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मंडियों के बाहर भी किसानों नहीं मिल रहा समर्थन मूल्य

Updated on 21-09-2020 11:38 PM

भोपाल केंद्र और मप्र सरकार किसानों को खुशहाल बनाने के बड़े-बड़े दावें कर रही हैं। 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुना करने का दम भरा जा रहा है। किसानों की बेहतरी के लिए लोकसभा एवं राज्यसभा में दो कानून पास हो गए है। जिसमें किसानों को समर्थन मूल्य से ज्यादा लाभ मिलने की बात कही जा रही है। जमींनी स्तर पर किसानों की हालत सरकार के दावों के विपरीत है। हैरानी की बात यह है कि मप्र की मंडियों में किसानों को उनकी उपज का उचित भाव नहीं मिल पा रहा है। मंडियों में गेहूं बेचने जा रहे किसानों को समर्थन मूल्य से 400-500 रूपए कम का दाम मिल रहा है। मजबूरी में किसानों को 1400-1500 रूपए प्रति क्विंटल गेहूं बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है।

इस साल मप्र सरकार ने गेहूं का समर्थन मूल्य 1925 रुपए प्रति क्विंटल तय किया है। इसी दर पर सरकार ने किसानों से रिकार्ड 130 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदी का दावा है। प्रदेश में जब समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीदी हो रही थी, तब अव्यवस्था और कोरोना महामारी के कारण अधिकांश किसान अपनी आधी उपज ही बेचा पाया। वहीं हजारों किसान ऐसे भी थे, जिनकी उपज खरीदी ही नहीं गई। अब उन्हें पैसे की जरूरत है। किसान मंडी एवं बाजार में अपना गेहूं बेचने जा रहे हैं, तो उन्हें भाव नहीं मिल रहा है। ऐसे में किसान औने-पौने दाम में अपना गेहूं बेचने को मजबूर हैं।

- किसानों के पास अभी भी 120 लाख मीट्रिक टन गेहूं

प्रदेश में इस वर्ष पर्याप्त नमी और वातावरण अनुकूल होने के कारण लगभग 80 लाख हेक्टेयर में गेहूं बोया गया था, जबकि लक्ष्य 64 लाख हेक्टेयर का रखा गया था। अनुमानत: प्रदेश में इस बार गेहूं का कुल उत्पादन 250 लाख मीट्रिक टन से अधिक हुआ है। इसमें से सरकार 130 लाख मीट्रिक टन गेहूं समर्थन मूल्य पर खरीदने का दावा कर रही है। किसानों के पास अभी भी लगभग 120 लाख मीट्रिक टन गेहूं बेचने के लिए है।

- पिछले साल 2000 से ऊपर था भाव

मप्र में 259 कृषि उपज मंडियां और 298 उप मंडियां  हैं। इन मंडियों में सालभर अनाजों की खरीदी-बिक्री की जाती है। हर साल सरकार समर्थन मूल्य तय कर मार्च-अप्रैल में सरकार गेहूं खरीदती है। उसके बाद इन मंडियों में अनाजों की खुली बिक्री होती है। अक्सर होता आया कि मानसून और उसके बाद मंडियों में हर साल समर्थन मूल्य से अधिक की दर पर गेहूं की खरीदी-बिक्री होती है। पिछले साल प्रदेश की मंडियों में औसतन 2000 रूपए प्रति क्विंटल के भाव से गेहूं बिका। इस साल जिन किसानों ने अपनी गेहूं की उपज बचाकर रखी थी, उन्हें अब मंडियों में भाव नहीं मिल रहे है। मप्र में इस समय मंडियों में गेहूं 1400 से 1650 के भाव पर बिक रहा है। गेहूं के भाव गिरने से किसानों की स्थिति बदतर हो गई है। हाल ही में अधिक बारिश के कारण सोयाबीन की फसल भी नष्ट हो गई है। जिससे किसान परेशान है।  

गरीबों को बंटने वाला गेहूं समर्थन मूल्य पर बिका?

