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एक काॅमेडियन को कितनी तवज्जो दी जानी चाहिए ?

Updated on 17-12-2020 02:56 PM
स्टैंड-अप काॅमेडियन कुणाल कामरा के खिलाफ गुरूवार को सुप्रीम कोर्ट अपनी ही मानहानि के मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। इस मामले में देश की सर्वोच्च अदालत क्या फैसला देती है, यह देखना वाकई दिलचस्प होगा, क्योंकि इसी से तय होगा कि क्या देश में काॅमेडी भी सिलेक्टिव करनी होगी या पूरी तरह से बंद करनी होगी? जिन लोगों ने कुणाल के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय की मान‍हानि का मुकदमा दायर किया है, उनका मानना है कि जेल में बंद वरिष्ठ पत्रकार अर्णब गोस्वामी को अदालत द्वारा जमानत दिए जाने के बाद कामरा ने शीर्ष अदालत को लेकर जो कमेंट किए, उससे सुप्रीम कोर्ट की अवमानना हुई है। अदालत में दायर मामले मे कहा गया है कि सोशल मीडिया पर कामरा के 17 लाख फाॅलोअर्स हैं। उन्होंने सर्वोच्च अदालत को लेकर जो ट्वीट्स किए,वह सर्वोच्च अदालत की सरासर मानहानि है। इस मामले में माफी मांगना ही पर्याप्त नहीं है।नियमानुसार अदालत ने इस मामले में देश के एटाॅर्नी जनरल वेणु गोपाल से राय मांगी तो उन्होंने कामरा के खिलाफ मुकदमा चलाने के पक्ष में मत दिया, जिस पर सुनवाई होने वाली है। इस बीच कामरा से कहा गया था कि वह शीर्ष अदालत पर की गई टिप्पणियों पर माफी मांग लें, लेकिन कामरा ने ऐसा करने से मना कर दिया। कामरा ने अर्णब को ‘व्यक्तिगत स्वं‍तत्रता’ के आधार पर जमानत देने के फैसले पर टिप्पणी की थी कि यदि अर्णब को जमानत मिलती है तो जेल में बंद अन्य लोगों (वामपंथियों) की ‘व्यक्तिगत स्वतंत्रता’ के अधिकार को भी ध्यान रखा जाना चाहिए। उसके बाद कामरा पर आपराधिक मानहानि का मामला दायर किया गया। इस पर कामरा ने कहा कि वो तो न माफी मांगेंगे और न ही आपराधिक मानहानि का मुकदमा लड़ने के लिए कोई वकील करेंगे। शायद कामरा मानते हैं कि उनके द्वारा अदालत की मानहानि किए जाने की बात सिद्ध करना आसान नहीं है। बहरहाल मुंबई में पले-बढ़े 32 वर्षीय कुणाल कामरा एक स्टैंड अप काॅमेडियन होने के साथ वेब सीरीज ‘शट अप या कुणाल’ भी होस्ट करते हैं, जि‍समें कई बार उनके टारगेट पर ‘अति राष्ट्रवाद’ रहता है। यूं कुणाल के कार्यक्रम में सभी को बुलाया जाता है, लेकिन उनका झुकाव वामपंथ की अोर है। कुणाल के ट्वीटस में भी अक्सर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर कमेंट्स होते हैं। यूं कुणाल की काॅमेडी प्रेक्षणीय होती है और वो जीवन की बेहूदगियों पर तंज करते हैं, मजाक उड़ाते हैं, जिसमें राजनीति, कुंवारी जिंदगी, टीवी के विज्ञापन आदि शामिल हैं। कामरा को काॅमेडी से इतर इस साल की शुरूआत में लोगों ने तब जाना, जब देश की पांच विमान कंपनियों ने उन्हें यात्रा के लिए बैन कर ‍िदया था। कामरा पर आरोप था कि उन्होंने इंडिगो की फ्लाइट में मशहूर टीवी एंकर अर्णब गोस्वामी के साथ बदतमीजी की और फ्‍लाइट में ही बहस करने के लिए अर्णब पर दबाव डाला था। इसके पूर्व 2017 में कामरा ने एक काॅमेडी वीडियो ‘ देशभक्ति और सरकार’ नाम से वायरल किया था, जिसमें देश में ‘नोटबंदी’ के फैसले का मजाक उड़ाया गया था। इसके बाद उन्हें जान से मारने की ध‍मकियां भी मिलीं। कामरा को मकान मालिक ने घर खाली करने का नोटिस ‍दे दिया। इससे उन्हें इतना तो पता चल ही गया कि व्यक्तियों पर तो ठीक संस्थाअों और सरकार पर तंज करने का नतीजा क्या होता है? हो सकता है कि कामरा यह काम सुविचारित ढंग से कर रहे हों।
इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि कामरा ने देश की सर्वोच्च अदालत पर जो टिप्पणी की, वह सही थी। कामरा ही क्यों, किसी को किसी पर भी अपमानजनक टिप्पणी करने का अधिकार नहीं है। क्योंकि अपमान की नीयत से कुछ भी कहना बोलने की स्वतंत्रता का दुरूपयोग है। लेकिन इसी के साथ यह सवाल भी जुड़ा है कि आखिर एक काॅमेडियन की बात को कितनी तवज्जो दी जानी चाहिए? कामरा पर मानहानि का मुकदमा चलाने से अंतत: किसका भला होगा? और फिर काॅमेडियन किसी पर भी कोई टिप्पणी नहीं करेगा तो क्या करेगा? यहां तर्क दिया जा सकता है कि सर्वोच्च अदालत के फैसले पर कामरा की टिप्पणी राजनीतिक पूर्वाग्रह से प्रेरित थी, इसलिए उन्हें ‘समुचित सबक’सिखाया जाना जरूरी है। कामरा के खिलाफ मानहानि का मुकदमा भी दिल्ली के कुछ वकीलों और कानून के छात्रों ने दायर किया है। पहले यह माना जा रहा था कि अदालत इसे ज्यादा महत्व नहीं देगी। लेकिन प्रशांत भूषण वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपनी मानहानि के मुकदमे में टोकन सजा देकर संदेश दिया था कि वह शीर्ष अदालत को लेकर की गई किसी भी गैर जिम्मेदाराना ढंग से की गई टिप्पणी को नजर अंदाज नहीं कर सकती। हालांकि उस चर्चित मामले में भारत सरकार के एटाॅर्नी जनरल वेणु गोपाल ने अदालत से दरख्वास्त की थी कि यदि प्रशांत भूषण अपनी टिप्पणी के लिए माफी मांग लें तो मामला यहीं खत्म कर दिया जाए। लेकिन प्रशांत भूषण ने सीधे तौर पर कोई माफी नहीं मांगी और अदालत ने उन्हें  प्रतीकात्मक रूप से 1 रू. जुर्माने की सजा सुनाई। प्रशांत भूषण और कुणाल कामरा में बुनियादी फर्क यह है कि भूषण सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील हैं और साथ में एक्टीविस्ट भी हैं। उनकी राजनीतिक प्रतिबद्धताएं जगजाहिर हैं। उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है, लेकिन वो अपनी बात कहने से नहीं चूकते। कुणाल कामरा काॅमेडियन हैं, वो पहले राजनीतिक कार्यकर्ता भी रहे हैं, इसकी ज्यादा जानकारी नहीं है, लेकिन उनका रूख भाजपा और उसकी विचारधारा के अनुकूल नहीं है, यह तय है। हो सकता है ‍कुणाल के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर करने के पीछे यही कारण हो। कुणाल अभी तक अपनी बात पर डटे हैं कि जो होगा, उसका सामना करेंगे। लेकिन कब तक और कैसे करेंगे, यह देखने की बात है। हो सकता है कि उन्हें अपनी दुकान भी जल्द समेटनी पड़े। क्योंकि राजनीतिक मंशा को दर्शाने वाली हर  काॅमेडी स्वीकार्य हो, यह जरूरी नहीं है। वैसे भी अब अवमानना और अभिव्यंजना में फासला इतना कम कर दिया गया है कि कोई भी इस दरार में आसानी से फंस सकता है।
हमारा लोकतंत्र अमेरिकी लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी के आग्रह से अलग है। वहां निवर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की  पद पर रहने के दौरान पूरे समय मीडिया और कार्टूनिस्ट जमकर खबर लेते रहे, लेकिन उसे अन्यथा नहीं लिया गया। हालांकि ट्रंप मीडिया की खुली आलोचना करते रहे। लेकिन इससे किसी का बाल बांका नहीं हुआ। वैसे भी कोई काॅमेडियन अथवा कार्टूनिस्ट जीवन और व्यवस्‍था की विसंगतियों में ही अपनी रचना के तत्व ढूंढता है। जो वह रचता है, लोग उसका आनंद लेते हैं और कुछ देर बार भूल भी जाते हैं। बेशक काॅमेडियन चु‍टकियां लेता है, उसमें तीखापन हो सकता है,  लेकिन वह दुर्भावना से परिपूर्ण ही है, यह मान लेना भी सही नहीं होगा। वास्तव में किसी काॅमेडी या कार्टून को आप उसे किस भाव और अर्थ में लेते हैं, यह आपकी विनोदबुद्धि पर निर्भर करता है। हर तंज या कमेंट में ‘इधर या उधर’ वाला तत्व ढूंढा जाने लगेगा तो काॅमे‍डी और काॅमेडियनों को ताले में ही बंद करना होगा। संभव है कि कामरा किसी एजेंडे के तहत काॅमेडी कर रहे हों, लेकिन कौन सा एजेंडा है, जो काॅमेडी‍रहित हो? यह देखना दिलचस्प है कि देश की सबसे बड़ी अदालत एक काॅमेडियन को कितना ‘खतरनाक’ मानती है। सर्वोच्च न्यायालय इस मामले में कोई सजा सुनाता है तो यह देश में काॅमेडी और काॅमेडी कलाकारों के लिए दूसरों पर बेखौफ तंज करने का भी शायद आखिरी दिन हो।
अजय बोकिल,लेखक                                                                ये लेखक के अपने विचार है I
वरिष्ठ संपादक,‘राइट क्लिक’

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