गोडसे भक्त का कांग्रेस प्रवेश और "अरुण" का वैचारिक शंखनाद
Updated on
01-03-2021 07:17 PM
ग्वालियर में हिंदू महासभा के पार्षद रहे बाबूलाल चौरसिया के कांग्रेस प्रवेश को लेकर पार्टी की अंदरूनी राजनीति में अचानक उबाल आ गया है। प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष व पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव ने इसे विचारधारा का एक बड़ा मुद्दा बनाते हुए सिद्धांतों और विचारधारा को लेकर वैचारिक बहस का शंखनाद कर दिया है। लंबे समय से कांग्रेस में इस बात का अभाव देखा जा रहा था और देखने वाली बात यही होगी कि अरुण यादव ने जो बहस छेड़ी है वह किस अंजाम तक पहुंचती है। यादव ने साफ किया है कि मेरा वैचारिक संघर्ष किसी व्यक्ति के खिलाफ नहीं हैं बल्कि विचारधारा को लेकर समर्पित हैं और मैं इसके लिए हर राजनीतिक क्षति को सहन करने को तैयार हूँ। ग्वालियर के हिंदू महासभा के पार्षद रहे बाबूलाल चौरसिया को कांग्रेस प्रवेश प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और विधानसभा में नेता विपक्ष कमलनाथ ने दिलाया था। प्रदेश कांग्रेस की कमान संभालने के बाद यह पहला मौका है जब किसी बड़े कांग्रेस नेता ने कमलनाथ के निर्णय को लेकर उंगली उठाते हुए खुलकर नाराजगी जताई है।
कांग्रेस का एक बड़ा तबका अंदर ही अंदर महसूस कर रहा है कि कमलनाथ अति सीमित दायरे में पार्टी गतिविधियों को चला रहे हैं और तीन चार लोगों ने उनकी घेराबंदी कर रखी है। इस व्यवस्था से परेशान नेताओं और कार्यकर्ताओं की जुबान बनकर अरुण यादव उभर रहे हैं। प्रदेश कांग्रेस प्रभारी महासचिव मुकुल वासनिक ने आज 27 फरवरी को निमाड़ अंचल के दौरे के दौरान स्पष्ट किया है कि कांग्रेस महात्मा गांधी के दिखाए हुए सिद्धांतों पर ही काम करती है और हम हमेशा महात्मा गांधी के मूल्यों पर ही काम करते रहेंगे। इस प्रकार अरुण यादव ने जो वैचारिक मुद्दा उठाया है उसे प्रदेश प्रभारी का समर्थन मिलने से और अधिक बल मिल गया है। पार्टी में ऐसे लोगों की लंबी कतार है जो अपनी भी भूमिका चाहते हैं। इसके साथ ही प्रदेश में कांग्रेस राजनीति के अंदर गुटीय खींचतान तेज होने के आसार बन रहे हैं। वैचारिक आधार पर जो गहमागहमी चल रही है उस पूरे घटनाक्रम पर कमलनाथ ने फिलहाल कुछ नहीं बोला है और वह क्या कहते हैं उसके बाद ही पता चल सकेगा की ताजा बहस कहां तक पहुंचेगी। वहीं दूसरी ओर भाजपा नेताओं ने भी राहुल गांधी सहित पूरी पार्टी को इस मुद्दे पर आईना दिखाने में तनिक भी देरी नहीं की। वरिष्ठ कांग्रेस नेता तथा पूर्व मुख्यमंत्री सांसद दिग्विजय सिंह ने चौरसिया के प्रवेश पर सीधे उत्तर ना देते हुये सिर्फ इतना कहा कि कौन चौरसिया? कुल मिलाकर देखने वाली बात यही होगी कि इसको लेकर जो विवाद बढ़ रहा है वह किस मुकाम पर जाकर थमता है और इसके कोई नतीजे निकलेंगे भी या नहीं या फिर यह काफी के प्याले में उठे तूफान की तरह क्षणिक उबाल मार कर शांत हो जाएगा।
