हमने गाना सुना है कि चना जोर गरम बाबू मैं लाया मजेदार चना जोर गरम। अब इसे चुनावी माहौल के साथ समझे चना जोर गरम (हम एक उपाधि भी देते हैं कि चने के झाड़ पर चढ़जा यानी हसीन सपनों का दौर गरम रखा है ) मैं लाया मजेदार (याने मेरे चुनावी वादे बिजली बिल, कृषक कर्ज माफी, लैपटॉप देना और भी कई वादे) चना जोर गरम (यानी अब बड़े नेता छोटे-छोटे कार्यकर्ता से मिल रहा है उन्हें चने के झाड़ पर चढ़ा रहे हैं) और चुनाव खत्म होने के बाद यह जितने भी लोगों को चने के झाड़ पर चढ़ाया है इनको खुद को चने खाने को नहीं दिखेगे। सब की मस्ती उतर जाएगी। आज जो बडे नेता उनसे घर-घर मिल रहे हैं बूथ पर बैठने के लिए उन्हें पटा रहे हैं कल ये ही छोटे कार्यकर्ता किसी भी बड़े नेता से मिलने की ताकत नहीं रखेंगे और अपनी परेशानी में अकेले रहेंगे। पर बड़ी-बड़ी पार्टियों ने अपना एक भ्रम जाल पैदा कर रखा है जिसमें यह सब छोटे कार्यकर्ता को लगता है कि हम बहुत महान काम कर रहे हैं हम पार्टी के बहुत बड़ा है कार्यकर्ता हैं और चुनाव खत्म होने के बाद सबकी अपनी अपनी हैसियत। चुनावी माहौल में सब को चरण स्पर्श करना नमस्ते करना प्रणाम करना हाल-चाल पूछना सब जानते हैं कि सब होगा किसी को गिफ्ट मिलेगी किसी को दारू और किसी को नगद पर पवित्र चुनावी माहौल बड़े अपवित्र ढंग से संपन्न होगा। अब कोई क्या कर सकता है यही तो राजनीति की कूटनीति है। कार्यकर्ता बनाकर कोई आप का उपयोग ना करें।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्) (ये लेखक के अपने विचार है)
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