मुंबई, । बिना मास्क पहने सार्वजानिक स्थानों पर घूमते लोगों को देख कर ये नहीं लगता की इन लोगों में कोरोना का कोई खौफ अब है, लेकिन दिन रात कोविड ड्यूटी पर तैनात डॉक्टरों-स्वास्थकर्मियों के दर्द को सुनने और जानने पर शायद सोशल डिसटेंसिंग और मास्क की अहमियत लोगों को समझ में आएगी. जी हाँ, भले ही लोगों में कोरोना संक्रमण का खौफ जाता दिख रहा है लेकिन दिन रात कोविड ड्यूटी पर लगे स्वास्थ्यकर्मियों के बीच खौफ और तकलीफें बरकरार हैं. नतीजा मानसिक तनाव इतना बढ़ा है कि डॉक्टरों को ही डॉक्टर की ज़रूरत पड़ रही है. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) महाराष्ट्र के मुताबिक़ 40 प्रतिशत रेजीडेंट डॉक्टर दिमागी रोग के शिकार हैं. इतना ही नहीं आईसीयू के मरीज़ों को देखने वाले 25 प्रतिशत फ़िज़िशियन और इंटेंसिविस्ट भी तनाव में हैं. मनोचिकित्सक कह रहे हैं कई स्वास्थ्यकर्मियों को डिप्रेशन की दवा खानी पड़ रही है. आपको बता दें कि इस साल अप्रैल से लेकर अब तक महाराष्ट्र के स्वास्थ्यकर्मी कई बार अपनी सुरक्षा की मांगों के साथ सड़कों पर उतरे हैं. 45 हजार डॉक्टरों वाली इंडियन मेडिकल एसोसिएशन-महाराष्ट्र ने चौंकाने वाले आंकड़े बताते हुआ कहा है कि करीब 7 महीने से लगातार कोविड ड्यूटी पर तैनात हमारे डॉक्टर-नर्स अब ख़ुद मानसिक रोगी बन रहे हैं. आईएमए महाराष्ट्र के मुताबिक गंभीर कोविड मरीज़ों की ड्यूटी पर तैनात 25 प्रतिशत आईसीयू-फ़िज़िशियन और इंटेंसिविस्ट मानसिक तनाव से गुज़र रहे हैं. आईएमए के मुताबिक़ कोविड दौर में राज्य में 40 प्रतिशत रेज़िडेंट डाक्टर्ज़ दिमागी रोग का शिकार हैं. एसोसियेशन के मुताबिक़ कोविड तनाव के कारण स्वास्थ्यकर्मियों में शराब और सिगरेट की लत में 30 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हुआ है. आईएमए महाराष्ट्र के अध्यक्ष डॉ अविनाश भोंडवे के मुताबिक, "सबसे अहम बात ये है की कुछ डॉक्टर अपनी लाइफ़ स्टाइल की वजह से कभी-कभी ड्रिंक या सिगरेट लेते हैं. लेकिन अभी तनाव की वजह से कई डॉक्टरों में ऐल्कहॉल और सिगरेट पीने की मात्रा बढ़ रही है. जो आईसीयू में काम करते हैं वैसे डॉक्टर में ये तनाव ज़्यादा है. जो रेज़ीडेंट डॉक्टर हैं उनमें भी ये तनाव बहुत ज़्यादा है. कई डॉक्टर ऐसे हैं जो पिछले छह महीने से अपने घर भी नहीं गए हैं, अपनों से मिल नहीं पा रहे हैं बहुत तनाव बढ़ा है. सबसे ज़्यादा रेज़ीडेंट डॉक्टर इसके शिकार हैं." अपनी पहचान छुपाते हुए कोविड ड्यूटी पर तैनात एक वरिष्ठ डॉक्टर ने एक समाचार चैनल को बताया किस तरह उनकी एक गर्भवती सह-कर्मी ने संक्रमण के बाद अपना बच्चा खोया, और मानसिक तनाव का शिकार हुईं. ‘'ये मेरी सहकर्मी के साथ हुआ वाक़या है, प्रेग्नेंसी के नौवें महीने में वो कोरोना से संक्रमित हुईं. दुर्भाग्यवश उनका बच्चा नहीं बच पाया. वो यक़ीन नहीं कर पा रही थीं की उनका बच्चा अब इस दुनिया में नहीं है, बहुत मुश्किल दौर था और मानसिक रूप से उन्हें मदद की ज़रूरत पड़ी, उन्हें ये समझाने में वक्त लगा की ऐसे दौर में ये हादसा किसी के साथ भी हो सकता है इसमें उनकी गलती नहीं है, वो फिर से मां बन सकती हैं.‘' मुंबई के कई बड़े मनोचिकित्सक भी यही कह रहे हैं मानसिक तनाव के कारण अब डॉक्टर ही डॉक्टर का सहारा ले रहे हैं.