*06 मार्च शाम 04:17 से 07 मार्च शाम 06:09 तक पूर्णिमा*
कुछ
प्रमुख कारणों से इस वर्ष होलिका दहन का योग दो दिन बन रहा है । जहाँ एक
तरफ देश के अधिकांश भाग में 6 मार्च को होलिका दहन का योग है, वहीं दूसरी
तरफ भारत के कुछ पूर्वी राज्यों में 7 मार्च को भी योग है ।धर्मसिंधु,
ज्योतिषशास्त्र एवं अन्य शास्त्रों तथा विद्वत्समाज के अनुसार होलिका दहन
के सारे मानकों के निष्कर्षरूप में 6 मार्च को शाम 6.38 से 9.06 बजे के बीच
तक होलिका दहन का शुभ कार्य किया जा सकता है । केवल जिन स्थानों पर
सूर्यास्त शाम 6.10 से पहले हो रहा है उन स्थानों पर होलिका दहन का योग 7
मार्च को भी बन रहा है । अतः जो लोग 7 मार्च को होलिका दहन करना चाहते हैं
वे अपने स्थानों के सूर्यास्त का समय पता कर लें और 7 मार्च के शाम - 6.24
से रात्रि 8.51 बजे के बीच होलिका दहन का कार्य सम्पन्न कर लें ।*
धुलेंडी और रंग की होली कब ?
जहाँ
6 मार्च को होलिका दहन किया जायेगा वहाँ धुलेंडी (रंग होली) 7 मार्च को
होगी । और जहाँ 7 मार्च को होलिका दहन किया जायेगा वहाँ धुलेंडी (रंग होली)
8 मार्च को मनाई जायेगी ।*
होली की सावधानियाँ -
प्राचीन
काल में पलाश के फूलों से तैयार सात्त्विक रंग अथवा गुलाल, कुमकुम, हल्दी
से होली खेली जाती थी । लेकिन आज के परिवर्तन-प्रधान युग में अनेक प्रकार
के रासायनिक तत्वों से बने पक्के रंगों का तथा कई स्थानों पर तो वार्निश,
ऑईल, पेंट व चमकीले पेंट्स का भी होली खेलने में उपयोग किया जाता है ।
होली खेलते समय निम्नलिखित सावधानियाँ बरतने से आप हानिकारक रसायनयुक्त रंगों के दुष्प्रभाव से बच सकते हैं -
सावधानी
रखिये कि कहीं होली का रंग आँख या मुँह में न चला जाय अन्यथा आँखों की
ज्योति अथवा फेफड़ों व आँतों में हानि पहुँचा सकता है । अतः जब कोई रंग
लगाये तब मुँह व आँखें बंद रखिये । होली खेलने से पहले ही अपने शरीर पर
नारियल, सरसों अथवा खाद्य तेल की अच्छी तरह से मालिश कर लीजिये ताकि त्वचा
पर पक्के रंगों का प्रभाव न पड़े और साबुन लगानेमात्र से ही वे रंग निकल
जायें । अपने बालों में भी तेल की अच्छी तरह से मालिश कर लीजिये ताकि
रासायनिक रंगों का सिर पर कोई प्रभाव न पड़े । इस प्रकार की मालिश के अभाव
में रासायनिक रंग त्वचा पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं तथा त्वचा में कुछ
दिनों तक जलन एवं शुष्कता बनी रहती है । जो लोग होली खेलने में वार्निश,
आईल पेंट या अन्य किसी प्रकार के चमकदार पेंट का उपयोग करते हैं, ऐसे लोगों
से सावधान रहिये । भूलकर भी उस टोली में शामिल न होइये जिसमें इस प्रकार
के घातक पदार्थों से होली खेली जाती हो । ये रंग चेहरे की त्वचा के लिए
अत्याधिक हानिकारक साबित हुए हैं । कभी-कभी तो इनसे पूरा चेहरा ही काला या
दागदार बन जाता है । यदि कोई आप पर ऐसा रंग जबरन लगा भी दे तो तुरंत ही घर
पहुँचकर रुई के फाहे को मिट्टी के तेल में डुबोकर उससे धीरे-धीरे रंग साफ
कर लीजिये । फिर साबुन से चेहरा धो डालिये । त्वचा पर लगे पक्के रंग को
बेसन, आटा, दूध, हल्दी व तेल के मिश्रण से बना उबटन बार-बार लगाकर एवं
उतारकर साफ किया जा सकता है । यदि उबटन के पूर्व उस स्थान को नींबू से
रगड़कर साफ कर लिया जाए तो और भी लाभ होगा । नाखूनों के आस-पास की त्वचा
में जमे रंग को नींबू द्वारा घिसकर साफ किया जा सकती है । होली घर के बजाय
बरामदे में या सड़क पर ही खेलें ताकि घर के भीतर रखी वस्तुओं पर उनका
दुष्प्रभाव न पड़े और होली खेलते समय फटे या घिसे हए पतले वस्त्र न पहने
ताकि किसी भी प्रकार की लज्जाजनक स्थिति का सामना न करना पड़े । होली के
अवसर पर देहातों में भाँग व शहरों में शराब पीने का अत्याधिक प्रचलन है ।
पर नशे के मद में चूर होकर व्यक्ति विवेकहीन पशुओं जैसे कृत्य करने लगता है
। क्योंकि नशा मस्तिष्क से विवेक नियंत्रण हटा देता है, बुद्धि में उचित
निर्णय लेने की क्षमता का ह्रास कर देता है और मनुष्य मन, वचन व कर्म से
अनेक प्रकार के असामाजिक कार्य कर बैठता है । अतः इस पर्व पर किसी भी
प्रकार के नशीले पदार्थ का सेवन न करें । शिष्टता व संयम का पालन करें ।
भाई सिर्फ भाइयों की व बहनें सिर्फ बहनों की ही टोली में होली खेलें ।
बहनें घर के परिसर में ही होली खेल लें तो और भी अच्छा है ताकि दुष्ट
प्रवृति के लोगों की कुदृष्टि उन पर न पड़े ।जो लोग कीचड़-गंदगी व पशुओं के
मल-मूत्र जैस दूषित पदार्थों से होली खेलते हैं, वे खुद तो अपवित्र होते
ही हैं औरों को भी अपवित्र करने का पाप अपने सिर पर चढ़ाते हैं । अत: होली
खेलते समय इनका प्रयोग न करें । होली खेलते समय शरीर पर गहने आदि कीमती
आभूषण धारण न करें, अन्यथा भीड़ में उनके चोरी या गुम हो जाने की संभावना
बनी रहती है I
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