सच्चा सुख आपके निर्मल मन, शांत, ममतामई, निश्छल, तेरा मेरा और ऊंच-नीच से परे सोच वाली जीवनशैली से है। जीवन में आदर्शता और अनुशासन यह आपकी सोच, शरीर और व्यक्तित्व के मूल मंत्र है और सभी धर्म हमें यही ज्ञान देते हैं यही मार्गदर्शन देते हैं। जीवन का सही सुख हम अपनी संस्कृति आध्यात्म और मानवीय मूल्यों से पाते हैं। अहिंसा परमो धर्म सर्वोपरि है। स्वार्थ, दूसरों को तकलीफ देना ऐसी सोच के साथ व्यक्ति कभी भी सुख नहीं पा सकता। सच्चा सुख संतोष, अमुमन सहनशीलता और इंसानियत के मूल्य पर खरे उतरने में है। जो प्रकृति से जुड़ा है वह सबसे सुखी है। आप किसी की मदद करके देखो सुख की अनुभूति आपको महसूस होने लगेगी। हमारे धर्म, हमारी संस्कृति और भारतीय सभ्यता ने सुखी जीवन की कई परिभाषाएं बताइ है। यदि हम सत्य अहिंसा अपरिग्रह के मार्ग पर चलते हैं तो हम सच्चे सुखी व्यक्ति रहेंगे। यदि आप अपने आप को कोई छोटा बड़ा नहीं मानते हैं कम ज्यादा पैसे से अपने आप की तुलना नहीं करते हैं कभी किसी की बढ़ाई से नहीं जलते हैं जो आपके पास है उसमें आप खुश रहते हैं तो आप मान लीजिए कि आप से सुखी इस दुनिया में और कोई नहीं है और यह सुख आप अपने मस्तिष्क पर बनाए रखें। शारीरिक सौष्ठव, स्वस्थ एवं मेहनती शरीर भी सुखी जीवन का दर्पण है। श्रृंगार रस आपको आनंद की अनुभूति देता है जो है जितना है उसी से श्रृंगारीत रहे।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्) ये लेखक के अपने विचार है I
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