पर्यावरण दिवस आया और चला भी गया कुछ संस्थाओं ने इस दिवस में वृक्षारोपण कर के , फोटो खिंचवाई और पोस्ट कर दिया । हम यह सिलसिला पिछले कई सालों से देखते आ रहे हैं , पर इससे पर्यावरण में कोई सुखद परिवर्तन नहीं आया है वरन हर वर्ष प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है । पर्यावरण दिवस मात्र एक पाखंड बन कर रह गया है । 5 जून विश्व पर्यावरण दिवस ने अपने पीछे कुछ प्रश्न छोड़े है । भारत की 5 जून की भीषण गर्मी में किए गए वृक्षारोपण में से बिना देखभाल के कितने पौधे जिंदा रहते हैं ? देश में इसकी जगह यह दिवस यदि मानसून आने के पश्चात 30 जून के आसपास भारत पर्यावरण दिवस के रूप में बनाया जावे तो मानसून की दस्तक के साथ किए गए वृक्षारोपण ज्यादा संख्या में जिंदा रह सकेंगे। एक जिंदा वृक्ष को काटने से पर्यावरण को होने वाले नुकसान की भरपाई 100 पौधों के रोपण से भी पूरी नहीं हो सकती है । लगाए गए 100 पौधों में बिना देखभाल के कितने पौधे बचेंगे , और उनमें से कितने विकसित होंगे ? यदि गणना की जावे तो एक काटे गए विकसित वृक्ष के बराबर O2 देने में इन रोपित किए गए पौधों को लगभग 20 साल लग जावेंगे । अतः सरकार एवम जनता यदि वास्तव में पर्यावरण सुधार चाहती है तो इनका मिशन पेड़ को काटने से रोकना होना चाहिए। एक योजना या उद्योग के लिए हजारों विकसित पेड़ काट दिए जाते हैं और कुछ पौधे लगा दिए जाते हैं जिनके द्वारा उत्सर्जित O2 की मात्रा की गणना की जावे तो वह काटे गए विकसित पेड़ों के द्वारा उत्सर्जित O2 का एक छोटा सा हिस्सा मात्र होता है । तो फिर इस प्रथा से वातावरण की रक्षा कैसे होगी ? यदि पर्यावरण को बचाना है और अपनी अगली पीढ़ी को, अपने बच्चों को CO2 गैस के चैंबर में मरने से रोकना है तो इसका मात्र एक ही उपाय है , की विकसित वृक्षों को काटने से रोका जावे नहीं तो विनाश तय है क्रमशः ..
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