हमारी संस्कृति में शादी की बात चले तो विभिन्न विभिन्न धारणाए सामने आ जाती है। सबसे पहले जन्म पत्रिका और गुण का मिलान उसके बाद सभी कार्यक्रमों के मुहूर्त अनुसार दिन और समय तय करना। अलग-अलग समाज और जाति मे कई तरह की धारणा बनी हुई है। बहुत कुछ धारणाए करीब-करीब एक समान होती है जैसे मुहूर्त के दिन और समय पर ही शादी के कार्यक्रम होना। मुहूर्त निकालने वाले ज्ञानी साल भर में कुछ ही चुनिंदा दिन का मुहूर्त बताते हैं इतनी भारी-भरकम जनसंख्या में चुनिंदा दिन पर ही शादी हो यह संभव नहीं है। कई लोग इस धारणा से हटकर जिस दिन मैरिज गार्डन खाली मिलता है उस दिन शादी का प्रोग्राम बना लेते हैं। कई लोग इसी धारणा पर चलते हैं कि पंडित जी के बनाए दिन और समय पर हम शादी के कार्यक्रम रखेंगे परंतु कई जगह यह देखने में आया कि जब दूल्हे का प्रोसेशन निकलकर तोरण के लिए आता है तो उसके दोस्त जो आनंद विभोर होकर नाचने लगते हैं और दूल्हे को नहीं छोड़ते हैं और मालूम पड़ा कि तोरण लगाने का मुहूर्त का समय निकल जाता है यही स्थिति शादी ब्याह के फेरे के समय भी कई बार हो जाती है तब आदमी यह नहीं सोचता कि मुझे तो जो पंडित जी ने समय दिया उसी समय पर वह कार्य होना था पर फिर भी उनकी शादी होती है और वह सफल भी रहती है। इसका मतलब यह हुआ कि मुहूर्त का समय चूक जाने पर कुछ बिगड़ेगा नहीं। अतः बेहतर यह हो की शादी या मांगलिक कार्य के लिए कई सारे मुहूर्त के दिन देखे जाएं और कई सारी समय सारणी दे दी जाए ताकी किसी को भी परेशानी ना हो, एक ही दिन मुहूर्त होने से सब चीज महंगी हो जाती है यदि अनेक दिन मुहूर्त रहेंगे तो व्यर्थ का पैसा खर्च नहीं होगा। अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्) ये लेखक के अपने विचार है I
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