‘खेल‘ समाज के द्वारा बनायीं गयी एक ऐसी व्यवस्था है जिसमे व्यक्ति का न केवल शारीरिक अपितु मानसिक विकास भी होता है, खेल व्यायाम का ही एक लघु रूप है। अदि काल में लोग खेल को मनोरंजन के लिए प्रयोग किये जाने वाला एक साधन मात्र मानते थे परन्तु अब खेल विद्यालयों में एक विषय के रूप में पढ़ाया जा रहा है। भारत को भी कई खेलों का जनक कहा गया है जैसे, कबाड़ी, शतरंज, खो-खो आदि, इन खेलों के अविष्कार के पीछे सिर्फ एक ही उद्देश्य था और वो था व्यक्ति का चहुमुखी विकास करना। वर्तमान समय की अगर बात करे तो हम ये पाते हैं की लोगो की खेल के प्रति उदासीनता बढ़ती जा रही अब लोग स्वयं तक ही सिमित होते जा रहे हैं, इसका मुख्य कारण मोबाइल पर लोगो की निर्भरता, बच्चा हो या बड़ा कोई भी इसके प्रभाव से अछूता नहीं है, जो लोगो को न केवल शारीरिक अपितु मानसिक रूप से भी बीमार कर रहा है और अब माता-पिता का दृन्ष्टिकोण भी खेल को ले कर बदल गया है उन्हें बच्चो का बाहर खेलना समय की बर्बादी लगता है। वर्तमान समय में हम ये देख रहे हैं कि छोटे-छोटे बच्चे मानसिक अवसाद (डिप्रेशन )जैसी बीमारी से ग्रसित हैं, अभिवावक इसके मूल कारण को नहीं जान पाते हैं और इसे एक बीमारी समझ कर डॉक्टर के पास दौड़ते हैं, पहले के समय में लोग स्वस्थ हुआ करते थे वे शाम को नियमित खेलने जाया करते थे और इसप्रकार वे अपने आप को हृष्ट-पुष्ट रख पाते थे।
आजकल तो स्कूलों में भी प्लेग्रुप जैसी कक्षाओ का आयोजन किया जाता है जिसके माध्यम से खेल खेल में बच्चो को पढ़ना सिखाया जाता है। खेल के द्वारा मनुष्य के अंदर धैर्यता, सहनशीलता, निडरता एवं प्रतिस्पर्धा जैसी विशेषताओं का विकास होता है।
वायिगोत्सि के अनुसार “जटिल भुमिकाओ वाले खेलो मे बच्चो को अपने व्यवहार को संगठित करने का बेहतर व सुरक्षित अवसर मिलता है जो वास्तविक स्थितियों में नहीं मिलता “| ये तो हम सब जानते है की एक अच्छा जीवन जीने के लिए हमे चाहिए की हम शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ रहे परन्तु वर्त्तमान समय में स्कूलों द्वारा दिए जा रहे पढ़ाई के बोझ एवं अभिवावको द्वारा बच्चो पर अव्वल आने का दवाब बच्चो को खेल से कोसो दूर करता जा रहा है, यदि माता पिता ये चाहते हैं की उनका बच्चा स्वस्थ रहे तो बच्चों को खेल ने से रोकने के बजाय बच्चो के साथ खेलें इसके दो फायदे होंगे एक तो माता पिता अपने बच्चो को स्वस्थ ऱख पाएंगे और दूसरा उन्हें अपना समय दे पाएंगे। खेलना केवल हमारे जीवन का आधार है अपितु यह हमारे जीवन को सफल भी बनता है, हमारे देश में खेल को प्रोत्साहित करने के लिए खेल में ख्याति प्राप्त लोगो को पुरस्कार देने की व्यवस्था है, जिसमे द्रोणाचार्य एवं अर्जुन पुरस्कार मुख्य है। भारत की महिलाओं ने भी खेल जगत के क्षेत्र में सफलताएं प्राप्त की हैं जिसमे पी.वी संधू (बैडमिंटन), मिथाली राज (क्रिकेट ), मैरी कॉम (मुक्केबाजी), सान्या मिर्ज़ा (लॉन टेनिस ) के नाम बहुचर्चित है। उपसंहार: भारत में खेल सर्व धर्म संभाव कि नीति पर आधारित है यहाँ किसी के साथ जाति, वर्ग, एवं भाषा के आधार पर कोइ भेदभाव नहीं किया जाता है, सब लोग मिलजुल कर अपने देश के लिए खेलते हैं, जो इस बात का परिचायक है की भारत की विविधता में भी एकता है।
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