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भाजपा को बेदखल करना कांग्रेस और आप के लिए बड़ी चुनौती

Updated on 06-11-2022 04:04 PM
 जहां एक ओर हिमाचल प्रदेश में अब चुनाव प्रचार अभियान अपने चरम पर पहुंचने जा रहा है तो वहीं दूसरी ओर गुजरात में भी चुनावी मैदान सजने लगा है। इन दोनों राज्यों में इस समय डबल इंजन यानी केन्द्र व राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। भाजपा का चुनावी नारा डबल इंजन की सरकार है और इसके साथ वह इस बात पर भी जोर देती है कि डबल इंजन की सरकार में विकास जेट गति से होता है जबकि दूसरे दलों की सरकार होने पर विकास में व्यवधान पैदा होता है तो वहीं दूसरी ओर इन चुनावों में भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने अपनी कमर कस ली है। यदि दोनों राज्यों में फिर से आसानी से भाजपा सत्ता पर काबिज को गई तो फिर 2024 की राह विपक्ष के लिए हिमालयीन पर्वत लांघने जैसी हो जायेगी। यदि विपक्ष को इन चुनावों में उसकी अपेक्षा के अनुकूल नतीजे मिलते हैं तो फिर भले ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए कोई बड़ी चुनौती विपक्ष पेश न कर पाये लेकिन उनकी राह में कांटे बिछाने का हौसला अवश्य पैदा हो जायेगा। जहां तक हिमाचल का सवाल है वहां तो हर पांच साल में लगभग बीते दो दशकों से सत्ता बदलने की परिपाटी रही है और यदि इस बार भी वहां इतिहास दोहराया जाता है तो फिर कांग्रेस को कुछ संजीवनी बूटी मिल सकती है, अन्यथा कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जो अंदर ही अंदर निराशा  का भाव है वह दूर नहीं हो पायेगा। इन चुनावों में भाजपा को सत्ता से बेदखल करने में असली प्रतिष्ठा अरविन्द केजरीवाल और प्रियंका गांधी की दांव पर लगी है, जबकि चुनाव प्रभारियों के रुप में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की भी अग्नि परीक्षा होगी। जहां तक भाजपा का सवाल है चुनाव लड़ने और जीतने की कला में अब उसे महारथ हासिल हो चुकी है, इसलिए देखने वाली बात यही होगी कि इस कसौटी पर इस बार वह कितनी खरी उतरती है।    हिमाचल के चुनाव प्रचार में कांग्रेस ने वायदा किया है कि यदि केन्द्र में 2024 में उसकी सरकार बनती है तो वह अग्निवीर योजना को खत्म कर देगी। उल्लेखनीय है कि इस योजना को लेकर युवाओं में काफी आक्रोश देखा गया था और कांग्रेस युवा मानस को अपने साथ जोड़ने के लिए इस वायदे को अपना ट्रम्प कार्ड मानकर चल रही है। यदि हिमाचल में कांग्रेस कुछ कमाल दिखा पाती है तो इससे प्रियंका गांधी के कद में भी इजाफा होगा क्योंकि अभी तक जहां-जहां प्रियंका के सक्रिय होने के बाद चुनाव हुए हैं उन राज्यों में कांग्रेस के मत प्रतिशत में गिरावट आई है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी इन दिनों भारत जोड़ो यात्रा में सक्रिय हैं और वे चुनाव प्रचार में आयेंगे ऐसा दावा तो कांग्रेस पार्टी कर रही है परन्तु आयेंगे या नहीं यह अभी निश्चित तौर पर दावे के साथ कांग्रेसी नहीं कह पा रहे हैं इसलिए जो भी नतीजे आयेंगे वह नये नवेले कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और प्रियंका गांधी के ही खाते में जायेंगे। हिमाचल में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सक्रिय हैं तो गुजरात में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत प्रभारी की भूमिका में हैं। जहां तक  गहलोत का सवाल है 2017 के चुनाव में भी वह इसी भूमिका में थे और वहां के नतीजे कांग्रेस के काफी अनुकूल निकले थे तथा वह सरकार बनाते-बनाते चूक गये थे । भाजपा जो 150 सीटें जीतने का दावा कर रही थी वह सौ का आंकड़ा नहीं छू पाई हालांकि उसे हल्का सा बहुमत मिल गया था जिसे उसने बाद में दलबदल का तड़का लगाते हुए बढ़ा लिया था। इस बार गहलोत की रणनीति यह है कि किसी भी प्रकार से गुजरात के चुनाव को मोदी बनाम राहुल गांधी ना बनने दिया जाए और स्थानीय मुद्दों को उभार कर ही चुनाव लड़ा जाये इसलिए कांग्रेस बड़ी-बड़ी रैलियों और व्यक्तिगत जनसंपर्क पर अधिक जोर दे रही है। 
