'भारत बनाम भारत': लड़ाई हुई और अंतर्राष्ट्रीय हितैषी की पहचान - अजय बोकिल
Updated on
29-07-2023 05:46 AM
जैसे कि भारत बनाम भारत की बहस पर से जनता का ध्यान हटाने में लगी हुई है। कांग्रेस और उनके गठबंधन में सभी विचारधाराओं को शामिल करते हुए कहा जा रहा है कि 'इंडिया' नाम के साथ ही उन्होंने 'भारत' का विरोध करने के लिए दो ही तरीकों से बीजेपी के पास 'इंडिया' का विरोध किया है, इसलिए उन्होंने नॉचली विचारधारा का पहला पद हासिल किया है। या फिर खुद को इंडिया से अलग कर लें। बीजेपी के लिए दूसरा विकल्प संभव नहीं है, क्योंकि कल तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत को प्यारा कहा था। मसलन 'मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, इंडिया फर्स्ट गर्लफ्रेंड'। इनमें भारत कहीं नहीं था, क्योंकि भारत शब्द में वो कुलीन भाव नहीं आता, जो 'इंडिया' में आता है। लेकिन यह 'इंडिया' भी तो 'भारत' में ही शामिल है। सॉसेज ने कहा कि फुटबॉल में यही शब्द अपने पाले में डाल लिया है।
अब इसे अपने-अपने विवरण से दर्शाया गया है और एक अन्य व्याख्या को फ़िज़ूल सिद्धांतों में शामिल किया गया है। 'भारत' के अगले आम चुनाव में अपनी राजनीतिक अस्मिता को लेकर विवाद इस बहस में है कि भारत के न्यूनतम उत्पाद हैं, जो आज भी सही मायनों में 'अच्छे दिनों' की तरह जी रहे हैं।
इस हजारों साल पुराने देश के राष्ट्र को लेकर एक द्वंद्व हमेशा बना रहता है। यह द्वंद्व अपने प्राचीन नाम भारत को धारण करता है या नहीं रखता है तथा 'भारत' जैसा नाम रिवाजों द्वारा दिया गया है, लेकिन अब विश्व भर में प्रचलित हो प्रतीकात्मक नाम को ही अपनी पहचान मान लिया गया है। इस अन्तर्द्वन्द्व में 75 वर्ष पूर्व से जी आ रहे हैं। सहज वर्णन यह है कि जब यह देश 'यस सर' है तो 'भारत' होता है और 'जब वो बड़ों के पैर छूता है तो 'भारत' होता है। या यूँ कहें कि 'इंडिया' के किरदार में एक 'भारत' से जुड़ा हुआ है।
यही प्रश्न हमारे पूर्वज संविधान के बारे में भी सामने आ रहा होगा। इसलिए भारतीय संविधान के सूत्र 1 की धारा 1 में ही स्पष्ट रूप से लिखा है कि 'भारत यानी इंडिया स्टेट्स का संघ होगा (मूल अंग्रेजी में इंडिया डेट इज इंडिया शैल बी ए यूनियन ऑफ स्टेट्स)।
इसका अर्थ यह है कि संविधान के ढांचे में भी इस बात पर एकमत नहीं था कि इस देश को 'भारत' कहा जाए या फिर 'भारत।' इस प्राचीन देश का नाम 'इंडिया' है। लेकिन इसी से एक ही देश में 'दो देश' होने की अवधारणा मिली कि एक है- भारत और इसकी अपनी सोच, दृष्टि और आग्रह है और दूसरा है- भारत अपनी कल्पना, इतिहास बोध अंतर्विरोध और मुद्दे हैं। वैसे भारत की आजादी के बाद तीसरा और आधिकारिक नाम 'भारत का रिपब्लिक' यानी 'रिपब्लिक ऑफ इंडिया' है।
इस प्राचीन देश के यूं तो कई नाम हैं, लेकिन सबसे ज्यादा भारत का पता है लेकिन भारत में आने वाले विदेशियों और बाहरी कलाकारों के समय पर भारत को अलग-अलग नाम दिए गए हैं, जिसमें भारत की सांस्कृतिक पहचान से लेकर उसकी सबसे ज्यादा भौगोलिक पहचान को तवज्जो दी गई है। वैदिक काल में भारत आर्यावर्त था, जो पुराण काल तक आते-आते भारत या भारत वर्ष हो गया। इसलिए विश्व के सबसे पुराने महाकाव्यों में से एक 'महाभारत' का नाम भी भारत में होने वाला महा धर्म युद्ध रखा गया था। इसके लिए कई जगह जम्बूद्वीप का नाम भी बताया गया है।
