इंसान की आदतें उनकी सोच विचार और फितरत का प्रतीक होती है। इंसान की आदते उसे मान सम्मान भी दिला सकती है तो हंसी का पात्र भी बना सकती है, देवता भी बना सकती है तो राक्षस भी बना सकती हैं, उसे गुणी भी बना सकती है और अवगुणी भी बना सकती है। इंसान की आदत उसका एक तरह से आईना होती है। कुछ आदतें इंसान की बड़ी अजीब गरीब होती है और वह उसके असली नकली चेहरे का प्रतीक होती है। आपको समझ ही नहीं पड़ेगा की वह क्या प्रदर्शित करना चाहते हैं उदाहरण के तौर पर यदि कोई किसी बीमार आदमी की तबीयत पुछने जाते है तो अपना चेहरा बड़ा सीरियस बनाएंगे और "क्या हो गया", "बीमारी कैसे लग गई", "ऐसे कैसे हो गया", "ओ हो हो" वे मरीज और उसके परिवार को नहीं पुछने पर भी तमाम इलाज बतला देंगे, कई मरीज भी बड़े वाले होते है वह अपनी साधारण बीमारी को भी बड़ा बढ़ा चढ़ाकर कहते है "अरे बच गया भैया" "मेरी जगह कोई और होता तो शायद नहीं बचता"डॉक्टर साहब भी कह रहे थे "तुम बहुत ही हिम्मत वाले हो"। किसी के घर में जब मृत्यु हो जाती है तो उसके करीबी रिश्तेदार घर से थोड़ी सी पहले से रोना शुरू कर देंगे और घर के अंदर जाते ही जोर-जोर से रोएंगे उनको देखकर घर वाले भी रोने लगते हैं और दो चार मिनीट बाद सब चुप। फिर और कोई रिश्तेदार आएगा और बिचारे घर वाले बार-बार परेशान होगे। किसी की झूठ बोलने की, चोरी करने की आदत होती है। अशोक मेहता, (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्) (ये लेखक के अपने
विचार है)
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