      27 साल से भाजपा का अभेद्य किला बने गुजरात में चुनावी रणभेरी बज चुकी है और 01 व 05 दिसम्बर को मतदान होगा तथा 08 दिसम्बर को हिमाचल के साथ ही गुजरात के नतीजे भी घोषित होंगे। पहली बार गुजरात में सही मायने में त्रिकोणात्मक चुनावी मुकाबला हो रहा है और भाजपा ने फिर से 150 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है लेकिन यह इस बात पर निर्भर करेगा कि उसको मिलने वाले मतों में आम आदमी पार्टी सेंध न लगा पाये। जबकि दूसरी ओर आम आदमी पार्टी सुप्रीमो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल वायदों की झड़ी लगा रहे हैं और गांरटी कार्ड बांट रहे हैं। वहीं घोषणायें करने में कांग्रेस भी किसी से पीछे नहीं है। आम आदमी पार्टी यदि शहरों में ज्यादा सेंधमारी करती है तो उसका नुकसान भाजपा को होगा और ग्रामीण अंचलों में करती है तो कांग्रेस को अधिक नुकसान होगा। केजरीवाल दोहरी राजनीति कर रहे हैं और उनकी नजर भाजपा के कोर हिन्दुत्ववादी मतदाताओं पर भी है और उन्होंने नोटों के ऊपर लक्ष्मी व गणेश की तस्वीर छापने की मांग करते हुए पत्र भी लिख दिया है। उनका प्रयास यह है कि भाजपा से सहानुभूति रखने वाला मतदाता उससे नाराज होकर यदि विपक्ष के पाले में जाता है तो वह आम आदमी पार्टी के पाले में आये कांग्रेस के पाले में कदापि ना जाने पाये। कांग्रेस अपने ढंग से चुनाव लड़ रही है लेकिन वह भी वायदा करने में केजरीवाल से पीछे नहीं है। जहां तक तीनों दलों की कमजोरी व मजबूती का सवाल है तो प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी की छवि और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की गांव-गांव तक सुदृढ़ संगठन की रणनीति का मुकाबला यह दोनों दल कैसे कर पायेंगे यही लाख टके का सवाल है जिसका उत्तर 08 दिसम्बर को ही मिल सकेगा। 
जहां तक भाजपा का सवाल है केन्द्र व राज्य दोनों में उसकी सत्ता है जबकि कांग्रेस को सरकार विरोधी लहर का फायदा मिलने की उम्मीद है और मैदानी स्तर पर उसके कार्यकर्ता लोगों तक पहुंच कर उन्हें अपने वायदे और केन्द्र व राज्य सरकारों की विफलताओं से अवगत करा रहे हैं। महंगाई एवं बेरोजगारी को एक बड़ा मुद्दा कांग्रेस ने बनाया है तो सीधे-सीधे लोगों को फायदा पहुंचाने की योजनाओं की भी गारंटी दे रही है। जहां तक आक्रामक प्रचार का सवाल है आम आदमी पार्टी सुप्रीमो अरविंद  केजरीवाल का मुकाबला भाजपा और कांग्रेस दोनों ही फिलहाल आसानी से नहीं कर पा रहे हैं।केजरीवाल आक्रामक प्रचार के सहारे भाजपा और कांग्रेस दोनों पर निशाना साध रहे हैं और गुजरात में नई पार्टी होने के कारण लोगों में उसके प्रति उत्सुकता है। वे दिल्ली व पंजाब में पूरे किए वायदों की एक फेहरिस्त एक हाथ में लिये और दूसरे हाथ में आरोपों का पुलिंदा थामे हुए हैं। उन्हें भरोसा है कि आम आदमी पार्टी दिल्ली व पंजाब की तरह गुजरात में भी अपना कमाल दिखाने में सफल रहेगी। जहां तक कमजोरियों का सवाल है भाजपा के सामने सत्ता विरोधी लहर का जहां खतरा है तो वहीं महंगाई एवं बेरोजगारी के साथ ही बतौर मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल की अभी तक कोई खास पहचान न बन पाना है। गुजरात में कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी उसके पास कोई बड़ा चेहरा न होना तथा लगातार विधायकों एवं नेताओं का पार्टी छोड़ना व गुटबंदी चरम पर होना तथा प्रचार तंत्र में सुस्ती है। जबकि उसका दावा है कि वह इस बार ऊपरी तामझाम व दिखावे से परहेज कर रही है तथा मैदानी स्तर पर सीधे मतदाताओं से जुड़ रही है। आम आदमी पार्टी के सामने भी यही चुनौती है कि उसके पास भी गुजरात में कोई बड़ा चेहरा नहीं है और न ही गांवों तक उसका कोई सक्रिय संगठन है, कई मुद्दों पर वह भ्रम की स्थिति में है। ऐसे में गुजरात के चुनाव नतीजों पर ही सबकी नजरें टिकी रहेंगी क्योंकि तीसरे प्लेयर के रुप में आम आदमी पार्टी किसके पैरों के नीचे से जमीन खिसकाने में सफल रहती है, यह देखना होगा।
और यह भी
     ऐसा नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह इन हालातों से बेफिक्र हों, जहां मोदी ने स्वयं कांग्रेस के अंदर ही अंदर प्रचार अभियान से अपने कार्यकर्ताओं को आगाह करते हुए सार्वजनिक तौर पर कहा है कि इसकी अनदेखी न करें क्योंकि कांग्रेस अपने ढंग से चुनाव प्रचार में लगी हुई है। उधर आम आदमी पार्टी की तगड़ी घेराबंदी भाजपा नेताओं व केंद्रीय एजेंसियों ने चालू कर दी है। दिल्ली में एमसीडी चुनाव की घोषणा भी इसी ढंग से हुई है कि जैसे-जैसे गुजरात में चुनाव प्रचार अभियान परवान चढ़े वैसे-वैसे दिल्ली में एमसीडी का चुनाव प्रचार भी तेजी पकड़े, उसके नतीजे गुजरात व हिमाचल के नतीजों से पहले आ जाएंगे। इसका मकसद यही बताया जा रहा है कि अरविन्द केजरीवाल का ध्यान बंट जाये और उन्हें गुजरात के स्थान पर दिल्ली में अपनी बढ़त बनाने की अधिक चिन्ता हो।
अरुण पटेल,लेखक,संपादक 
(ये लेखक के अपने विचार है)

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