मिकता, इंसानियत, प्रेम मैत्री और शांति तरीके से जीवन जीने का मार्गदर्शन किया हमारी संस्कृति में प्रकृति की रक्षा पर्यावरण की सुरक्षा और जीवनदाई उपयोगी जैसे नदी वृक्ष आदि को पूज्यनीय बना दिया ताकि हमें उनकी उपयोगीता जीवन भर समझ में आती रहे। भारतीय संस्कृति में यह भी सिखाया की अन्याय करना नहीं, अन्याय सहना नहीं। भारतीय संस्कृति में चाहे गरीब हो या चाहे अमीर हो सबके लिए उत्कृष्ट जीवन शैली का मार्गदर्शन दिया हुआ है। भारतीय सभ्यता मे सांस्कृतिक, मनोरंजक, संगीत और नृत्य, शिक्षा और अनुभव की अनुपम अनोखी व्याख्या भरी हुई है। हमें प्रकृति से बहुत कुछ प्राप्त है उसका भी ज्ञान संस्कृति से जुड़ा हुआ बस हम भौतिकता के दौर में इतने भावुक हो गए कि हम अपने मूल संस्कृति को ही भूल गए। हमारी मूल संस्कृति में संयुक्त परिवार की सामाजिक व्यवस्था थी एक आदर्श और इमानदारी का पैमाना रखने वाले व्यक्ति को सर्वोपरि माना जाता था। आज का दौर बिल्कुल अलग है, कहने वाले कहते हैं कि कलयुग में कलयुगी ही जिएगा, परंतु हम आज भी इतने आशावादी हैं कि चाहे कलयुग हो चाहे और कोई युग हो लेकिन भारतीय संस्कृति की आदर्शता का पैमाना यदि आज भी हम वापरे तो हमें कोई फर्क नहीं पड़ेगा चाहे कोई सा भी युग हो।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्) ये लेखक के अपने विचार है I
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