भारत एक धर्म प्रधान देश है यहां जितने धार्मिक त्योहार धार्मिक क्रियाएं और करोड़ों अरबों रुपए धार्मिक आयोजनों पर खर्च होते हैं। लाखों मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, चर्च और धर्म स्थल इस देश में है। यहां सभी को अपने-अपने अनुसार धार्मिक क्रियाए करते हैं किसी पर भी कोई रोक या बंदिश नहीं है। परंतु धर्म की आड़ में जो गलत कार्य करते है वह एक तरह से शरीर में फैला कैंसर है एक अभिशाप है। परंतु धार्मिक सिद्धांतों को मानने वालों की जनसंख्या अधिक होने से इससे अत्याधिक जनसंख्या वाले देश में फिर भी स्थिरता है। जितने भी धार्मिक ग्रंथ हैं वह सभी जीवन में शांति अहिंसा मैत्री का पाठ सिखाते हैं परंतु चंद लोग धार्मिक मान्यताओं को कट्टरता का रूप दिला कर युवाओं की धार्मिक आस्था को आतंकवादी स्वरूप में बदल देते हैं। जनता, धर्मगुरु और सरकार के बीच खुला संवाद नहीं होने से गलतफहमी बढ़ जाती है और यहीं से अन्याय अत्याचार की शुरुआत गलतफहमी के चलते हो जाती है। जिस दिन धर्म के नाम की कट्टरता समाप्त हो जाएगी पूरा विश्व शांति की ओर अग्रसर हो जाएगा। जातिवाद का दौर जो कि बिल्कुल खत्म होना चाहिए पर इन दिनों निरंतर बढ़ते जा रहा है रंगभेद, भाषा और कल्चर का भिन्न-भिन्न होना यह सब इंसान से इंसान की दुश्मनी को बढ़ावा दे रहे हैं।
सभी धर्म और जाति के लोग अच्छे होते हैं यह साबित होना अभी भी बाकी है क्योंकि कभी-कभी कोई वर्ग विशेष ऐसा कुछ कर जाते हैं जिससे पूरा समाज बदनाम हो जाता है।
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