कांग्रेस नेताओं की जिस प्रकार की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं वह भी गुटीय निष्ठा को ही रेखांकित कर रही हैं। अरुण यादव ने विरोध का झंडा बुलंद करते हुए इसे सैद्धांतिक और वैचारिक प्रतिबद्धता से जोड़ते हुए कहा है कि वे बापू के हत्यारे के समर्थक को कांग्रेस में शामिल करने पर चुप नहीं बैठ सकते। चौरसिया के कांग्रेस प्रवेश की पटकथा लिखने वाले कांग्रेस विधायक प्रवीण पाठक बचाव में उतरते हुए कहते हैं कि गोडसे की विचारधारा खत्म कर किसी को बापू की विचारधारा से जोड़ा जा रहा है तो बड़े नेताओं को तकलीफ क्यों हो रही है? इस प्रकार उन्होंने विरोध करने वाले दल के वरिष्ठ नेताओं पर ही पर ही निशाना साध दिया। गृहमंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा की तीखी प्रतिक्रिया थी जिसमें उन्होंने चौरसिया के कांग्रेस प्रवेश को गोडसे का पुजारी कांग्रेस की सवारी निरूपित करते हुए कहा कि इससे कांग्रेस का दोहरा चरित्र ही सामने आता है। इनके लिए गांधी केवल सोनिया गांधी राहुल गांधी और राजीव गांधी हैं और हमारे लिए गांधी का मतलब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी है। डॉ. मिश्रा ने व्यंग्य करते हुए कहा है कि अरुण यादव जैसे असली कांग्रेसी उस पार्टी में रहे ही कितने हैं। उनके पिता स्वर्गीय सुभाष यादव कांग्रेस के सम्माननीय नेता रहे हैं। देखने वाली बात यही होगी कि कांग्रेस के अंदर जो तलवारें खिंच गई हैं ये आसानी से म्यान में लौट जाएंगी या इसका कुछ फलितार्थ भी निकलेगा।
अरुण यादव ने इसे एक बड़ा वैचारिक और सैद्धांतिक मुद्दा बनाते हुए कहा है कि मैं आरएसएस विचारधारा को लेकर लाभ हानि की चिंता किये बगैर जुबानी जंग नहीं, सड़को पर लड़ता हूँ। मेरी आवाज कांग्रेस और गांधी विचारधारा को समर्पित एक सच्चे कांग्रेस कार्यकर्ता की आवाज है। देश के सारे बड़े नेता कहते है कि देश का पहला आतंकवादी नाथूराम गोडसे था। आज गोडसे की पूजा करने वाले की कांग्रेस में प्रवेश को लेकर वे सब खामोश क्यों है ? उनका यह कहना सही है क्योंकि उनके द्वारा मुद्दा उठाए जाने के बाद ही इस मामले ने ज्यादा तूल पकड़ा है। यादव ने एक मौजू सवाल यह भी उछाला है कि यदि यही स्थिति रही तो आतंकवाद से जुडी भोपाल की सांसद प्रज्ञा ठाकुर, जिसने गोडसे को देशभक्त बताया है, जिसे लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि मैं प्रज्ञा ठाकुर को जिंदगी भर माफ नही कर सकता हूँ। यदि वो भविष्य में काग्रेस में प्रवेश करेगी तो क्या कांग्रेस उसे स्वीकार करेगी ? इसका उत्तर विधायक प्रवीण पाठक को देना चाहिए जिन्होंने एतराज करने पर बड़े नेताओं को ही अपने निशाने पर ले लिया था। पाठक ने यह भी कहा था कि मेरे सिद्धांत गांधी के हैं और मैं गोडसे की विचारधारा को खत्म करने के लिए संकल्पित हूं। जो लोग गोड़से की विचारधारा को छोड़कर गांधी जी की विचारधारा से जुड़ना चाहते हैं, उनका स्वागत है। किसी के भी घर की दीवारें पड़ोसी की चोट से नहीं, बल्कि घर में रहने वालों की खोट से दरकती हैं। बात तो उन्होंने गंभीर कही है और कांग्रेस को इस बात पर गंभीर विचार मंथन करना चाहिए क्योंकि कमजोरी की आखिर वजह क्या है ? वहीं दूसरी बाबूलाल चौरसिया अपने को जन्मजात कांग्रेसी बताते हैं। 