पापा आपने मेरा नाम भारत क्यों रखा,देश का नाम भारत है,आज भारत का पुत्र क़िताबें खरीदने के लिए लोगों का मल मूत्र साफ करने के लिए गटर में उतरा और अपने पिता को ऐसा दुख देकर गया जो पूरी ज़िंदगी पिता को रुलाता रहेगा,फिर घटना की जांच होगी,युवा भारत की चिता पर कुछ नोट की गड्डियां रख दी जाएंगी थोड़ा सा दुख नेता दिखाएंगे,विपक्ष के नेता भारत की चिता की लपटों पर अपनी राजनीति की रोटियां सेखते हुए,भारत के पिता के आंसू पोछने की नौटंकी करते हुए अख़बारों की सुर्खियों में आने की कोशिश करेंगे। आज फिर से भारत माता का शीश शर्म से झुक गया होगा एक होनहार युवक कुछ क़िताबें खरीदने के लिए गटर में उतर कर लोगों के मल मूत्र से भरे हुए पाइपों को साफ़ करने के लिए उतारा गया,सीवेज टैंक ज़हरीली गैस से भरा हुआ था, जैसे-जैसे भारत सीवेज टैंक में उतरता जा रहा था,धीरे-धीरे अपनी मौत को गले लगाता जा रहा था। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में हृदय विदारक जो घटना घटी है,जिसको सुनकर ऐसा लगता है लाख क़ानून बना लो,पर क़ानूनों को लागू करेगा कौन,कौन लेगा अट्ठारह साल के नौजवान भारत और इंजीनियर दीपक सिंह के मौत की जवाबदारी,ऐसा लगता है, क़ानून बनते ही इसलिए है कि उनको तोड़ा जाए,फिर सीवेज टैंक ने ली दो लोगों की जान । 18 साल का नौजवान भारत 20 फीट गहरे सीवेज टैंक में उतर रहा होगा,उसके आंखों में चंद रुपयों की चमक होगी,सोच रहा होगा दिन भर का काम ही तो है,मेहनत करूंगा,लोगों के मल मूत्र साफ करूंगा,जो पैसे मिलेंगे उससे क़िताबें खरीद कर लाऊंगा, क्योंकि मैं ग़रीब हूँ,हां मैं बहुत मजबूर हूँ,जिस गंदगी को देखकर तुम कतराते हो,हां मैं उसी गंदगी मैं रोटी तलाशता हूँ,हां मैं मजबूर हूँ हां मैं ग़रीब हूँ। भारत ने भी सपने देखे थे,वह पढ़ेगा,लिखेगा और बड़ा आदमी बनेगा,उस युवा भारत ने भी एक सपना देखा था,पढ़ लिखकर वह भी एक अधिकारी बनेगा,उसका भी एक सुंदर सा घर होगा,उस घर में भारत के माता-पिता रहेंगे,जब भारत का नींद खुली तो उसको उसकी हक़ीक़त दिख गई,एक छोटे से गंदे से कमरे में सो रहा था,उसके पास पढ़ाने लिखने के लिए क़िताबें नहीं थी,कुछ क़िताबें थी,कुछ क़िताबों की जरूरत थी जब पिताजी मज़दूरी करके घर पर वापस आए तो भारत ने पिताजी से किताबें खरीदने के लिए पैसों मांगे,पिताजी ने जेब में हाथ डाला और हिसाब लगाया बेटा अगर तुझे किताबों के लिए पैसे दे दूंगा तो घर का राशन कहां से लाऊंगा,भारत ने ठान लिया मज़दूरी करेगा,लोगों की गंदगी की सफाई करेगा और पैसे
