कुछ तो घर की बिना वजह की पाबंदियां, कुछ सामाजिक डर और कुछ अज्ञानता, हमने बच्चीयो को दब्बू बना दिया। उनमें सामना करने की, अपनी सुरक्षा के लिए लड़ पाने की क्षमता हमने कभी विकसीत नहीं की। कई परिवार में परवरिश पर ध्यान बेटे के लिए ज्यादा और बेटी पर कम। कुछ उदाहरण छोड़ दो जहां बेटियों की परवरिश अच्छी होती है। पर अमूमन बेटियों की परवरिश पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता। बच्चियां जैसे-जैसे बड़ी होती है उनके हार्मोन बदलते हैं और उन्हें उस वक्त गुड टच और बेड टच का भान होना आवश्यक है। बच्चियों के साथ माता पिता और भाइयों ने मित्रता वाला रिश्ता रखना चाहिए ताकि बच्चियां खुले दिल से अपनी बात कह सके। वरन बच्चीयां एक अनजान बोझ के तले दबी रहती है। वह किसी के भी झूठे मोह जाल में फंस जाती है। उसे अपना अच्छा दोस्त मान बैठती है। सामाजिक रीति रिवाज मैं भी बेटियों को कम महत्व दिया गया उन्हें महत्व देना चाहिए। बच्चीयो की शिक्षा अति आवश्यक है उन्हें स्पोर्टी बनाना और अपनी सुरक्षा के लिए मार्शल आर्ट जूडो जैसे सभी ज्ञान आना चाहिए। बच्चियों को पूरी सुरक्षा के साथ बड़ा करना चाहिए उसके कदम बहके नही इसलिए उसे हर बात पर समझाना आवश्यक है और रिस्क लेकर उसका आना-जाना अकेले ना करें। अभी समाज ने बच्चीयो की सुरक्षा की जिम्मेदारी नहीं उठा रखी है। जब पूरा समाज बच्चीयो की सुरक्षा की जिम्मेदारी लेगा स्वर्ण युग होगा।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्) ये लेखक के अपने विचार है I
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