पृथ्वी की रचना के साथ देवता और दानव का भी जन्म हुआ। पृथ्वी स्वयं भी पॉजिटिव और नेगेटिव, नार्थ और साउथ पोल धुरी पर घूमते हुए एक चुंबकीय फील्ड बनाती है। पृथ्वी पर कोई भी चीज अमर नहीं है हर एक की कुछ उम्र है। परिवर्तन प्रकृति का नियम है, जन्म और मरण यहां का सिद्धांत है। मनुष्य को ब्रेन दी हुई है और यहीं से देवता और दानव का स्वरूप पैदा हुआ। मनुष्य की प्रकृति में देवता और दानव उसकी आदत स्वभाव अनुसार कार्य कर रहे हैं। कुछ इंसान देवता प्रवृत्ति के हैं कुछ दानव प्रवृत्ति के हैं, यदि इस संसार में जीना है सुख शांति और शालीनता से तो देवता प्रवृत्ति के इंसान को सबसे ज्यादा समझौता करना पड़ेगा, दानव प्रवृति वाले आगे पीछे का नहीं देखते हैं उन्हें सिर्फ अपने स्वार्थ से मतलब होता है। देवता प्रवृत्ति दो प्रकार से होती है एक तो दानव के ऊपर अपना प्रभाव दिखा सके, वरना सहनशील बन जाए। वेसे इस प्रवृति का एक और सत्य है जीत हमेशा देवता की ही होगी। दानव कितना भी तांडव मचा ले उसका अंत देवता से पहले ही होगा। यहा हम दानव और देवता को अच्छे और बुरे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करते हैं अच्छा व्यक्ति हमेशा सुकून शांति लोगों के प्यार में रहता है और बुरा व्यक्ति का कुछ समय के लिए अच्छा होता है पर बाकी जिंदगी अकेला रहता है। देवता व्यक्ति को सिर्फ अच्छाई प्रदर्शित करना होती है और दानव जो बुरी प्रवृत्ति का रहता है उसे देवता अच्छा व्यक्ति बना सकता है। अशोक मेहता, (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्) (ये लेखक के अपने
विचार है)
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