सरकार के निर्णय जनहित में होते हैं पर कभी-कभी निर्णय लेने वाली कमेटी ध्यान नहीं देते है कि उनके निर्णय का क्या गलत असर आ सकता है। पहला उदाहरण सीलिंग एक्ट जब लगा उसके पहले संयुक्त हिंदू परिवार बहुत थे। तब एक्ट के तहत सिर्फ सहकारी समिति को कॉलोनी बनाने की छूट थी और प्लाट 200 वर्ग मीटर से बड़ा नहीं होना चाहिए जब किसी घर में 3 से 4 भाई परिवार साथ में रहते थे तो छोटे प्लाट पर उनका मकान नहीं बन सकता था तो उन्हें दो प्लाट लेना पडते थे प्लाट लेने के लिए एक शर्त होती थी कि आप एक शपथपत्र दे कि मध्यप्रदेश में आपके या आपके परिवार के नाम पर कोई मकान या प्लाट नहीं है। बस यह दो रजिस्ट्री अलग अलग नाम से होने पर भाइयों के मन में शंका कर दी कि मैं पैसा दे रहा हूं रजिस्ट्री भाई के नाम हो रही है ऐसा नहीं होगा और धीरे-धीरे इस भेदभाव के कारण संयुक्त परिवार टूटते गये। अब इस दौर में सरकार सहकारी समितियों को प्रोत्साहित नहीं कर रही जबकि सरकारी समितियों द्वारा जितने भी भूखंड दिए गए वह बिना लाभ हानी के दिए जाते हैं, यह बात अलग है कि कुछ सहकारी समिति ने गड़बड़ी की पर सभी समितियां चोर नहीं थी। आज कई मल्टी मिलेनियर कंपनियां भी धोखाधड़ी कर रही है करोड़ों अरबों रुपए का घोटाला हो रहा हैं। मैं फिर कहूंगा सहकारी समितियों के मार्फत भूखंड बहुत सस्ते मिलगे। सरकार ने अपने रेवेन्यू बढ़ाने के चक्कर में रजिस्ट्री की गाइडलाइन बढ़ा दी। प्रॉपर्टी खरीदी पर जीएसटी भी प्रॉपर्टी की कीमत कम नहीं होने देगा। अनुमति के नियमों को सख्त बना दिया कि आपको अनुमति लेने में जगह-जगह रिश्वत देकर अनुमति मिलती है वह भी महंगाई का कारण है। अभी हालात यह है कि जिसके पास पैसा है वह रिश्वत देकर तुरंत अनुमतिया ले लेता है और मनमाने दाम पर जमीन प्लाट मकान फ्लैट बेच रहा है। अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, वास्तुविद्) ये लेखक के अपने विचार है I
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