सिर्फ हिंदी दिवस मनाने से हिंदी राष्ट्र भाषा परिभाषित नहीं होती
Updated on
15-09-2022 03:37 PM
भारत में राष्ट्रपति भी ऐसे थे जिन्हें हिंदी नहीं आती थी हमें कई दूसरे देशों से बहुत सीखना पड़ेगा जैसे चाइना कोरिया वियतनाम वहा लोग सिर्फ अपनी भाषा को ज्यादा महत्व देते हैं वहां उनके शहरो में साइन बोर्ड से लेकर अधिकतर जानकारी उनकी भाषा में ही होती है और वह लोग उनकी भाषा में ही बात करते हैं। भारत में कष्ट यह है कि यहां अनेक पैतृक भाषा है। हिंदी राष्ट्रभाषा है और अंग्रेजी चलन की भाषा है व्यवहार में अंग्रेजी की आज भी ज्यादा और महत्वपूर्ण पकड़ है। अनेक स्कूल में नर्सरी केजी कई जगह तो शुरुआत अंग्रेजी से ही बच्चों को पढ़ाई जाती है पहले ए बी सी डी ही सीखाते हैं बाद मे क ख ग सिखाते हैं, गिनती इंग्लिश में ही सिखाते है लेकिन हिंदी की गिनती कई बच्चों को अभी भी नहीं आती क्योंकि उन्हें सीखाई ही नहीं गई यदि बच्चे से पूछे हैं चोहोत्तर क्या होता है तो वह नहीं बता पाते हैं। सभी कहते हैं हिंदी भाषा को महत्व दे उसे प्राथमिकता दें पर यह कार्य सरकार तय करें और उसे निभाए। उच्च शिक्षा न्यायालय और प्राथमिक शिक्षा निश्चित रूप से हिंदी में हो यह तय हो जाएगा तो हिंदी को महत्व अपने आप मिल जाएगा। साधारण परिवार से लेकर उच्च परिवार तक अंग्रेजी में बात करना एक प्रतीक बन गया है। यहां अपने आप को शिक्षित साबित करने के लिए अंग्रेजी बोलना काफी है। यह मानसिकता बदलना होगी। बच्चों को शुरू से हिंदी की कविताएं पुनः याद दिलाना होगी। अधिकांश साहित्य हिंदी में ही तो तभी भारतवर्ष में हिंदी का महत्व साबित होगा। यह जो एक नई भाषा मुंबई जैसे शहर से शुरू हुई हिन्दलिश हिंदी शब्दों को भी अंग्रेजी वर्णमाला में लिखना। यह सर्वप्रथम रुकना चाहिए इस पर रोक लगना चाहिए। इसका चलन तुरंत बंद करवाना चाहिए प्रतिबंधित होना चाहिए।
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