शहरों की छबी वहां के निवासियों से बनती है और हर शहर का अपना एक माज़दा होता है। कभी वही के निवासियों से छबी बिगडती है तो कभी बाहर से आने वाले सभी बिगाड़ देते हैं। कुछ लोग ऐसे होते हैं जैसे रिक्शावाले आपसे ज्यादा पैसे मांगेंगे, मिलावट करने वाले व्यापारी, व्यापार में ठगी करने वाले ठग, नशीली सामग्री बेचने वाले, जमीनों पर कब्जा करने वाले, दुकानदारों से हफ्ता वसूली करने वाले, नगर निगम के वे कर्मचारी जो सफाई नहीं करते हैं, ट्रैफिक पुलिस के वे कर्मचारी जो बिना वजह गाड़ी वालों को रोकना और यदि कोई कारण से रोका भी हो तो उससे रिश्वत लेकर उसे छोड़ देना, खुली जगह पर अतिक्रमण करके झुग्गी झोपड़ी बनाना और आजकल हर सिग्नल पर आपके कार की खिड़की पर टक टक करके भीख मांगते लोग। शहरों में हत्या, बलात्कार, लूटपाट, उपद्रव, आगजनी, नशाखोरी, वेश्यावृत्ति, धोखाधड़ी आदि कई क्राइम ऐसे होते हैं जिससे शहर की छवि खराब होती है। परंतु बावजूद इन सबके कई शहरों के स्थाई निवासी बहुत ही भावुक मिलनसार और मददगार होते हैं वह हर सेवा कार्य में आगे रहते है और जरूरतमंदों की मदद करते हैं। हर आपदा से निपटने में अपनी ओर से तन मन धन से सहयोग करते हैं। विगत कोरोना काल में हमने देखा की स्थाई निवासियों ने कैसे जरूरतमंदों की मदद की और उसी से शहर की सुंदर छबी बनती है। जनता ने सोचना चाहिए कि मुझे मेरा शहर कैसा बनाना है।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, इंजीनियर) ये लेखक के अपने विचार है I
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