बामुशकिल वह समय आता है कि जब हम अपने पूरे घर की साफ सफाई करते हैं, रंग रोगन करते हैं और अटाला बाहर निकाल देते हैं। और स्वच्छता के इस वातावरण हमारे मन में हर्षोल्लास रहता है तरह-तरह के व्यंजन हम बनाते हैं खाते हैं नए कपड़े पहनते हैं। जब हम घर में अगरबत्ती या घी का दिया लगाते हैं तो वह वातावरण को शुद्ध करते है। पूरे साल भर में जीवन की इस कशमकश भगदड़ में यह बिरला समय आता है कि जब हम स्वच्छंद और शुद्ध वातावरण मैं रहते हैं। धनतेरस रूप चौदस दीपावली पर्व आते हैं और घरों घर दिए लगते हैं संपूर्ण वातावरण खुशबू और शुद्ध हवा का हो जाता है। पर जैसे ही लक्ष्मी जी की पूजा संपन्न होती है और तुरंत ही कुछ लोग और बच्चे धड़ाधड़ पटाखे फोड़ने में लग जाते हैं और यह सिलसिला बेहिसाब चलता है रात भर। पूरा वातावरण इतना पालुटेड हो जाते हैं कि छोटे बच्चे, बुजुर्ग और बीमार को कमरों में बंद रखना पड़ता है। जितनी शिद्दत से शुद्ध वातावरण बना था कुछ लोग उसे पटाखे छोड़कर पूरे वातावरण पालुटेड करते हैं। पटाखों पर काफी पैसा बर्बाद करते हैं। कहीं किसी रिती रिवाज या ग्रंथ में नहीं लिखा है कि आप पटाखे छोड़कर वातावरण खराब करो। अब जाकर जागरूक सरकार कही कही इस बात पर रोक लगा रही है पर यह रोक धर्मगुरु के उपदेशऔर स्वच्छ हवा के पर्यावरण का पाठ बचपन से पढ़ाने से आवश्यक रूप से लग सकती है। अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्) ये लेखक के अपने विचार है I
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