2014 के नगरीय निकाय चुनाव के समय तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव ने मेरा टिकट काट दिया था। तब मैं हिंदू महासभा में शामिल हुआ और चुनाव भी जीता। दिग्विजय सिंह के अनुज कांग्रेस विधायक लक्ष्मण सिंह ने कहा है कि गोड़से के उपासकों के लिए कांग्रेस पार्टी नहीं सेंट्रल जेल उपयुक्त स्थान है। गृह मंत्रालय भी गोडसे समर्थकों की गतिविधियों पर नजर रखें तो उचित होगा। पूर्व मंत्री कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुभाष सोजतिया ने अरुण यादव का समर्थन करते हुए मांग की है कि ऐसे शख्स को तुरंत कांग्रेस से निकाला जाए। पूर्व कांग्रेसी सांसद मीनाक्षी नटराजन ने चौरसिया को कांगेस में शामिल किए जाने का विरोध किया है। भाजपा नेता और नागरिक आपूर्ति निगम के पूर्व अध्यक्ष हितेष वाजपेयी ने कहा है कि कांग्रेस के कद्दावर मर्द नेता ने 22 विधायकों के साथ सड़क पर संघर्ष का रास्ता चुना था। एक मर्द ने कमलनाथ को चुनौती दी। देखना है यह किसकी पनौती बनेगा। एक अन्य ट्वीट में उन्होंने लिखा है कि अब बताओ तो जानें कि अरुण यादव ने किस पूर्व मुख्यमंत्री के कहने पर यह कड़ाके का तीर मारा है। वहीं दूसरी ओर कमलनाथ के सबसे करीबी माने जाने वाले कांग्रेस नेता पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने अरुण यादव पर निशाना साधते हुए कहा कि जिसके क्षेत्र के दो विधायक गोडसे की विचारधारा से जुड़ गए हों वह बाबूलाल चौरसिया की एंट्री पर किस लिहाज से सवाल उठा रहे हैं।
और यह भी
वरिष्ठ कांग्रेस नेता मानक अग्रवाल का कहना है कि कमलनाथ को स्पष्ट करना चाहिए कि गोडसे की विचारधारा के साथ हैं या महात्मा गांधी की विचारधारा के साथ, जिस तरह से पिछले दिनों में उन्होंने अंबानी और अडानी की तारीफ की है उससे स्पष्ट होता है कि वह हमेशा पार्टी विचारधारा के विपरीत चले हैं। वैचारिक विवाद पर विराम लगाने के उद्देश्य से प्रदेश कांग्रेस महामंत्री मीडिया प्रभारी केके मिश्रा ने ट्वीट किया है कि गांधी एक विचार एक दर्शन है इसे गोलियां कभी नहीं मार पाईं, वह आज भी जीवित हैं और रहेंगे।कांग्रेस का वजूद भी यही विचारधारा है। कहीं किसी को कोई गफलत है, नहीं है और विवादों का अंत करें। अलगाववादी विचारधारा का सामूहिक ताकत के साथ एकजुटता से नाश करें।
महाराष्ट्र में भाजपानीत महायुति और कांग्रेसनीत महाविकास आघाडी के लिए इस बार का विधानसभा चुनाव जीतना राजनीतिक जीवन मरण का प्रश्न बन गया है। भाजपा ने शुरू में यूपी के…
लोकसभा विधानसभा चुनाव के परिणाम घोषित हो चुके हैं।अमरवाड़ा उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी कमलेश शाह को विजयश्री का आशीर्वाद जनता ने दिया है। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 29 की 29 …
छत्तीसगढ़ के नीति निर्धारकों को दो कारकों पर विशेष ध्यान रखना पड़ता है एक तो यहां की आदिवासी बहुल आबादी और दूसरी यहां की कृषि प्रधान अर्थव्यस्था। राज्य की नीतियां…
भाजपा के राष्ट्रव्यापी संगठन पर्व सदस्यता अभियान में सदस्य संख्या दस करोड़ से अधिक हो गई है।पूर्व की 18 करोड़ की सदस्य संख्या में दस करोड़ नए सदस्य जोड़ने का…
छत्तीसगढ़ राज्य ने सरकार की योजनाओं और कार्यों को पारदर्शी और कुशल बनाने के लिए डिजिटल तकनीक को अपना प्रमुख साधन बनाया है। जनता की सुविधाओं को ध्यान में रखते…
वर्तमान समय में टूटते बिखरते समाज को पुनः संगठित करने के लिये जरूरत है उर्मिला जैसी आत्मबल और चारित्रिक गुणों से भरपूर महिलाओं की जो समाज को एकजुट रख राष्ट्र…