आर्थिक समृद्धि के इस दौर में कई भारतीय युवा आईटी प्रोफेशन के माध्यम से बाहर से बहुत पैसा कमाकर भारत में ला रहे हैं। पर अभी यूक्रेन और रूस के युद्ध के दौरान यह जानने में आया कि करीब 30000 बच्चे यूक्रेन में पढ़ने गए थे। इसी तरह ऑस्ट्रेलिया अमेरिका और यूरोप की कई इंस्टिट्यूट में हमारे यहां से लाखों बच्चे किसी ने किसी सब्जेक्ट में पढ़ाई करने विदेशों में जाते हैं। एक एक बच्चे पर अनुमानतह करीब-करीब 40 से 50 लाख रुपए से अधिक खर्च होता होगा। भारत से इस तरह कितनी मोटी रकम विदेशों में जा रही है। कई बच्चे लक्ष्य के साथ पढ़ने जा रहे और कई बच्चे विदेश पढ़ने एक फैंसी स्वभाव के तहत जा रहा है। कई बच्चे कर्ज लेकर कर भी पढने जा रहै। भारत जब इतना विकास कर रहा है इतनी तरक्की कर रहा है तो यहां के बच्चों को ऐसा क्यों लगता है कि हमारी पढ़ाई बाहर ही ज्यादा अच्छी हो पाएगी। भारतीय यूनिवर्सिटी इतनी विकसित क्यों नहीं हो पा रही की भारत के बच्चे भारत में ही पड़े हैं साथ ही अन्य विदेशी बच्चे भी भारत में पढ़ने आए। मैंने यह भी पाया कि जिस परिवार का इकलौता बच्चा विदेश में पढ़ने गया उसका वापस आकर परिवार में सेटल होना कहीं-कहीं बड़ा मुश्किल हो गया या वह वही का होकर रह गया। कई मां बाप को अपने बुढ़ापे में अकेले रहते पाया। किस्मत वाले परिवार भी हैं जिनका बच्चा पढ़ाई के बाद विदेश से लौट आया और अपने पारिवारिक व्यवसाय में हाथ बटाने लगा। अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्) (ये लेखक के अपने विचार है)
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