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कृषि भूमि रजिस्ट्री नामांतरण बटांकन की प्रक्रिया एक साथ नहीं होने से बढ़ रहे विवाद

Updated on 10-02-2022 12:12 PM
भारत में भू अधिकार के कई तरीके हैं। पहले राजस्व धारा 190 की कार्रवाई के तहत भू मालिक बन जाते थे। फिर सरकार या ग्राम पंचायत द्वारा दिए जाने वाले पट्टे द्वारा जमीन मालिक बनते हैं फिर कब्जे के आधार पर मालिकाना हक देने लगे, कृषि धारा 189 और 190 के आधार पर बटाईदार को भू अधिकार मिल जाते हैं, राजस्व धारा  178 क के आधार पर पिता अपने पुत्रों के मध्य अविवादित बंटवारा कर सकता है या फिर आप क्रय कर जमीन मालिक बनते हैं। हमारे यहां कृषि भूमि रजिस्ट्री के उपरांत उसका नामांतरण करवा कर भू अधिकार पुस्तिका प्राप्त करना और बटांकन भी आवश्यक है। यह सब अलग-अलग प्रक्रिया है पहले रजिस्ट्री फिर नामांतरण और बटांकन। कृषि भूमि के विवाद इन सभी प्रक्रियाओं के एक साथ ना होने से जन्म ले रहे। आपने पैसे देकर कृषि भूमि की रजिस्ट्री करा ली किसी कारणवश आप नामांतरण पेपर पर साइन कराना भूल जाए या नामंत्रण आवेदन लगाना भूल जाए या रजिस्ट्री के उपरांत बेचने वाले की मृत्यु हो जाए तो ऐसे सभी केस में आपके रजिस्ट्री का कोई मायना नहीं, आप उस जमीन को पुनः किसी को बेच नहीं सकते जब तक आपके पास भू अधिकार पुस्तिका मैं आपक नाम दर्ज नहीं होता है। बेचने वाले की मृत्यु के उपरांत उसके परिवार वाले अपने नाम पर जमीन लिखवा लेते हैं। विक्रेता यदि नहीं भी मरा हो और उसकी नियत खराब हो जाए तो वह नामांतरण के कागज पर साइन नहीं करता है। जिससे आपके नाम की भू अधिकार पुस्तिका नहीं बनती है। 
इन सब झंझट और विवादों से बचने का एक ही सरल उपाय है की भू अधिकार पुस्तिका बनाना ही खत्म कर दे और जिस उल्लेख के लिए भू अधिकार पुस्तिका बनती है जैसे किसी की न्यायालय में जमानत देना, जमीन का कोई हिस्सा बेचना, या लोन लेना तो यह सब उल्लेख रजिस्ट्री के ऊपर भी हो सकते हैं। हर रजिस्ट्री के साथ जमीन का खसरा ट्रेस पर हिस्सा दर्शाया हुआ नक्शा जरूरी होना चाहिए। इन बातों के होने से नामांकन और बटांकन अनावश्यक हो जाएंगे।
अशोक मेहता, (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्)      (ये लेखक के अपने विचार है)

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