बड़े बुजुर्ग सही कहते हैं घर के संस्कार होना चाहिए और नियम भी होना चाहिए। मॉडर्न जमाने के पिता यह सोचते हैं कि बेटे के पेर में जब उनके नाप की चप्पल आ जाए तो उसके साथ दोस्त जैसा व्यवहार करना चाहिए, कुछ हद तक यह ठीक है पर हमेशा दोस्त सरीका व्यवहार रखना ठीक नहीं है। मान मर्यादा और घर के असूल तभी निभते हैं जब उसका पालन कराने का माजदा हो। बड़ो का रिस्पेक्ट हो और रिस्पेक्ट तभी बना रहता है जब जनरेशन गेप बनी हुई हो। बहुत कम परिवार ऐसे होते हैं जहां बच्चों को छूट दी जाती है तो बच्चे उसका नाजायज फायदा नहीं उठाते हैं और परिवार से जुड़े रहते हैं और परिवार के व्यापार में जुड़ जाते हैं तो व्यापार में तरक्की होती है और घर में शांति होती है। पर कई परिवार ऐसे हैं जहां बच्चे छूट का नाजायज फायदा उठाते हैं और परिवार के व्यापार से दूर अपने अलग जुगाड़ में लगते हैं कभी सफल होते हैं और कई असफल हो जाते हैं। बच्चे गलत लाइन में भी चले जाते हैं यारी दोस्ती नाइटलाइफ ग्लैमर में डूबे रहना दूसरों की चमक देखकर उसमें जाने की इच्छा रखना यह सब बच्चों के लिए भी गलत होता है और परिवार के लिए भी। हमेशा संस्कार बच्चों को परिवार से जुड़ने के होना चाहिए और जो है उसमें सुख शांति महसूस करना चाहिए। परिवार खुश तो आपकी दुनिया रंगीन है आप सुख-दुख अच्छा बुरा सब परिवार के साथ जोड़ कर रखें। परिवार प्राथमिकता होना चाहिए बाकी दुनिया बाद में।
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