हिंदू धार्मिक कर्मकांड में इसी शब्द का प्रयोग होता है लेकिन इसे हटकर ज्ञात इतिहास को देखते हैं तो जब भी भारत का संपर्क अन्य संस्कृतियों और संरचनाओं से होता है तो वो भारत को अलग-अलग जाति से बुलाए जाते हैं। ज्यादातर भारत की पहचान पश्चिम एशिया से बाकी देशों को अलग करने वाली सिंधु नदी को ध्यान में रखकर की जाती है क्योंकि वैदिक काल के समांतर समझी जाने वाली वर्तमान ईरान (पुराना पारस या फारस) में बोली जाने वाली प्रोटो भारतीय ईरानी (ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी) ) भाषा में पारसी लोगों ने भारत को 'सिंधु' नाम दिया।
वैसे ईसा के तीन हजार वर्ष पूर्व प्राचीन मेसोपोटामिया (आधुनिक इराक) की सभ्यता में भारत को 'मेलुहा' नाम से जाना जाता है, लेकिन इसकी पहचान बाद में सिंधु नदी के आहा में गुम हो गई। भारत के लिए 'हिंदू' का पहला उल्लेख 486 ईपू में पारसी सम्राट दारा के समय की लिखी पुस्तक 'नक्श-ए-रुस्तम' में है। सम्राट दारा (डेरियस) ने पहली बार 516 ईपू में भारत के सिंध प्रांत को जीता था। इस खाते से टैब इस भूभाग को हिंदू (होना चाहिए था लेकिन सिंदस, लेकिन पुरानी पारसी भाषा में 'स' का उच्चारण नहीं था) कहा गया है।
बाद में ग्रीको ने भारत को इंडिक (जिसमें सिंधु नदी इंडस बनी और बाद में लैटिन में यही शब्द 'इंडिका' बना) लैटिन से अंग्रेजी में 'इंडिया' बन गया। दूसरी ओर मुस्लिम आक्रांताओं ने सिंध नदी के उस पार के इलाके को हिंदू कहा, जो आज एक राजनीतिक, सांस्कृतिक और धार्मिक अस्मिता का पर्याय हो गया है। यानी हिंदुओं से हिंद और हिंद में रहने वाले हिंदू या हिंदुस्तानी लेकिन अंग्रेज़ों की तरह सभी देशों को भारत के नाम से नहीं बुलाया जाता। उन्होंने अपनी रजिस्ट्री के खाते से भारत के नाम रखे हुए हैं, इसकी जानकारी ज्यादातर भारतीयों के पास नहीं है। मसलन 'इंडिया', फ्रेंच में 'इंडिया', स्पेनिश में 'ला इंडिया', जर्मन में 'इंडिया', 'इंडिया' में 'इंडिया', अरबी में 'अल हिंद', आधुनिक ग्रीक में 'इंडोस', कोरियाई भाषा में 'इंडो' ', चीनी में 'यिन्दू', जापानी में 'इंडो' नाम से जाना जाता है। कहीं भी 'भारत' शब्द का उल्लेख नहीं है।
अब इसे युवाओं की गुलामी के कारण कहा जाता है या आत्मवंचना कहा जाता है, हमने भी भारतीय या भारतीय पहचान को स्वीकार कर लिया है। अब इसे दोबारा शुरू करना बहुत मुश्किल है। वैसे देशों के मूल नाम के अनुसार उन्हें उनके आदर्श या वाक सुविधा के खाते से मूल नाम देना कोई नई बात नहीं है। हर देश दूसरे देश को अपनी परस्पर विरोधी दृष्टि-समझ है।
जैसे कि चीन का असली नाम चीनी में 'झोंगुओ' है, लेकिन हम उसे चीन के नाम से ही बुलाते हैं, क्योंकि हमने यही नाम भाषा में सुना और पढ़ा है। फ्रांस का पुराना नाम 'गाल' था, लेकिन अब वह फ्रांस ही है। 'म्यांमार' हमारे लिए ब्रह्म देश था, बाद में बर्मा हुआ और अब म्यांमार। इंजील को अपना पुराना नाम 'सीलोन' से स्थापत्य में काफी समय लगा। पाकिस्तान नाम इसलिए चल गया, क्योंकि भारत से धर्म का आधार जो अलग हो गया था, उसकी अपनी कोई अलग और एक पहचान नहीं थी।
