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अंततः श्रीनिवास को शिकस्त देने वाले गौतम बन ही गए स्पीकर

Updated on 23-02-2021 12:17 PM
जमीनी संघर्ष करने में सिद्धहस्त गिरीश गौतम वामपंथी विचारधारा के कामरेड नेता रहे हैं लेकिन इसे एक संयोग ही कहा जाएगा कि जब उन्होंने वामपंथी विचारधारा से किनारा कर भाजपा का दामन थामा तब जाकर उनकी अपने धुर-विरोधी श्रीनिवास तिवारी को चुनावी शिकस्त देने की मुराद पूरी हुई। गौतम ने मनगवां विधानसभा क्षेत्र में विंध्य की राजनीति में सफेद शेर के नाम से जाने जाने वाले तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी को 2003 के विधानसभा चुनाव में पटखनी दे डाली। चुनावी मैदान में वामपंथ के कंधों पर सवार होकर तो वह विधानसभा नहीं पहुंच पाए लेकिन उसकी धुर विरोधी विचारधारा की पताका थामकर न केवल वह तिवारी को हराकर विधानसभा में पहुंचे बल्कि 17 साल के अंतराल के बाद  विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी पर आसीन होने में सफल रहे, जिस पर एक दशक तक श्रीनिवास तिवारी बैठा करते थे। गौतम को  सर्वानुमति से विधानसभा का अध्यक्ष चुना गया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गौतम के नाम का प्रस्ताव रखा और गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने समर्थन किया। भाजपा विधायकों के  प्रस्तावों के बाद नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ ने भी गौतम का नाम प्रस्तावित किया तथा गोविंद सिंह ने उसका समर्थन किया।
भले ही गौतम दो चुनाव श्रीनिवास तिवारी से हार गए हों  लेकिन अंदर ही अंदर उन्होंने  एक दशक के अंतराल में तिवारी के पैरों तले से उनकी जमीन खिसकाने की आधार भूमि तैयार कर ली थी और आखिरकार तिवारी को हराकर ही दम लिया भले ही इसके लिए उनको अपनी विचारधारा को छोड़ना पड़ा। गौतम अत्यधिक जुझारू नेता रहे हैं और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का लाल झंडा थामे हुए आम लोगों की जिंदगी से जुड़े सवालों तथा समस्याओं को लेकर निरंतर  संघर्षरत रहे हैं। गौतम 1972 से छात्र राजनीति में सक्रिय हुए और1977 से लगातार किसानों  और श्रमिकों के लिए संघर्ष करते रहे। 2003 में उन्हें विधानसभा चुनाव में पहली सफलता मनगवां विधानसभा क्षेत्र से मिली और उसको मिलाकर उन्होंने लगातार चार चुनाव जीते और देवतालाब क्षेत्र के विधायक हैं । 
1993 में उन्होंने वामपंथी उम्मीदवार के रूप में  मनगवां विधानसभा क्षेत्र से श्रीनिवास तिवारी के विरूद्ध चुनाव लड़ा और 21.50 प्रतिशत मत प्राप्त कर भाजपा उम्मीदवार को चौथे स्थान पर धकेल दिया तथा खुद तीसरे पायदान पर रहे। बसपा उम्मीदवार दूसरे पायदान पर रहा और तिवारी 27.15  प्रतिशत मत लेकर चुनाव जीते और बाद में विधानसभा अध्यक्ष निर्वाचित हुए। वामपंथी उम्मीदवार के रूप में 1998 के चुनाव में उन्होंने तिवारी को कड़ी टक्कर दी और उनके हाथों मात्र 694 मतों के अंतर से ही परास्त हुए लेकिन 2003 में तिवारी को शिकस्त देकर अपनी हार का एक प्रकार से बदला ले ही लिया। परिसीमन में यह सीट आरक्षित हो गई फिर उसके बाद गौतम ने देवतालाब से अपनी जीत का अभियान जारी रखा और विधानसभा अध्यक्ष की  आसंदी तक पहुंचने में सफल रहे। तिवारी 10 साल तक अध्यक्ष रहे जबकि गौतम को इस विधानसभा में लगभग ढाई साल तक अध्यक्ष रहने का मौका मिलेगा। पहले लगभग 15 माह कांग्रेस के नर्मदा प्रसाद प्रजापति अध्यक्ष रहे उसके बाद लगभग 1 साल तक रामेश्वर शर्मा प्रोटेम स्पीकर रहे। गौतम के स्पीकर बनने के साथ ही विंध्य अंचल की उपेक्षा के जो आरोप लगाए थे उसके बदले इस अंचल को विधानसभा अध्यक्ष जैसा महत्वपूर्ण संवैधानिक पद मिल गया है और अब वहां के विधायकों की अंचल की उपेक्षा को लेकर जो टीस थी वह दूर हो गई है। क्षेत्रीय असंतुलन भी अब पूरी तरह से संतुलित हो गया है। गौतम रेवांचल से निर्वाचित होने वाले चौथे स्पीकर हैं। यदि पुराने  विंध्य  प्रदेश को देखा जाए तो वह  पांचवें स्पीकर होंगे क्योंकि मुकुंद  सखाराम नेवालकर छतरपुर का प्रतिनिधित्व करते थे। विंध्य प्रदेश के मध्य प्रदेश में मिल जाने के पूर्व छतरपुर विन्ध का हिस्सा था। पूर्व में गुलशेर अहमद, मुकुंद सखाराम नेवालकर, राम किशोर शुक्ला और श्रीनिवास तिवारी अध्यक्ष रह चुके हैं। इस इलाके से सबसे अधिक 10 साल तक स्पीकर रहने का कीर्तिमान श्रीनिवास तिवारी के नाम दर्ज है उसके बाद गुलशेर अहमद  लगभग 5 साल और नेवालकर 3 साल तथा राम किशोर शुक्ला 1 साल स्पीकर रहे हैं।
और अंत में................
पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस के दामों में हो रही बेतहाशा वृद्धि के विरोध में कांग्रेस विधायक आज साइकिल से विधानसभा पहुंचे। 20 फरवरी को इसी मुद्दे को लेकर कांग्रेस प्रदेशव्यापी बंद  करा चुकी है, जिसका मिला-जुला असर कहीं कम तो कहीं ज्यादा बंद का देखा गया। विधानसभा सत्र के पहले दिन साइकिल से विधायक इस मूल्यवृद्धि के विरोध में ही विधानसभा भवन पहुंचे। कांग्रेस विधायक पीसी शर्मा, जीतू पटवारी, कुणाल चौधरी, आरिफ मसूद सहित लगभग आधा दर्जन से अधिक विधायक 6 नंबर मार्केट से विधानसभा भवन के लिए रवाना हुए। उनके साथ कांग्रेसी कार्यकर्ता भी जा रहे थे, लेकिन व्यापम चौराहे से विधायक चढ़ाई चढ़कर विधानसभा तक जाने लगे तो पीईबी के सामने पुलिस ने बैरिकेड लगाकर उन्हें रोक दिया और केवल कांग्रेस विधायकों को ही साइकिल से आगे जाने दिया गया। कांग्रेस संगठन के आह्वान पर अनेक विधायक अपने -अपने निवास से साइकिल से ही विधानसभा भवन तक पहुंचे।
अरुण पटेल, लेखक                                                                 ये लेखक के अपने विचार है I 
प्रबंध संपादक सुबह सवेर 
कार्यकारी संपादक अमृत संदेश
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