नई दिल्ली । उपराष्ट्रपति एम.वेंकैया नायडू ने कहा कि कोविड-19 महामारी से उपजे तनाव से उबरने में संगीत और नृत्य हमारी मदद कर सकते हैं। उपराष्ट्रपति ने कहा कि, संगीत और नृत्य हमारे जीवन को फिर से जीवंत तथा ऊर्जावान बनाकर इसकी पूर्णता को और अधिक बढ़ाते हैं। उन्होंने कहा कि संगीत और नृत्य हमारे जीवन में सद्भाव लाते हैं तथा निराशा व अवसाद को दूर कर हमारे आत्मबल को मजबूत बनाते हैं। उन्होंने पिछले 23 वर्षों से 'परम्परा श्रृंखला’ का लगातार आयोजन करने तथा इस चुनौतीपूर्ण समय में भी अपने 24वें आयोजन को सफल बनाने के लिए नवीनतम तकनीकों को अपनाने पर 'नाट्य तरंगिनी' की सराहना की। उन्होंने कहा कि, 'परम्परा' का अर्थ है 'रिवाज', यानि कि सांस्कृतिक खजाने का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक स्थानांतरण। नृत्य और संगीत के इस अद्भुत समारोह को आयोजित करने के लिए इससे बेहतर समय नहीं हो सकता था क्योंकि लॉकडाउन, आर्थिक मंदी और महामारी के कारण सामाजिक मेलजोल में कमी होने से सामान्य जीवन बाधित हुआ है। यहां पर यह ध्यान देने वाली बात है कि यह महोत्सव आज विश्व श्रव्य-दृश्य विरासत दिवस के मौके पर आयोजित किया है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत में संगीत और नृत्य की शानदार परंपरा है। उन्होंने कहा कि भारत के नृत्य, संगीत और नाटक के विविध कला रूप हमारी समान सभ्यता दर्शन और सद्भाव, एकता तथा एकजुटता जैसे मूल्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने कहा कि भक्ति, और आध्यात्मिकता पर विशेष तौर पर ध्यान केंद्रित किया है और नौ 'रस' के भावों की एक पूरी सरगम है जिससे मानव अस्तित्व का गठन होता है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि, हमें अपने पारंपरिक मूल्यों तथा सांस्कृतिक खजाने का लगातार पुनरावलोकन और नवीनीकरण करते रहना चाहिए। उन्होंने परम्परा को बनाए रखने के लिए शिक्षा प्रणाली में इन तत्वों का व्यवस्थित समावेशन करने पर भी ज़ोर दिया। प्रदर्शन कला को पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा बनाने से छात्रों का आत्मविश्वास बढ़ेगा तथा जीवन के अवरोधों को दूर करने के लिए समर्थ बनाने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि छिपी हुई प्रतिभाओं का पता लगाने और रचनात्मकता का बढ़ावा देने में भी इससे बहुत सहायता मिलेगी।