लेकिन अब राजनीतिक-कारणों से 'भारत बनाम भारत' का एक नया टकराव खड़ा हो रहा है। आग्रह है कि जो हम सोच रहे हैं, वही सही और सार्थक है। असल में यह संघर्ष लादी हुई और अंतनिर्हित पहचान का है। लेकिन आरोप-प्रत्यारोप के रूप में जो व्याख्याएं भारत और भारत की जा रही हैं, वह अर्ध सत्य से प्रेरित हैं और मैं उन्हीं सत्य पर आधारित हूं। मसलन अगर भारत ही भारत है तो कांग्रेस ने आजादी की लड़ाई के लिए आदिवासी के लिए लड़की थी? इंग्लैण्ड द्वारा प्रदत्त 'इंडिया' के सदस्यों को मिली पहचान तो नहीं थी लड़की। वह परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़े हुए भारत की आत्मा की स्वतंत्र होने की पुकार थी।
यदि 'भारत' शाश्वत देश है तो फिर 'भारत' क्या है? राष्ट्रवादी विचारधारा के आधार पर यह सत्य है कि इसे खारिज नहीं किया जा सकता कि भारत एक बहुलवादी देश है और इसी में इसकी पहचान निहित है। आक्रामकता भारत की पहचान नहीं है (प्रतिमालिकाएं भी एक आदर्श हैं)। भारत को भारत से अलग नहीं किया जा सकता, इसलिए आश्रम व्यवस्था को भारत शब्द से भी जोड़ा गया। क्योंकि सिर्फ 'इंडिया' से काम नहीं। खैर ही 'फील गुड' की तरह हो।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की अपनी ही परिभाषा के उलट भारत की नकारात्मक व्याख्या की। उन्होंने 'ईस्ट इंडिया कंपनी' से भारत को लूटने की तुलना की। मसलन 'इंडियन मुजाहिदीन' या -पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया' से कर दी।
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्लास्टिक गठजोड़ की तुलना कउवे से करते हुए कहा कि कउवा भी हंस बनाओ, मोती नहीं चुग सकते। दूसरे अर्थ में वह मोदी को कभी भी हरा नहीं सकते। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल किला ने इंडिया को कहा। ईसाई गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि उनके अतीत का पीछा करने के लिए 'इंडिया' का नाम सामने आया है। यानी बीजेपी का कहना है कि कांग्रेस भले ही भारत की पार्टी हो, लेकिन उसकी मंशा 'इंडिया' वाली है।
अन्य कांग्रेस और 26 विचारधाराओं का दार्शनिक गठबंधन भारत की व्याख्या अपने-अपने ढंग से की जा रही है। नेता कांग्रेस राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर नेतागिरी करते हुए ट्वीट किया कि ''आप हमें जो प्रधानमंत्री कहते हैं, श्रीमान मोदी। सभी लोगों के लिए प्यार और शांति वापस लाएंगे। 'लानत ही थे।'
अब यह अलग बात है कि 'भारत' शब्द का प्रयोग किसी भी नकारात्मक उद्देश्य के लिए नहीं किया जा सकता। उनके लिए 'इंडिया' का शरण स्थल ही जाना जाता है। तो क्या मोदी की 'इंडिया' और राहुल की 'इंडिया' दोनों अलग-अलग हैं? क्या भारत की जनता को दोनों के बीच दोस्ती से भारत में किसी एक का चुनाव कराना होगा?
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