मप्र मंडी बोर्ड के सूत्रों का कहना है कि गेहूं की कालाबाजारी के कारण गेहूं का भाव गिरा है। दरअसल, कोरोना काल में सस्ते गल्ले की दुकान से लगातार उपभोक्ताओं को गेहूं मिल रहा है। वहीं समर्थन मूल्य की खरीदी पर सस्ते गल्ले की दुकानों का गेहूं बेचा गया है। लाखों किसानों को मेसेज ही नहीं मिले जिन्हें मिले वह कोरोना के कारण फसल नहीं बेच पाए। अपात्र उपभोक्ताओं के नाम पर बटा अनाज बाजार में कम दाम पर बेचा जा रहा हैं। यही वजह है कि बाजार में गेहूं का भाव निरंतर कम हो रहा है। बाजार में गेहूं का भाव 1400-1500 रुपए क्विंटल पर पहुंच गया है। जिन व्यापारियों ने स्टॉक किया था। वह सब घाटे में चले गए हैं। किसानों को अब घोषित दाम से 400-500 रुपए क्विंटल कम दाम मिल रहे हैं। व्यापारियों का कहना है कि उनकी याद में ऐसा पहली बार हुआ है। सीजन के बाद गेहूं के दाम इतने नीचे चले गए। गेहूं के सीजन में बाजार भाव लगभग 2,000 रुपए ही क्विंटल चला। सरकार किसानों से सीधे 1925 रुपए क्विंटल में खरीदारी कर रही थी, इस कारण बाजार का भाव 50-60 रुपए ज्यादा ही था। एक महीने पहले तक बाजार में गेहूं के दाम 1900 से लेकर 2000 तक ही चल रहे थे। कोरोना महामारी के चलते सरकार द्वारा आम उपभोक्ताओं को गेहूं और चावल का लगातार वितरण करने से बाजार में खाद्यान की मांग कम हो गई है।

 

- दो रुपए किलो का गेहूं 14-15 रुपए में बिक रहा

मंडी सूत्रों का कहना है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दुकानों का गेहूं बाजार में बिक रहा है। दो रुपए किलो का गेहूं और तीन रुपए किलो का चावल बाजार में आराम से 14-15 रुपए किलो बिक जाता है। दूसरे आम उपभोक्ता चक्की से आटा खरीदता था। चक्की वाले मंडी से गेहूं की खरीदारी करते थे।

19 सितंबर को मंडियों में गेहूं के भाव

मंडी भाव

इंदौर 1373-1650

धार 1425-1520

रतलाम 1280-1680

बडऩगर 1280-1680

हरदा 1365-1977

टिमरनी 1346-1566

कालापीपल 1400-1550

आष्टा 1400-1536

खुजनेर 1441-1482

बड़वाह 1492-1501

भिंड 1530-1560

देवास 1465-1643

शाजापुर 1478-1567

शुजालपुर 1580-1621

अशोकनगर 1434-1645

राघौगढ़ 1454-1600

नीमच 1400-1520

मंदसौर 1440-1630

धामनोद 1450-1500

खरगोन 1420-1570

उज्जैन 1450-1550

खातेगांव 1440-1490

नरसिंहगढ़ 1432-1550

सेंधवा 1454-1500

- 1925 रुपए का गेहूं, सड़ा कर 1051 रुपए क्विंटल में बेच रहे

मप्र में किसानों की उपज का किस तरह सत्यानाश किया जा रहा है। इसका नजारा प्रदेशभर में देखने को मिल रहा है। सरकार ने इस बार 1925 रुपए प्रति क्विंटल समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीदी की। गोदामों में रखने की जगह नहीं होने के कारण ओपन कैप में गेहूं का भंडारण किया गया है। इस बार बारिश के कारण लाखों क्विंटल गेहूं खराब हो गया है। इतनी बड़ी मात्रा में गेहूं खराब होने के बाद भी जिम्मेदारों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। सड़ा गेहूं खाद बनाने वालों को 1051 रुपए क्विंटल में बेचना शुरू कर दिया है। जबकि यह गेहूं 1925 रुपए क्विंटल में खरीदा गया था, जिससे करोड़ों रुपए का नुकसान सरकार को हो रहा है। खरीदी में भी अरबों रुप्यों का घोटाला हुआ है। अब अनाज सड़ने की बात कहकर घोटाले को छुपाया जा रहा है।

 

- भंडारण की पहले नहीं की जाती है उचित व्यवस्था

खरीदी के पहले भंडारण की उचित व्यवस्था सरकार द्वारा नहीं की जाती है और हर वर्ष हजारों क्विंटल गेहूं इसी तरह खराब हो जाता है। यह गेहूं मवेशियों के खाने लायक भी नहीं बचता है। पिछले वर्ष वेयरहाउस में कोकून लगाकर गेहूं रखा गया था जो अभी भी बंद हैं। इस वर्ष कोकून की जगह साइलो बैग में खरीदी की गई, लेकिन वह भी पर्याप्त नहीं थे।

इनका कहना है-

करमपुर में 235 टन गेहूं बारिश से खराब हुआ है, लेकिन उसे खाद बनाने के लिए बेच दिया गया है, जिससे ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है।

संजय सिंह, जिला प्रबंधक, नान बीना।


 


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