इन दिनों श्रद्धालुओं को धार्मिक आयोजनों मैं आकर्षित करने के लिए भव्य रुप दिया जा रहा है।
वस्तुतः धार्मिक आयोजन व्यक्ति के दिल दिमाग में धर्म के जरिए सुख शांति संतोष और हृदय में पवित्रता बढ़ावा देने के लिए होती है। धार्मिक प्रवचन और समारोह मे आदर्श जीवन शैली अपनाने के तरीके बताए जाते हैं और नशा भ्रष्टाचार झूठ फरेब धोखाबाजी से मुक्त होने के उपदेश दिए जाते हैं।
परंतु आजकल धार्मिक आयोजनों पर करोड़ों रुपए खर्च कर इतना विशाल रूप दिया जाता हैं कि आयोजन का मूल प्रयोजन दबकर रह जाता है।
लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं का एकत्रित होना अब आम बात हो गई है। आयोजक भी इस बात पर अधिक जोर देते हैं कि ज्यादा से ज्यादा श्रद्धालु एकत्रित हो, कई तरह के प्रलोभन भी दिए जाते हैं।
अधिक पब्लिक इकट्ठे होने से कई बार जन धन की भी हानि होती है, कई लोग अपनी बड़ी मुश्किल से इकट्ठी की बचत दान धर्म के नाम से आयोजनों की भव्यता बढ़ाने में खर्च कर देते हैं जबकि वही रकम उनके खुद के लिए या फिर जिसे वास्तविकता में जरूरत हो उसे दान या मदद के रूप में दी जा सकती है।
ग्रंथों में भी लिखा है ईश्वर कण कण में बसे है, आत्मा में परमात्मा बसते हैं। इसलिये श्रद्धालुओं ने कोशिश करना चाहिए कि भगवान उनके आसपास और स्वयं के भीतर देखे।
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