कमाएगा,और उन पैसों से किताबें ख़रीद कर लाएगा और पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बनेगा, पर सपने तो सपने ही होते हैं, भारत मज़दूरी पर गया, ठेकेदारों और अधिकारियों ने चंद पैसों के लिए उस युवा को गटर में बगैर सुरक्षा उपकरणों जैसे ऑक्सीजन मास्क और ऑक्सीजन सिलेंडर के उतार दिया,सीवेज टैंक ज़हरीली गैस से भरा हुआ था, जैसे ही भारत सीवेज टैंक में उतरता जा रहा था धीरे-धीरे अपनी मौत को गले लगाता जा रहा था। सीवेज लाइन में घरों से निकलने वाला गंदा पानी,और मल मूत्र भरा हुआ था । कंपनी के अधिकारियों ने भारत सिंह को टैंक में उतरा । भारत सिंह कीचड़ में फंसे तो इंजीनियर दीपक सिंह ने निकालने की कोशिश की। इस प्रयास में कंपनी का इंजीनियर दीपक भी गिर गए। घटनास्थल के पास दो बच्चियों ने इंजीनियर दीपक सिंह को गिरते हुए देखा तो बच्चियों ने वहां से गुज़र रहे युवकों को इस बारे में बताया। युवको ने बहुत कोशिश की दीपक और भारत को बाहर निकालने की,जब युवकों की कोशिश नाकाम रही तो उन्होंने इस घटना की सूचना पुलिस को दी,जब पुलिस ने घटनास्थल का मुआयना किया तो उनको पता चला भारत और दीपक की मृत्यु हो चुकी है तो पुलिस ने रस्सी से बांधकर लाशों को बाहर निकाला। ऐसा लगता है की यह मामला जहरीली गैस से दम घुटने से हुआ है ।
भारत सिंह के पिता शैतान सिंह गांधीनगर इलाके में अपने रिश्तेदारों के साथ रहते हैं। शैतान सिंह के दो बेटों में भारत बड़ा बेटा था। वह हमेशा कहता था कि पापा मैं पढ़-लिखकर बड़ा अफ़सर बनूंगा। बेटे की पढ़ाई में पैसों की कमी आड़े नहीं आए,इसलिए शैतान सिंह मज़दूरी करने भोपाल आ गया था। एक दिन भारत ने फोन करके बताया था कि पढ़ाई के लिए कुछ किताबें खरीदनी हैं।
शैतान सिंह ने अपने बड़े बेटे भारत सिंह को भोपाल बुला लिया था,शैतान सिंह के साथ रहने वाले कुछ लोग अंकिता कंस्ट्रक्शन में काम करने जाते हैं। भारत ने भी सोचा कि पिता पर आर्थिक बोझ नहीं पड़े, इसलिए वह भी काम पर जाने लगा। शैतान सिंह ने बताया कि उसका बेटा भारत सिंह आज जब खाना खा रहा था। इसी बीच इंजीनियर दीपक सिंह उसके पास पहुंचे। दीपक उसे साइट पर लेकर चले गए। थोड़ी देर बाद बेटे भारत की मौत की ख़बर आई।
फिर भारत देश के नौजवान भारत की सीवेज ने जान ली,कब तक लोग मरते रहेंगे,हम इंसान बहुत गंदे हैं,अपनी गंदगी दूसरों के सिर पर रखकर फ़िकवाते थे ।
वर्ष 1993 में भारत सरकार द्वारा सिर पर मैला ढोने वालों के रूप में लोगों के नियोजन को गैरकानूनी घोषित किया गया तथा उस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसके बावजूद अभी भी भारत में यह कुप्रथा एक सामाजिक बुराई के रूप में प्रचलित है।
*होता जो बस में,ऐ मेरे लाल,*
*कर देता ये दुनिया*
*सारी तेरे नाम।*
*क्या मैं करूँ,नहीं कुछ*
*भी नहीं पास मेरे ।*
*दुआओं के सिवा।।*
मोहम्मद जावेद खान, लेखक, संपादक, भोपाल मेट्रो न्यूज़ (ये लेखक के अपने विचार है )
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